Sunday, August 09, 2009

अपराजिता


कल

जब मैं हार जाऊँगी

मैं जानती हूँ

कुछ नहीं होगा.


सब कुछ होगा

वैसा ही पुराना.


वही,

हार में जीत का अहसास ढूँढने की

मेरी आदतन कोशिश

वही निश्चिंतता,


वही मेरे सतत प्रयास

नए बिन्दुओं से नई शुरूआत के


"और निडर"

"और निर्भीक"

शायद अजेय बनने के...


शायद लोग भी क़ायल होंगे

उस नई जीत के नए मायनों के


पर,

यह बात तो मन में रहेगी ही

कि मैं हार गई

एक सच की लडाई.

17 comments:

Arvind Mishra said...

मन के हारे हार है मन के जीते जीत -अच्छी रचना

M VERMA said...

सच कहा है असली सच का सामना तो खुद को ही करना होता है. दुनिया को तो भरमाया भी जा सकता है.
बहुत सुन्दर रचना

aarya said...

किसी ने ठीक ही कहा है की,
हार के लौटेगी जब आवाज मेरी,
इतना गुजुँगा की सदियों तक सुनाई दूंगा.
रत्नेश

सुशीला पुरी said...

use mn ki haar n kahiye......wah to jeet hogi......

ओम आर्य said...

दरअसल सच के लिए लड़ना हीं सच के जीत की शुरुआत है.

डॉ महेश सिन्हा said...

उम्मीद पे दुनिया कायम है वरना लोग तो इसका बंटाधार करने में लगे रहते हैं

Vinay said...

heart touching poem

Shastri JC Philip said...

काव्य को समर्पित आपका चिट्ठा देखा. अच्छा लगा.

टिप्पणी: हर व्यक्ति का जीवन पराजय से भरा है, लेकिन वह यदि उसे सही रीति से लेता है तो वह अपराजित की श्रेणी में पहुंच सकता है.

सुझाव: अक्षर (फाँट) कुच छोटे कर दें. इससे चिट्ठा और अधिक पठनीय हो जायगा.

ईश्वर करे कि आपका चिट्ठा दिनरात प्रगति करे!!

सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

vallabh said...

सत्य परेशान हो सकता है..... पराजित नहीं...
अच्छी रचना है.... बधाई...

अजित वडनेरकर said...

अच्छी कविता ...

Amit K Sagar said...

बहुत खूब! शुक्रिया. जारी रहें.
----

१५ अगस्त के महा पर्व पर लिखिए एक चिट्ठी देश के नाम [उल्टा तीर]
please visit: ultateer.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

कहीं न कहीं ............ haar का दर्द भी दिल में chaaya रहता है........... ये बात सच है.............. बहुत ही गहरी बात को शब्दों से कहा है आपने ..............safal तरीके से ............ लाजवाब

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

पर,

यह तो मन में रहेगा ही

कि मैं हार गई

एक सच की लडाई.

एक सन्देशयुक्त पठनीय एवम सत्यता के करीब पाठ।

आभार/मगलकामनाए
हे प्रभु यह तेरापन्थ

डॉ .अनुराग said...

लगे रहिये ..यहाँ उसी जज्बे से जमे रहना भी एक युद्घ सरीखा है

shama said...

ये छोटी लेकिन , विराट रचनाएँ ...! इनके बारेमे क्या कहें ?

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

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http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

aap jeet jaaogi.....sach kee ladaayi....kyunki yah jeetni hai....ham sabko.....!!!!

Satish Saxena said...

पहली बार आया हूँ , प्रभावशाली शब्द सामर्थ्य ! शुभकामनायें

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