उस दिन
जबसे बारिश नहीं हुआ करेगी, न होंगे बादल, न आसमान,
उस दिन
जबसे हवाएँ नहीं बहा करेंगी ,वृक्ष नहीं होंगे, न ही उनकी टहनियाँ, न पत्तियाँ, न कोपलें.
जब समुद्र तट पर नहीं देखी जा सकेंगी चौपाटियाँ,
आना बंद कर देंगे वहाँ हमेशा के लिए
भेलपुरी/पानीपूरी वाले.
कभी नहीं दिखेंगी वहाँ जब
पल में रचने वाली, मेहँदी लगानेवालियाँ.
बेले के गजरे जब मुरझा जाएँगे सदा के लिए
और
मोगरे की लड़ियाँ बिकनी बंद हो जाएंगी जबसे
हमेशा के लिए.
जब समुद्र की लहरें नहीं होंगी,
गीली रेत पर पैरों के निशाँ नहीं होंगे,
और लहरों में भीगने से बचने के लिए,
जींस/शलवार को घुटनों तक चढा लेने की हिदायतें भी न होंगी जब!
जब सूरज न होगा, ना ही उसकी रश्मियाँ, ना ही धूप ही बची रह जाएगी
तारे नहीं होंगे
जिस दिन साँसे भी अस्तित्व में नहीं रह जाएंगी
और चाँद भी कहाँ होगा भला तब?
नदी, झील, झरने, सब थम जाएंगे
धरती, जल, मिट्टी
कुछ भी न बचे होंगे जब
उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के नर्म रेशों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.
28 comments:
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा....
No wards... what a beauty in each ward... this should be only love...
pure & deep...that person is lucky... whom you have wrote this poem... truly
"एक कविता सिर्फ़ तुम्हारे लिए"
एक पंक्ति में पूरी की पूरी कविता समेत दी.
एक कविता में पूरी ज़िन्दगी
का सार तत्व
शाहिद "अजनबी"
उत्कट अनुभूति एहसास की अभिव्यक्ति --
सुन्दर
उस दिन भी शेष रह जायेगी ...दुआ है की कोई इच्छा शेष ना रहे ..शानदार अभिव्यक्ति ..!!
बहुत उम्दा!!
''उस दिन भी ...रुई के फाहे सी मेरी .........अपरिमित इच्छा '' तुम्हारे लिए . वाह क्या बात है !!!!!!!! बधाई
मीनू जी
बहुत सुंदर जज्बात हैं। लेकिन एक शब्द मुझे खटक रहा है आप पुन: देखें -
उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के फाहों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती
रूई के फाहों सी - में फाहो शब्द ठीक नहीं है, इसे धागों सा या तंतु सा करने पर उचित रहेगा। फाहा एक टुकड़ा होता है। शायद मैं गलत हूँ लेकिन मुझे जो लगा मैंने प्रेमवश ही लिखा है, बुरा नहीं माने।
धन्यवाद डॉ.अजीत. मैने वांछित परिव्रर्तन कर दिया है. कपास के फूल फूट कर जब हवा में तैरते हैं उसे ही अभिव्यक्त करना चाहती थी. इसके लिए यदि तंतु से भी अच्छा कोई शब्द सूझे तो बताने का अनुरोध है.
अद्वितीय सुन्दरता और अपनापन है रचना में
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
इच्छाएं रुई के रेशों सदृश भी तो हो सकती हैं -कविता बहुत उम्दा !
'ek kavita sirf tumhare liye'ye kavita parkar apke bhitar chal rahe antarduand ka ahsas hota hai. bahut khubsurat abhivyakti.
रंग जम रहा है मीनू जी...
यह पा लेने की अपरिमित इच्छा ही हमारी प्राण वायु है...जिस दिन यह चुक जाएगी...जीवान अर्थहीन हो जाएगा...समाप्त हो जाएगा......कविता के ज़रिए प्रेम का यह अनश्वर रूप याद दिलाने के लिए ..साधुवाद..
उस दिन भी
शेष रह जाएगी .......
.......मेरी अपरिमित इच्छा....
गहरी अभिव्यक्ति.... बधाई
बहुत ही खुबसूरत अहसास की कविता है....
प्यार पर भरपूर यकीन की कविता है यह....
जब कुछ नहीं बचेगा तब भी होगा प्यार....
बहुत बहुत मुबारक......अमरजीत कौंके
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा....
प्रेम और सम्वेदना की पराकाष्ठा ! जब सब कुछ खत्म हो जाएगा तब भी प्रेम शेष रह जाएगा. जब हम तुम भी न होंगे तब भी प्रेम शेष रह जाएगा.
आज के युग में ऐसा दुर्लभ प्रेम किस्मतवालों को ही नसीब होता है. पूरी कविता में एक लय सी झलकती है, ढाई अक्षर वाली अनूठी लय जो भौतिक प्रेम से परे आध्यात्मिक प्रेम की याद दिलाती है. इससे ज्यादा कुछ कहने को शब्द कम पड रहे हैं. बधाई मीनू खरे जी.
antim pankti ne chhoo liya ma'am.. bahut khoobsurat
प्यार भोतित्कता से एकदम परे है ...उसे किसी वास्तु से नहीं जोड़ा जा सकता ...आपकी कविता शायद यही कहना चाहती है ...प्यार एक पवित्र भावना है ...शायद इसलिए आपने कहा ..जब साँसे भी अस्तित्व में नहीं रह जाएँगी ...कुछ भी न बचा होगा तब भी शेष रह जायेगी तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा ...जाने क्यों आपकी कविता पढ़कर एक पुराना गाना याद आ गया ...कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे , तड़पता हुआ जब तुम्हे छोड़ दे ...तब तुम मेरे पास आना प्रिय , मेरा दर खुला है , खुला ही रहेगा , तुम्हारे लिए ...
अचानक से पहुंच गये आपके ब्लॉग पर। बहुत ही अच्छी कविता।
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.
really......... no words to express ........ speechless here...... n dis the reward......
Regards
dil chho liya kavita ne,sach me...kuchh bhi nahi hoga jab tab bhi aapke ahsaas kavita ke roop me zinda rahenge...
कविता में किसी चीज़ के ना रहने की कल्पना की गयी है... और अंततः ....
... लेकिन कविता में हर चीज़ समेत दिया है आपने...
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा....
अदभुत अभिव्यक्ति बधाई
उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के नर्म रेशों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.
मीनू जी इतनी विशाल इच्छा ...वो भी पाने की ....???
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें।
Veri nice one..........
kitni achchhi kavita ban rahi thi, ant me kya kar diya!
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