Tuesday, October 25, 2011

परियों को सम्बोधित कविता

(दीपावली पर)







गीतू एक प्यारी बच्ची थी.

उसे दीवाली का त्योहार बहुत पसंद था.

फुलझड़ियाँ,रौशनी,दीपक,अच्छे कपड़े,मिठाई

गीतू को सब कुछ लेने का मन करता था

पर उसके पास पैसे नही थे.

उसने अपनी दादी से कहा,

मै भी अपना घर रंगीन झालर से सजाना चाहती हूँ

दादी ने कहा की हमारे पास पैसे नही हैं.

गीतू रोने लगी

उनकी बात एक परी सुन रही थी,

परी ने सपने में आकर

गीतू को ढेर सारे उपहार दिए

और उसका घर सुंदर झालरों से सजा दिया

गीतू खुश होकर ताली बजाने लगी.


यह कविता दुनिया की सभी परियों को सम्बोधित है!
सपनों और कहानी की दुनिया से निकल कर
कभी वास्तविक दुनिया में भी आइये
गीतू को उपहार दीजिए
उसका घर सचमुच में सजाइए.

Monday, September 12, 2011

चलो लिख डालें एक कविता





बहुत दिनों बाद मन है –

चलो लिख डालें एक कविता.

चलो लिख कर देखें

ढेर सारे सपने

सजाता है जिन्हें रोज मन

नींद आने के बस तुरंत बाद..

चलो पिरो दे पंक्तियों में

उन सारी पीडाओं को

व्यथाओं को

जो मन पर बोझ बन कर रहती हैं

और आत्मा जिन्हें न चाहते हुए भी सहती है...

चलो शब्द दे दें

भगवान से अपनी शिकायतों को...

चलो कह दें जग से

वो शिकवे

जो हैं हमें हँथेली की रेखाओं से...

चलो रचें वो सारे वाक्य

सुनना चाहते है जिन्हें कान

देखना चाहती है जिन्हें आँखे

अपने आगे सच होते हुए...

चलो उठाओ कलम और लिख डालो

या

रखो उँगलियाँ की-बोर्ड पर

और

छाप डालो वो सब कुछ

जो असल जिन्दगी में न सही

मगर कविता में तो जरूर हो सकता है सच.

Monday, July 04, 2011

एक अच्छी सी खबर

हाल में ही एक अच्छी सी खबर मिली सोचा आप सबसे शेयर करूँ.यह खबर दैनिक हिन्दुस्तान,लखनऊ से एक जुलाई को प्रकाशित हुई थी.



Friday, May 20, 2011

विक्रम-बेताल और बिजली


विक्रम का मूड बड़ा अपसेट था.एक तो गर्मी बहुत थी ऊपर से बेताल कंधे पर चढा पड़ा था.पसीने से लथपथ विक्रम के कंधे पर चढे बेताल को भी मज़ा नही आ रहा था.वो बोला “यार इत्ती गर्मी में कम से कम डियोडरेंट तो लगा लेते,पसीना बदबू मार रहा है!” विक्रम जलभुन कर बोला “रात भर बिजली नही थी,एक मिनट भी सोया नही.आँखे कडुआ रही है और तुम्हे डियोडरेंट सूझ रहा है?”बेताल चुप हो गया.गर्मी और पसीना दोनों किलिंग थे. विक्रम को बेतहाशा गरियाता, बेताल सोचने लगा कि आज तो ऐसी कहानी सुनाऊंगा कि प्रश्नों के उत्तर देने के पहले ही इसके सिर के टुकड़े हो जाएंगे.कहानी शुरू हुई.

“एक नेक इंसान था.उसके अच्छे कामों से खुश होकर भगवान ने उससे एक वरदान मांगने को कहा.वो बोला “भगवन जीवन में बहुत अन्धेरा है, कुछ उजाला करो !”भगवान ने उसके घर में बिजली का कनेक्शन दिलवा दिया.भक्त पहले गदगद फिर उदास हुआ क्योंकि बिजली बहुत कम आती थी.एक महीने बाद बिजली का बड़ा बिल आया.उससे भक्त चकराया.सब कुछ भगवान को बताया.भगवान बोले “इसमें मै हेल्पलेस हूँ.तुम बिजली विभाग से शिकायत करो.”भक्त ने बिजली विभाग में फोन लगाया.वहाँ मोबाइल स्विच ऑफ पाया.भक्त घर लौट आया.उसे भूख लगी थी पर आज पत्नी ने खाना नही बनाया.भक्त ने पूछा ऐसा क्यों? पत्नी बोली “बिजली नही थी सो पानी भी नदारद था.अब बिना पानी के भी खाना बनता है क्या?”भक्त भूखा सो गया. उसने अगले दिन बिजली विभाग के सामने धरना-प्रदर्शन और रोड जाम किया.बिजली विभाग ने तो नही पर पुलिस ने अपना काम किया.घायल भक्त अब अस्पताल में था. भक्त को बड़ा रोना आया.उसने भगवान को फोन लगाया. हे भगवान! बिजली ने मुझे इतना क्यों रुलाया? पर इस बार तो भगवान का मोबाइल भी स्विच-ऑफ आया.हे विक्रम!अब इस भक्त को क्या करना चाहिए इस प्रश्न का सही उत्तर दो वरना तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे.”

उधर से कोई जवाब नही आया.बेताल ने पीछे देखा. विक्रम का सिर टुकडों में टूटा पड़ा था.भला जिस प्रश्न पर भगवान भी फोन स्विच ऑफ कर दे उसका उत्तर इंसान क्या देगा? बेताल ने कसम खाई कि अब वो बिजली से जुडी कहानी कभी किसी को नही सुनाएगा और मुंह लटकाकर पेड़ पर चढ़ गया.

(20-05-2011 को दैनिक हिंदुस्तान,लखनऊ संस्करण  में प्रकाशित.)

Monday, May 16, 2011

शिवानी का विशेष दिन









शिवानी मेरी भांजी का नाम है.वो आठवीं कक्षा में पढ़ती है.मै उसकी मौसी हूँ.मौसी यानी “माँ सी” और इस नाते शिवानी में मुझे भांजी के साथ बेटी की छवि भी हमेशा दिखाई देती है.आज का दिन विशेष है न केवल शिवानी के लिए बल्कि मेरे पूरे परिवार के लिए.आज हमारी बेटी ने पहली बार रेडियो पर एक कार्यक्रम का संचालन किया.उसकी आवाज़ आज पहली बार आधिकारिक रूप से आकाशवाणी के उसी ट्रांसमीटर से प्रसारित हुई जिस पर कभी मेरी माँ, कभी मेरी स्वयं की और कभी मेरी बहन की आवाज़ सुनाई देती रही है. इस हिसाब से आज मेरे परिवार की तीसरी पीढ़ी रेडियो प्रसारण से जुड़ी.कुछ वैसा ही लग रहा है जैसे बड़े बड़े कलाकार कहते है कि पिछली इतनी पीढ़ियों से हम यह साज़ बजा रहे हैं या हम संगीत के खानदानी लोग हैं.आज कहीं यह अहसास हो रहा है कि हम ब्राडकास्टिंग के खानदानी लोग हैं.


खानदानी ब्राडकास्टिंग की बात सुन कर मेरी सहेली को हंसी आ रही है.उसे लगता है कि क्या रेडियो प्रसारण भी कोई इतनी सीरिअस आर्ट है जिसमे खानदानी होने का तमगा दिया जा सके! शायद सच ही कह रही है वो.आजके चकाचौंध भरे ग्लेमरस मीडिया जगत में परंपरागत रेडियो प्रसारण को कौन सीरियसली लेता है ? पर पूरे होशोहवास में मेरा मानना है कि ग्लेमरस और कामर्शिअल ब्राडकास्टिंग के मुकाबले परम्परागत पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टिंग कहीं ज्यादा मुश्किल है. यह कुछ वैसी ही है जैसे स्टेज पर किसी मॉडल के सामने अपने घर की किसी भाभी, ताई,दीदी को खड़ा कर दिया जाय. निश्चित रूप से वोट मॉडल को ही ज़्यादा मिलेंगे पर क्या यह मॉडल हमारी भाभी,दीदी आदि की जगह ले सकेगी? नही ना ? पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टर की भूमिका भी इन्ही घरेलू सदस्यों की तरह ही है यानी लोगों तक सही सूचना पहुंचाना और उनका सही मार्गदर्शन करना.पिछले बीस सालों के करिअर में बस यही करने की कोशिश करती रही हूँ और अपने श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला है.मेरे प्रोफेशनल करियर में पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टिंग की अनूठी सफलता की कहानियों की चर्चा फिर कभी. आज केवल सेलिब्रेशन का दिन है.मेरी बेटी ने इस क्षेत्र में अपने नन्हे कदम रखे हैं. यह भी एक अजब संयोग है कि शिवानी के पापा भी रेडियो ब्राडकास्टिंग से जुड़े रह चुके हैं.आशा करती हूँ कि वो हमारे इस खानदानी पेशे को नई ऊंचाइयों तक पहुचाएगी.शिवानी को अशेष स्नेह और शुभाशीष.

Saturday, May 07, 2011

माँ का खत

(मदर्स-डे पर माँ के लिए)



कल रात

इक खत को खोलते ही

बिजली चली गई.

माँ वो खत तुम्हारा ही है ना ?

अँधेरे में मैंने अक्षरों कों सहला कर देखा था

बड़े मुलायम थे हर्फ.

उन मुलायम हर्फों में बसी हैं

छोटे-छोटे रोजमर्रा के कामों को

ठीक से कर लेने की

वो ढेर सारी हिदायतें

जो तुम हर रोज दिया करती थी मुझे ऐसे

जैसे कि पहली बार बोल रही हो.

वो जूस के ग्लास

जो हर घंटे रख जाती थी तुम मेरी स्टडी-टेबल पर

परीक्षा के दिनों में

बिना भूले,

वो ढेर सारे कलफ लगे सूट और साडियाँ

जो तुम खुद धोकर रख जाती थी मेरी अलमारी में

हर रोज,बिना थके

क्यों कि तुम्हे मालूम था कि मुझे कॉटन कपड़े पसंद हैं,

वो शहद से मीठी तुम्हारी आवाज़,

वो हर पल दुआ देती तुम्हारी जुबां,

मुझसे जुदा होने पर बेहद नम

तुम्हारी वो दो आँखें,

हाँ माँ!

ये सब कुछ बसता है

तुम्हारे खत के उन मुलायम हर्फों में

जो मैंने अभी तक पढ़ा नहीं हैं

जो मैंने अभी केवल छुआ है.

Sunday, May 01, 2011

लखनऊ : एक पानी-लविंग सिटी












लखनऊ एक ‘पानी-लविंग’ सिटी है.यहाँ पर पानी खूब और हर तरह का मिलता है.यहाँ हैंडपम्प हैं, जेट पम्प हैं, नल हैं, टोटियाँ हैं जिनमे भरपूर पानी आता है. सड़कों पर बम्बे का भी इंतजाम है पर इस सबसे लोगों का काम नही चल पाता इसलिए शहर में एक प्यारी-प्यारी “गोमा जी” भी बिराजती हैं जिनके बचे खुचे पानी में कुछ लोग छपर- छपर नहाते हैं.जो नही नहा पाते वे कपड़े धोकर चैन पाते है और जो कपड़े भी नही धो पाते वे कम्पटीटीव स्पिरिट के चलते अपनी भैंसों को एवजी पर नहाने भेज देते हैं.टॉपर टाइप के लोग नहाने-वहाने में विश्वास नही करते वे तो बस गोमती मैया को फूल-माला चढ़ा कर सीधे स्वर्ग में सीट रिजर्व कराते हैं. बाकी लोग टापते रह जाते हैं.

लखनऊ एक महान शहर है और ‘कम्पटीशन लडाना’ यहाँ के लोगों का प्रिय शौक है. यहाँ कहीं तो गगनचुम्बी इमारतों की आखिरी मंजिल तक भी पानी धड़ल्ले से आता है पर कुछ मोहल्लों के बेसमेंट में भी चुल्लू भर पानी तक नसीब नहीं. बस इसी जगह से कम्पटीशन शुरू हो जाता है.लोग शिकायत करने पर अमादा हों जाते हैं.सूचना के अधिकार का प्रयोग शुरू. “कृपया सूचना दें की हमारी कालोनी में आपने पानी क्यों नही दिया है?हमारे साथ भेदभाव क्यों किया है ?”अफसर अनुभवी हैं. उन्हें लोगों की अज्ञानता पर हंसी आ जाती है. जवाब भेज दिया गया है. “आप की कालोनी में भी भरपूर पानी उपलब्ध है. कृपया गढ्ढों और नालियों का अवलोकन करने का कष्ट करें जो पानी से लबालब भरे हैं.” लोग गढ्ढे और नालियां चेक करते हैं, अफसर की बात में सचमुच दम है. लोग अपनी गलती पर शर्म से पानी-पानी हों जाते हैं. अफसरों के सीने गर्व से चौड़े हों जाते हैं कि सूचना के अधिकार को भी कैसा पानी पिलाया है...!

लखनऊ में पढे लिखे लोग रहते हैं. उन्हें मालूम है कि पानी की गंदगी से हिपेटाइटिस,पीलिया,टायफाइड और दस्त-पेचिश जैसी बीमारियाँ हों जाती है. पढे लिखे लोग पानी की स्वच्छता की जांच की मांग करते हैं. नगरनिगम और जल-आपूर्ति विभाग के पास वक्त नही है.स्वास्थ्य विभाग परमार्थ के इस काम में आगे आता है. पानी की चेकिंग शुरू.जनता गदगद हों उठती है.नमूनों की जांच में ज्यादातर जगह पानी से क्लोरीन गायब है.जनता नाराज़ है पर उससे क्या? लोग धरने की धमकी देते हैं पर उससे क्या? अखबार में छपा है कि पानी में अभी केवल क्लोरीन चेक की गई है, बैक्टीरिया की चेकिंग तो अभी बाकी ही है.जनता अब बैक्टीरिया चेकिंग की मांग पर अड रही है. उसे अगले साल का आश्वासन मिलता है.जनता चिढ़ जाती है.एक बार फिर सूचना का हथियार हाँथ में है.जनता शायद भूल चुकी है कि अफसर हमेशा अनुभवी हुआ करते है.

अन्ततः बैक्टीरिया की जांच नही की जा सकी. महामारी में बहुतेरे लोग मारे गए.दिवंगत लोगों के परिजनों की आँख में पानी है.महामारी रिलीफ फंड बहुत तगड़ा आया है.अफसर के मुँह में पानी है.

लखनऊ एक पानी लविंग सिटी है.

(दैनिक हिंदुस्तान में दिनांक २६ अप्रैल २०११ को प्रकाशित.)

Monday, April 04, 2011

ॐ जयंती मंगला काली




ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी


दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।

Saturday, March 19, 2011

मिस गुझिया वर्सेज़ मिस्टर गुलाल







होली के मौके पर देखो
कैसा मचा धमाल
मिस गुझिया तो होस्ट बनी है
घोस्ट बने मिस्टर गुलाल.

मिस गुझिया के लॉन में
भीड़ मची है भारी
ड्रम और टब रंगो से भरे हैं
पूरी है तैयारी.

पापड़,चिप्स,सेव,कचरियाँ
मिस गुझिया के फ्रेंड्स
नई-नई पोशाकें सबकी
नए नए है ट्रेंड्स.

मिस्टर घोस्ट के फ्रेंड्स की
जैसे ही हुई एंट्री
आगे बढ़ कर रोका जिसने
वो था मिस गुझिया का संतरी.

यह पार्टी है होली की
मिस गुझिया के नाम
केवल इन्सान ही शामिल
इसमें घोस्टों का क्या काम?

सुनकर आगबबूला हो गया
मिस्टर घोस्ट का ग्रुप सारा
फेक के मारा जो गुब्बारा
संतरी हुआ नौ दो ग्यारह

तभी वहां पर आ गई
गुझिया जी की सहेली
मिस पापड़ी को संग लिए
पिचकारी रानी बोली
खेल खेल में मचा दिया
तुमने क्या हुडदंग
आओ सब मिल होली
खेले एक दूजे के संग
आगे बढ़ कर सबने सबको
खूब मला गुलाल
कोई चेहरा हरा दीखता
कोई गाढा लाल
हर कोई अब घोस्ट ही लगता
हुलियारों की टोली
सबने सबको गले लगाया
और कहा
हैप्पी होली.

Sunday, February 13, 2011

प्यार की घंटी

(वैलेंटाइन-डे पर एक टीनेजर की नोटबुक से कविता )







तुम्हारे प्यार की घंटी को बजना है,
मेरे सोये हुए मन को जगाने के लिए
पर तुम्हारे हाथ
कभी उस ओर बढते हुए नही पाए गए.
मेरे चारो ओर खड़े लोगों में से
कुछ की फुसफुसाहट सरकती हुई
मेरे कानो में घुसती है
कि मैं किसी भी तरह
खींच लाऊँ तुम्हारे हाथों को
घंटी तक
जिसे बजना है
पर
मेरी कोमल भावनाएँ
बहुमूल्य हैं
उन्हें मैं छोटे-छोटे मदों में खर्च नही करती...
सहेज कर रखती हूँ
अपने मन के बैंक में.
बड़ी खुद्दार हैं मेरी भावनाएँ
बिलकुल मेरी तरह.

Tuesday, February 08, 2011

सहरा वो बसंती है ये गुलज़ार बसंती

(अमानत लखनवी की गज़ल)







है जलवा-ए-तन से दर-ओ-दीवार बसंती
पोशाक जो पहने है मेरा यार बसंती


गैंदा है खिला बाग़ में मैदान में सरसों
सहरा वो बसंती है ये गुलज़ार बसंती


गैंदों के दरख़तों में नुमाया नहीं गेंदे
हर शाख़ सर पे है ये दस्तार बसंती


मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती


फिरती है मेरे शौक़ पे रंग की पोशाक
ऊदी, अगरी चंपई गुलनार बसंती


है लुत्फ़ हसीनों की दो रंगी का 'अमानत'
दो चार गुलाबी हों तो दो चार बसंती

----अमानत लखनवी

Wednesday, January 26, 2011

पूछने हैं तुमसे कुछ सवाल दोस्तों

(गणतन्त्र-दिवस पर)





पूछने हैं तुमसे कुछ सवाल दोस्तों,
हाथ रख के दिल पे दो जवाब दोस्तों.
गणतन्त्र की विजय का जो मना रहे हो जश्न,
जन गण के मन का सच में है क्या हाल दोस्तों?

कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अपनी जमीन, अपना आसमान दोस्तों,
फिर सरजमीं पे अपनी ही लहराने के लिए
बेबस है क्यों तिरंगा, क्या विधान दोस्तों?

यह ध्वज प्रतीक अपनी आन,बान,शान का
ये है प्रतीक माँ भारती के मान का,
वो कौन है जो गर्व को गिरवी बना रहे
उनको सजा क्या देगा संविधान दोस्तों?

हिन्दोस्तां वतन है हिन्दुस्तानी हम सभी
हर स्वार्थ छोड़ उठ खड़े हो साथ हम सभी
लहराएगा तिरंगा हर चौक पर सदा
देनी पड़े या लेनी पड़े जान दोस्तों.

Saturday, January 08, 2011

ठंड : कुछ शब्द-चित्र

जनवरी







जनवरी -
नववर्ष
नूतन हर्ष
ठंड का उत्कर्ष
कोमल त्वचा पर शीतलहरी का स्पर्श
जलते अलाव
ठंड से संघर्ष
टूटते विश्वास
कम्बल की आस
कहीं जेब में गर्मी
कहीं पेट में जलती आग की गर्मी
विरोधाभासों का चरमोत्कर्ष.
दफ्तर,कुर्सियाँ,योजनाएँ
फाइलों में विमर्श
कुछ परामर्श
बहुत संघर्ष.
फिर भी
सहर्ष
शुभकामनाएँ
नूतन नववर्ष.



(2)

कुहासा



कुहासा-
कुछ वातावरण में
उससे ज्यादा सम्बन्धों में...
कोई रजाई, कम्बल ओढ़ कर भी न सो पाया
कोई
कुहासे की चादर तान कर
सारी रात
भरपूर सोया.

(3)


थरथराता सूर्य






ठिठुरती सुबह
कुहासे में छुपे
थरथराते सूर्य को
बर्फीले पानी का अर्घ्य,
बुदबुदाते होठों से
भाप बन कर निकलते मंत्र...

माचिस की तीली
भर आग
केतली में खौलती चाय ने
भरपूर ऊष्मा प्रदान की
हर एक को.


सूर्य
आलस छोड़ कर
आसमान में निकल आया,
धूप निकल आई
और
दिन जगमगाता रहा.

Tuesday, January 04, 2011

Who says Maths is easy?


[Courtesy: Funzu.com]



साथियों यह पोस्ट मेरी नही है ना ही मैंने यह अपने ब्लॉग पर लगाई है.अभी अभी मेल बॉक्स में आप लोगों के कमेंट्स देखा तो इस पोस्ट के बारे में पता चला.मैंने सोचा की हैकिंग का कोई चक्कर हो गया है.पर तभी मेरी फ्रेंड का बेटा जो मेरे घर आया था, लगातार हँसने लगा.काफी पूछताछ के बाद पता चला की यह हरकत उन महाशय की है.मेरा लैपटॉप ऑन देख कर उन्हें एक पोस्ट पब्लिश करने की सूझी और मेरे हिंदी ब्लॉग पर उन्होंने यह अंग्रेजी पोस्ट छाप दी.गुस्सा भी आया .मेरी फ्रेंड बहुत नाराज़ भी हुई उस पर.पर बेटा इतनी मासूमियत से सब सुनता रहा फिर बोला मुझे मैथ्स अच्छी नही लगती इसीसे मैंने यह किया. मुझे बहुत तरस आई.सोचा की पोस्ट डिलीट कर दूँ पर फिर लगा की एक बच्चा मैथ्स से इस कदर डरता है तो यह हम सब अभिभावक और शिक्षकों के सोचने का विषय है जिस पर हमारा चिंतन और कार्यवाही वांछित है.मैं बच्चे द्वारा पब्लिश इस पोस्ट को डिलीट नही कर रही.आप सबके कमेंट्स का इंतज़ार रहेगा....

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