(अमानत लखनवी की गज़ल)
है जलवा-ए-तन से दर-ओ-दीवार बसंती
पोशाक जो पहने है मेरा यार बसंती
गैंदा है खिला बाग़ में मैदान में सरसों
सहरा वो बसंती है ये गुलज़ार बसंती
गैंदों के दरख़तों में नुमाया नहीं गेंदे
हर शाख़ सर पे है ये दस्तार बसंती
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
फिरती है मेरे शौक़ पे रंग की पोशाक
ऊदी, अगरी चंपई गुलनार बसंती
है लुत्फ़ हसीनों की दो रंगी का 'अमानत'
दो चार गुलाबी हों तो दो चार बसंती
----अमानत लखनवी
25 comments:
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
subhanallah
बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं.
सादर
पीतवर्णी सुन्दर चित्र, बसन्त आया रे।
वाह ...बहुत ही सुन्दर ये बसन्ती चित्र और शब्द रचना लाजवाब ...।
आपको एवं आपके परिवार को बसंत पंचमी पर हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
बहुत ही सुंदर बासंती पोस्ट. हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही सुंदर बासंती पोस्ट. हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही बढ़िया.
सलाम.
सुन्दर चित्र...
माँ सरस्वती को नमन........बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी......
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
चित्र बहुत सुंदर लगे बचपन मे हम भी बहिनो ओर उस की सहेलियो के संग यह किकली खेलते थे, ओर खुब चक्कर आ जाते थे
tau rampuria ne sach kaha...ek khubsurat basant ritu ki tarah chahkti post...:)
...तो पीला रंग है बसंत का ..उजास का उछाह का ..प्रेम का समर्पण का.. अनुराग का स्नेह का ..सम्बन्ध का संयोग का .... संसर्ग का सुवास का संबल का .....
है लुत्फ़ हसीनों की दो रंगी का 'अमानत'
दो चार गुलाबी हों तो दो चार बसंती
sundar panktiyaan
basan panchmi ki hardik shubkamnaye
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं.
है लुत्फ़ हसीनों की दो रंगी का 'अमानत'
दो चार गुलाबी हों तो दो चार बसंती
आदरणीय मीनू खरे जी
सादर प्रणाम
आपके इस बसंती रंग ने हमें भी रंग दिया ..आपकी रचना बहुत गजब की है ...आपका आभार इस सुंदर प्रस्तुतीकरण के लिए
@केवल जी
जैसा की पोस्ट के शुरू और अंत दोनों में उल्लेखित है यह रचना अमानत लखनवी की है,मैंने इसे केवल आप तक पहुचाया भर है.आपने इसे पसंद किया इसका आभार.
माँ सरस्वती को नमन........बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी.....
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
वाह मीनू जी हर पँक्ति मे बसंती रंग बिखरे पडे हैं बधाई
बहुत प्यारी गजल।
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
सुन्दर चित्रों के साथ वासंतिक रचना. शुभकामनाएं.
बसंत पर भावभीनी रचना के लिए बधाई।
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कृपया पर्यावरण संबंधी इन दोहों का रसास्वादन कीजिए।
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गाँव-गाँव घर-घ्रर मिलें, दो ही प्रमुख हकीम।
आँगन मिस तुलसी मिलें, बाहर मिस्टर नीम॥
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
धन्यवाद लखनवी जी.
आपके, ब्लॉग पर आने से मै सम्मानित महसूस कर रही हूँ.
आप द्वारा प्रेषित पर्यावर्णीय दोहे बहुत पसंद आए.बच्चो को
पर्यावरण संरक्षण,जल संरक्षण की आवश्यकता समझाने सम्बन्धी
रचनाएँ यदि हों तो प्रेषित करें.मै रेडियो के लिए चाहती हूँ.
आपका ब्लॉग भी देखा.फ़ोलोवेर्स वाली पोस्ट बहुत अच्छी लगी.
सादर,
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मीनू खरे
meenu ji
bahut bahut badhai .itni khoobsarat basant ki chhata bikherne ke liye.
tan aur man dono hi basanti rang me rang gaye.
bahut hi badhiya prastuti.
poonam
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के न आंचल में छुपाओ
हो जाए न रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
वाह साहब..कितना प्यारा शे'र कहा है..
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के न आंचल में छुपाओ
हो जाए न रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
वाह साहब..कितना प्यारा शे'र कहा है..
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