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लखनऊ एक ‘पानी-लविंग’ सिटी है.यहाँ पर पानी खूब और हर तरह का मिलता है.यहाँ हैंडपम्प हैं, जेट पम्प हैं, नल हैं, टोटियाँ हैं जिनमे भरपूर पानी आता है. सड़कों पर बम्बे का भी इंतजाम है पर इस सबसे लोगों का काम नही चल पाता इसलिए शहर में एक प्यारी-प्यारी “गोमा जी” भी बिराजती हैं जिनके बचे खुचे पानी में कुछ लोग छपर- छपर नहाते हैं.जो नही नहा पाते वे कपड़े धोकर चैन पाते है और जो कपड़े भी नही धो पाते वे कम्पटीटीव स्पिरिट के चलते अपनी भैंसों को एवजी पर नहाने भेज देते हैं.टॉपर टाइप के लोग नहाने-वहाने में विश्वास नही करते वे तो बस गोमती मैया को फूल-माला चढ़ा कर सीधे स्वर्ग में सीट रिजर्व कराते हैं. बाकी लोग टापते रह जाते हैं.
लखनऊ एक महान शहर है और ‘कम्पटीशन लडाना’ यहाँ के लोगों का प्रिय शौक है. यहाँ कहीं तो गगनचुम्बी इमारतों की आखिरी मंजिल तक भी पानी धड़ल्ले से आता है पर कुछ मोहल्लों के बेसमेंट में भी चुल्लू भर पानी तक नसीब नहीं. बस इसी जगह से कम्पटीशन शुरू हो जाता है.लोग शिकायत करने पर अमादा हों जाते हैं.सूचना के अधिकार का प्रयोग शुरू. “कृपया सूचना दें की हमारी कालोनी में आपने पानी क्यों नही दिया है?हमारे साथ भेदभाव क्यों किया है ?”अफसर अनुभवी हैं. उन्हें लोगों की अज्ञानता पर हंसी आ जाती है. जवाब भेज दिया गया है. “आप की कालोनी में भी भरपूर पानी उपलब्ध है. कृपया गढ्ढों और नालियों का अवलोकन करने का कष्ट करें जो पानी से लबालब भरे हैं.” लोग गढ्ढे और नालियां चेक करते हैं, अफसर की बात में सचमुच दम है. लोग अपनी गलती पर शर्म से पानी-पानी हों जाते हैं. अफसरों के सीने गर्व से चौड़े हों जाते हैं कि सूचना के अधिकार को भी कैसा पानी पिलाया है...!
लखनऊ में पढे लिखे लोग रहते हैं. उन्हें मालूम है कि पानी की गंदगी से हिपेटाइटिस,पीलिया,टायफाइड और दस्त-पेचिश जैसी बीमारियाँ हों जाती है. पढे लिखे लोग पानी की स्वच्छता की जांच की मांग करते हैं. नगरनिगम और जल-आपूर्ति विभाग के पास वक्त नही है.स्वास्थ्य विभाग परमार्थ के इस काम में आगे आता है. पानी की चेकिंग शुरू.जनता गदगद हों उठती है.नमूनों की जांच में ज्यादातर जगह पानी से क्लोरीन गायब है.जनता नाराज़ है पर उससे क्या? लोग धरने की धमकी देते हैं पर उससे क्या? अखबार में छपा है कि पानी में अभी केवल क्लोरीन चेक की गई है, बैक्टीरिया की चेकिंग तो अभी बाकी ही है.जनता अब बैक्टीरिया चेकिंग की मांग पर अड रही है. उसे अगले साल का आश्वासन मिलता है.जनता चिढ़ जाती है.एक बार फिर सूचना का हथियार हाँथ में है.जनता शायद भूल चुकी है कि अफसर हमेशा अनुभवी हुआ करते है.
अन्ततः बैक्टीरिया की जांच नही की जा सकी. महामारी में बहुतेरे लोग मारे गए.दिवंगत लोगों के परिजनों की आँख में पानी है.महामारी रिलीफ फंड बहुत तगड़ा आया है.अफसर के मुँह में पानी है.
लखनऊ एक पानी लविंग सिटी है.
(दैनिक हिंदुस्तान में दिनांक २६ अप्रैल २०११ को प्रकाशित.)
6 comments:
पानी वालों का नगर।
बहुत बढ़िया और सच लिखा है आपने.
सादर
लखनऊ एक पानी लविंग सिटी है मान गये जी सच मे यह हे, वैसे यह लखनऊ ही नही मुझे लगता हे भारत का हर शहर ऎसा ही हे,बहुत सुंदर व्यंग
वाह .. बहुत ही अच्छा लिखा है ।
पानी तो पानी है, पानी जिन्दगानी है, यह लखनऊ ही नहीं, तमाम भारतीय शहरों की कहानी है। बहुत बढि़या और दिलचस्प आपकी पानी-बयानी है।
बधाई मीनू जी ,बहुत सुन्दर जानकारी दी आप ने लखनऊ के बारे मैं,
अपनी माटी की यद् आ गई|
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