Thursday, December 31, 2009

नववर्ष मंगलमय हो



एक सुबह तो ऐसी हो जब
सूरज सचमुच चमके,

धूप सुनहरी रँग दे कण-कण
मेरे घर आँगन के...

आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Wednesday, December 30, 2009

स्पेलिंग-मिस्टेक





अहसास के डिक्टेशन में

फ़ेल किया गया उसे

तृप्ति की स्पेलिंग

ग़लत लिखने के कारण.


ग़लती उसकी नहीं

उसकी टीचर की थी--

ज़िन्दगी की वर्क-बुक में

प्रैक्टिस करवाई गई थी उसे

भूख लिखने की लगातार.

Wednesday, December 23, 2009

क्या पंकज सुबीर जी मदद करेंगे मेरी ?






शायद पढने वालों को इस पोस्ट का शीर्षक अजीब लगे पर सच यही है कि मुश्किल की इस घड़ी में मुझे पंकज सुबीर जी की मदद की दरकार है और मदद मिलने का पूरा भरोसा भी है.

बात दरअसल यह है कि आजकल मैं राष्ट्रीय एकता पर आधारित एक रेडियो डॉक्यूमेंटरी के निर्माण कार्य में लगी हुई हूँ जिसका शीर्षक है "हर धड़कन वतन के लिए." आज के समय में जब हर तरफ़ धार्मिक वैमनस्यता फैली हुई है और तुच्छ निजी स्वार्थ देश हित से बड़े लगने लगे हैं, जब धार्मिक कट्टरता का ज़हर देश की एकता और अखण्डता के लिए खतरा बनता जा रहा है,आरोप-प्रत्यारोपों के बीच जब सहिष्णुता एक मज़ाक सी लगने लगी है,जब संकीर्णता इतनी बढ़्ती जा रही है कि देश का सम्मान और देश की छवि भी दाँव पर लगने लगी है ऐसे में पूर्वांचल के कुछ मदरसे राष्ट्रवादी शिक्षा के दीपक से धार्मिक कलुषता के इस अन्धेरे को दूर भगाने का महान कार्य कर रहे हैं. इन मदरसों में मुस्लिम बच्चों के साथ हिन्दू बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करते हैं. यहाँ अरबी,उर्दू के साथ सँस्कृत और हिन्दी भी पढाई जाती है. एक ओर क़ुरआन की आयतें तो दूसरी ओर सरस्वती वन्दना और गायत्री मंत्र भी पढाए जाते हैं.यही नहीं यहाँ पर अँग्रेज़ी, कम्प्यूटर और विज्ञान विषयों की शिक्षा भी दी जाती है.यह पूछने पर कि इस सबका उद्देश्य क्या है, जवाब मिलता है कि जब हिन्दुस्तान में जन्म लिया है तो यहाँ की हर चीज़ हमारी अपनी है और इस नाते हर धर्म और सँस्कृति को जानना और इज़्ज़त देना हमारा धर्म और कर्तव्य है.कुछ लोगों ने कहा हम भारत माँ के लाल हैं और अपनी माँ की इज़्ज़त करना तो हमारा फर्ज़ है. लोगों ने यहाँ तक कहा कि "हमारी हर धड़कन वतन के लिए है." उनकी इस बात से मैं इतना प्रभावित हुई कि मैने डॉक्यूमेंटरी का शीर्षक ही रख दिया "हर धड़कन वतन के लिए ."

लखनऊ से तीन सौ किमी दूर इन इंटीरियर विलेजेज़ में जाकर रिकार्डिंग का काम पूरा हो चुका है और फिलहाल वॉर फ़ुटिंग पर एडिटिंग चल रही है. कार्यक्रम सबमिट करने की अंतिम तारीख 28 दिसम्बर है.अब बात आती है उस बिन्दु की जहाँ मैं मुश्किल महसूस कर रही हूँ. अपने इस कार्यक्रम के क्लामेक्स बिन्दु पर मैं एक ग़ज़ल/नज़्म/शेर को संगीतबद्ध करके जोड़ना चाहती हूँ जिसमें मिसरा आए "हर धड़कन वतन के लिए." मुझे ऐसा कोई शेर फ़िलहाल ढूँढने से भी नही मिल पा रहा है.मैं काफ़ी परेशान थी ऐसे में मुझे याद आई पंकज सुबीर जी की जो कि प्रख्यात ऑनलाइन ग़ज़ल गुरू हैं और ब्लॉग जगत का लगभग हर अगला शायर उनका शिष्य है. मुझे लगा कि इस टीम से यदि मैं आग्रह करूँ तो मेरा काम यक़ीनन बहुत आसान हो जाएगा. अरे भई जहाँ पर गौतम राजर्षि, कंचन, श्यामल सुमन जैसे योग्य नामों की सूची शिष्य लिस्ट में हो वहाँ एक अच्छी ग़ज़ल/नज़्म् का जुगाड़ शॉर्ट नोटिस पर हो जाना कोई बड़ी बात तो नही है! यही सोच कर मैने यह पोस्ट लिखी है. इसे एक ओपन रिक्वेस्ट माना जा सकता है.जो लोग भी इस विषय पर लिख कर मेरी सहायता करना चाहें वे टिप्पणी के रूप में इसे भेज सकते हैं. बस इतना याद रहे कि अंतिम तिथि 28 दिसम्बर है.

पंकज जी देश के प्रति सम्मान के इस जज़्बे को लाखों लोगों तक पहुँचाने में आप और आपके शिष्यगण क्या मेरी मदद करेंगे? पंकज जी के नाम लिखी गई मेरी यह रिक्वेस्ट पोस्ट पंकज सुबीर जी के अलावा उन सभी मित्रों के लिए भी है जो ग़ज़ल/नज़्म् लिखने में रूचि रखते हैं. हाँ इतना विश्वास रखिए कि सर्वोत्तम ग़ज़ल को आकर्षक रूप से संगीतबद्ध करवाने की ज़िम्मेदारी मेरी है.


"हर धड़कन वतन के लिए" मिसरे पर आपकी ग़ज़लो और नज़्मों के इंतज़ार में,


मीनू खरे

Monday, December 21, 2009

इन्सिग्नीफिकेंट




दोस्ती
इन्सिग्नीफिकेंट

दोस्त
इन्सिग्नीफिकेंट

मौक़े
सिग्नीफिकेंट

परिणाम
सिग्नीफिकेंट.

Saturday, December 12, 2009

क्रेश



यह जानते हुए भी
कि
उसे मारपीट कर
जबरन सुला दिया जाता है वहाँ
मैं छोड़ जाती हूँ
अपनी सम्वेदनाओं के अबोध शिशु को
तर्कशक्ति के नज़दीकी क्रेश में.
क्या करूँ ?
यथार्थ के ऑफ़िस में ले जाने पर
काम ही नही करने देता
यह नन्हा
यह नादान.

Sunday, December 06, 2009

कूड़ा बीनने वाले बच्चों का अपना बैंक



बनारस,६ दिसंबर. देश में जब कोई विजय दिवस मन रहा था और कोई शर्म दिवस ऐसे में बनारस के कूड़ा बीनने वाले बच्चों सहित तमाम गरीब बच्चे अपने द्वारा खोले गए चिल्ड्रेन्स बैंक के द्वारा देशवासियों का ध्यान देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी और उसके उन्मूलन के लिए आर्थिक सशक्तीकरण् की आवश्यकता की ओर आकर्षित करने में लगे हुए थे .मंदिर और मस्जिद के नाम पर बटवारे को नकारते यह बच्चे अपने बैंक द्वारा देश को आर्थिक ताक़त बनाने में मशगूल दिखाई दिए. विशाल भारत संसथान के तत्वावधान में बना बच्चों का यह बैंक अपनी किस्म का पहला है .इसका संचालन 5-13 वर्ष के बच्चे ही करते हैं.इस बैंक में मात्र 50 पैसे से खाता खोला जा सकता है ,इसके लिए एक फॉर्म भरना पड़ता है साथ ही एक गारंटर की ज़रुरत पड़ती है.बाल श्रमिक अपनी कमाई से प्रतिदिन 1-10 रूपए बैंक में जमा करते हैं.ज़रूरत पड़ने पर यह बच्चे इस बैंक से ब्याज रहित लोन भी ले सकते हैं.इस बैंक के कारण कई गरीब बच्चे अपनी पढ़ी जारी रख पा रहे हैं और बाल श्रमिकों में बचत की भावना का भी विकास हो रहा है. इस बैंक की मैनेजर 11 वर्षीय निशा है तो 8 वर्षीय आफरीन केशियर् का काम करती हैं वाही 6 वर्षीय तौहीद आलम बैंक के सुरक्षा अधिकारी हैं. आज इस बैंक का उद्घाटन बैंक ऑफ़ बड़ोदा के प्रबंधक श्री घनश्याम दास् ने किया. इस मौके पर संस्थान के अध्यक्ष राजीव श्रीवास्तव ने बताया की जल्द ही बैंक की २० अन्य शाखाएं खोली जाएगी.लगता है वह दिन दूर नहीं जब गरीब बच्चे अपनी बचत द्वारा देश को आर्थिक ताकत बनाने में बराबर के भागीदार होंगे. हमारी तरफ से इस पहल पर इन सभी बच्चों को बधाई और शुभकामनाएं.

Friday, December 04, 2009

एक लेटलतीफ़ की शादी



वो मुझे 'मैम' कहकर सम्बोधित करता है क्यों कि ऑफिस में मैं उसकी बॉस हूँ और इस लिए भी क्यों कि वो मेरा शिष्य है.मैं उसे 'लेटलतीफ़' कहती हूँ, क्यों? अरे भई नाम से ही ज़ाहिर है कि वो हमेशा लेट आता है .किसी एक दिन, किसी एक मौक़े, किसी एक जगह पर नहीं, हर दिन हर मौक़े और हर जगह, हर कार्यक्रम में वो लेट आता है.कभी 15मिनट लेट तो कभी 45मिनट, कभी 1 घंटा लेट, कभी 2 घंटा और कभी कभी तो सुबह की जगह शाम को पहुँचता है.आपका काम रूके तो रूके पर उस बेचारे को समय से न पहुँचने की जैसे क़सम है.कई बार आकाशवाणी स्टूडियो में किसी वीआईपी रिकार्डिंग में, मेरे बार बार रिमाइंडर के बावजूद भी वो तब पहुँचा जब रिकार्डिंग समाप्त होने वाली थी!!! अब चाहे आप अपने बाल नोचें, चाहे हज़ार बातें सुनाएँ, चाहे जो सज़ा देने की बात कहें, वो एक चुप तो हज़ार चुप. आखिर में थक हार कर अगले को ही चुप होना पड़ता है. हर बार 'अब से हमेशा समय से आऊँगा' का वायदा पर ......??!!!ज़्यादा पूछो तो कहेगा "मैम मैं देर नही करता, पता नहीं कैसे देर अपने आप हो जाती है." वो बहुत अच्छा वर्कर है, विश्वसनीय है, मेहनती है, जानकार है और सबसे बड़ी बात कि इस सबके बावजूद बहुत विनम्र और आज्ञाकारी भी है.शायद यही कारण है कि अपनी हैरान कर देने वाली लेटलतीफ़ी के बावजूद भी वो मेरे हर महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में मेरी टीम में ज़रूर रहता है.

पिछले दिनों उसने मुझे अपनी शादी का कार्ड दिया. बारात 27 नवम्बर को लखनऊ से कानपुर जानी थी.उसका आग्रह था कि मैम शादी में आपको ज़रूर ज़रूर आना है.ऑफिस के अन्य सहकर्मी भी सादर आमंत्रित थे.अपने प्रिय शिष्य़ की शादी में शामिल होने का मेरा खुद बहुत मन था. मन में उसे दूल्हा बना देखने की बड़ी उमंग थी.उसने बताया कि "मैम चूँकि शादी में बैण्ड पहली शिफ़्ट का है अत: कैसे भी करके बारात कानपुर 6:30 शाम तक ज़रूर पहुँचनी है वर्ना बैण्ड वाले वापस चले जाएँगे." समय से पहुँचने की उसकी एक दो रिमाइंडर कॉल भी मुझे प्राप्त हुई.बारात पौने पाँच बजे शाम को रवाना हुई.एक बस थी और तीन गाड़ियाँ. एक गाड़ी में दूल्हा और कुछ परिवारजन थे. अन्य गाड़ियों में हम ऑफ़िस वाले थे.वो बार बार फोन से हम लोगों से सम्पर्क बनाए था कि कौन सी गाड़ी कहाँ तक पहुँची.उन्नाव पहुँच कर एक ढाबे पर हम लोगों ने चाय पीने की सोची. हम लोगों ने उससे कह दिया कि तुम चलो हम लोग पहुँच जाएँगे.करीब आधे घंटे उन्नाव में बिता कर हम लोग फिर चल पड़े.पर यह क्या! कानपुर से करीब पाँच किमी पहले हमारी गाड़ी एक भयँकर जाम में फँस गई. हमें लगा कि चाय पीने के चक्कर में हमसे बहुत बड़ी ग़ल्ती हो गई है. अब पता नही बारात मे समय से पहुँच पाएँगे कि नहीं. तभी हमने देखा कि बारात वाली बस तो हमारे बग़ल में ही खड़ी है! अब हमने सोचा कि यह अच्छा है कि बारातीगण तो जाम में फँसे है क्या दूल्हा राजा अकेले ही बैण्ड बाजा लेकर निकलेंगे? तभी उनका फोन आता है "मैम मेरी गाड़ी आप से पीछे खड़ी है."इस समय कोई आठ बज रहे थे. दूल्हा समेत पूरी बारात इस जाम से कैसे निकलेगी ? चार पाँच किमी के जाम का यह सफ़र बहुत मुश्किल था. हर आदमी के मन में एक ही प्रश्न की लखनऊ से कानपुर का आमतौर पर दो घंटे में खत्म होने वाला सफ़र आज कितने घंटे लेगा? सड़क पर तिल रखने की जगह नही थी.तभी मेरी लाइन की एक गाड़ी ने साइड वाले कच्चे रास्ते में मोड़ा हमारी गाड़ी भी उसके पीछे मोड़ी गई. आगे पता चला कि आज कानपुर में भारत-श्रीलंका क्रिकेट मैच था और सुरक्षा व्यवस्थाओं के चलते यह अभूतपूर्व जाम लगा था.फिलहाल हमें निकलने की जगह मिल चुकी थी और भले ही रेंग-रेंग कर ही सही पर मेरी गाड़ी रात बारह बजे शादी स्थल पर पहुँच चुकी थी.बाराती पहुँच चुके थे पर दूल्हा मिसिंग था. हमने फोन किया तो जवाब मिला "मैम अभी तो मुझे पहुँचने में बहुत वक़्त लग जाएगा, मेरी गाड़ी भयँकर जाम में अभी भी फँसी है,कहीं से भी निकलने की जगह नहीं मिल रही है." मैने सिर पकड़ लिया.आज भी लेट !!!! और हमेशा की भाँति मुझे बहुत इंतज़ार करना पड़ा.दूल्हा महाशय रात डेढ बजे शादी स्थल पर पहुँचे. बारात करीब दो बजे शुरू हुई और जयमाल की रस्म होते समय घड़ी ढ़ाई बजा रही थी.जयमाल के वक्त जब उसने स्टेज पर मेरे पैर छुए तो मुझे उसकी वही बात याद आ रही थी " "मैम मैं देर नही करता, पता नहीं कैसे देर अपने आप हो जाती है......."

खैर देर चाहे जितनी भी हुई हो पर शादी बहुत अच्छी हुई.मेरा शिष्य बहुत सजीला और सुन्दर लग रहा था. दुल्हन उससे भी बढ़ कर! शादी की रस्में अपनी गति से चल रही थी और मैं मन ही मन यह कामना कर रही थी कि जिस तरह का जाम आज हमारे रास्ते में लगा था उससे बहुत्-बहुत बड़ा जाम लग जाए,इस जोड़ी के जीवन में आने वाले किसी भी दुख-तकलीफ़ के रास्ते में.

ओम और श्वेता को स्नेहाशीष, आशीर्वाद और सुखमय जीवन की अशेष शुभकामनाएँ.

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