Tuesday, October 25, 2011

परियों को सम्बोधित कविता

(दीपावली पर)







गीतू एक प्यारी बच्ची थी.

उसे दीवाली का त्योहार बहुत पसंद था.

फुलझड़ियाँ,रौशनी,दीपक,अच्छे कपड़े,मिठाई

गीतू को सब कुछ लेने का मन करता था

पर उसके पास पैसे नही थे.

उसने अपनी दादी से कहा,

मै भी अपना घर रंगीन झालर से सजाना चाहती हूँ

दादी ने कहा की हमारे पास पैसे नही हैं.

गीतू रोने लगी

उनकी बात एक परी सुन रही थी,

परी ने सपने में आकर

गीतू को ढेर सारे उपहार दिए

और उसका घर सुंदर झालरों से सजा दिया

गीतू खुश होकर ताली बजाने लगी.


यह कविता दुनिया की सभी परियों को सम्बोधित है!
सपनों और कहानी की दुनिया से निकल कर
कभी वास्तविक दुनिया में भी आइये
गीतू को उपहार दीजिए
उसका घर सचमुच में सजाइए.

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