Thursday, August 20, 2009

एक कविता सिर्फ़ तुम्हारे लिए

उस दिन
जबसे बारिश नहीं हुआ करेगी, न होंगे बादल, न आसमान,

उस दिन
जबसे हवाएँ नहीं बहा करेंगी ,वृक्ष नहीं होंगे, न ही उनकी टहनियाँ, न पत्तियाँ, न कोपलें.


जब समुद्र तट पर नहीं देखी जा सकेंगी चौपाटियाँ,
आना बंद कर देंगे वहाँ हमेशा के लिए
भेलपुरी/पानीपूरी वाले.
कभी नहीं दिखेंगी वहाँ जब
पल में रचने वाली, मेहँदी लगानेवालियाँ.



बेले के गजरे जब मुरझा जाएँगे सदा के लिए
और
मोगरे की लड़ियाँ बिकनी बंद हो जाएंगी जबसे
हमेशा के लिए.



जब समुद्र की लहरें नहीं होंगी,
गीली रेत पर पैरों के निशाँ नहीं होंगे,
और लहरों में भीगने से बचने के लिए,
जींस/शलवार को घुटनों तक चढा लेने की हिदायतें भी न होंगी जब!



जब सूरज न होगा, ना ही उसकी रश्मियाँ, ना ही धूप ही बची रह जाएगी


तारे नहीं होंगे


जिस दिन साँसे भी अस्तित्व में नहीं रह जाएंगी


और चाँद भी कहाँ होगा भला तब?
नदी, झील, झरने, सब थम जाएंगे


धरती, जल, मिट्टी
कुछ भी न बचे होंगे जब


उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के नर्म रेशों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती

तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.

28 comments:

Anonymous said...

तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा....


No wards... what a beauty in each ward... this should be only love...
pure & deep...that person is lucky... whom you have wrote this poem... truly

"एक कविता सिर्फ़ तुम्हारे लिए"

shahid "ajnabi" said...

एक पंक्ति में पूरी की पूरी कविता समेत दी.
एक कविता में पूरी ज़िन्दगी
का सार तत्व

शाहिद "अजनबी"

M VERMA said...

उत्कट अनुभूति एहसास की अभिव्यक्ति --
सुन्दर

वाणी गीत said...

उस दिन भी शेष रह जायेगी ...दुआ है की कोई इच्छा शेष ना रहे ..शानदार अभिव्यक्ति ..!!

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

सुशीला पुरी said...

''उस दिन भी ...रुई के फाहे सी मेरी .........अपरिमित इच्छा '' तुम्हारे लिए . वाह क्या बात है !!!!!!!! बधाई

अजित गुप्ता का कोना said...

मीनू जी

बहुत सुंदर जज्‍बात हैं। लेकिन एक शब्‍द मुझे खटक रहा है आप पुन: देखें -
उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के फाहों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती
रूई के फाहों सी - में फाहो शब्‍द ठीक नहीं है, इसे धागों सा या तंतु सा करने पर उचित रहेगा। फाहा एक टुकड़ा होता है। शायद मैं गलत हूँ लेकिन मुझे जो लगा मैंने प्रेमवश ही लिखा है, बुरा नहीं माने।

Meenu Khare said...

धन्यवाद डॉ.अजीत. मैने वांछित परिव्रर्तन कर दिया है. कपास के फूल फूट कर जब हवा में तैरते हैं उसे ही अभिव्यक्त करना चाहती थी. इसके लिए यदि तंतु से भी अच्छा कोई शब्द सूझे तो बताने का अनुरोध है.

Vinay said...

अद्वितीय सुन्दरता और अपनापन है रचना में
---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव

Arvind Mishra said...

इच्छाएं रुई के रेशों सदृश भी तो हो सकती हैं -कविता बहुत उम्दा !

vineeta awasthi said...
This comment has been removed by a blog administrator.
vineeta awasthi said...

'ek kavita sirf tumhare liye'ye kavita parkar apke bhitar chal rahe antarduand ka ahsas hota hai. bahut khubsurat abhivyakti.

ओम आर्य said...

रंग जम रहा है मीनू जी...

RAJESHWAR VASHISTHA said...

यह पा लेने की अपरिमित इच्छा ही हमारी प्राण वायु है...जिस दिन यह चुक जाएगी...जीवान अर्थहीन हो जाएगा...समाप्त हो जाएगा......कविता के ज़रिए प्रेम का यह अनश्वर रूप याद दिलाने के लिए ..साधुवाद..

vallabh said...

उस दिन भी
शेष रह जाएगी .......
.......मेरी अपरिमित इच्छा....
गहरी अभिव्यक्ति.... बधाई

Dr. Amarjeet Kaunke said...

बहुत ही खुबसूरत अहसास की कविता है....
प्यार पर भरपूर यकीन की कविता है यह....
जब कुछ नहीं बचेगा तब भी होगा प्यार....
बहुत बहुत मुबारक......अमरजीत कौंके

drsbharti said...

तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा....

प्रेम और सम्वेदना की पराकाष्ठा ! जब सब कुछ खत्म हो जाएगा तब भी प्रेम शेष रह जाएगा. जब हम तुम भी न होंगे तब भी प्रेम शेष रह जाएगा.
आज के युग में ऐसा दुर्लभ प्रेम किस्मतवालों को ही नसीब होता है. पूरी कविता में एक लय सी झलकती है, ढाई अक्षर वाली अनूठी लय जो भौतिक प्रेम से परे आध्यात्मिक प्रेम की याद दिलाती है. इससे ज्यादा कुछ कहने को शब्द कम पड रहे हैं. बधाई मीनू खरे जी.

केतन said...

antim pankti ne chhoo liya ma'am.. bahut khoobsurat

Renu goel said...

प्यार भोतित्कता से एकदम परे है ...उसे किसी वास्तु से नहीं जोड़ा जा सकता ...आपकी कविता शायद यही कहना चाहती है ...प्यार एक पवित्र भावना है ...शायद इसलिए आपने कहा ..जब साँसे भी अस्तित्व में नहीं रह जाएँगी ...कुछ भी न बचा होगा तब भी शेष रह जायेगी तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा ...जाने क्यों आपकी कविता पढ़कर एक पुराना गाना याद आ गया ...कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे , तड़पता हुआ जब तुम्हे छोड़ दे ...तब तुम मेरे पास आना प्रिय , मेरा दर खुला है , खुला ही रहेगा , तुम्हारे लिए ...

जगदीश भाटिया said...

अचानक से पहुंच गये आपके ब्लॉग पर। बहुत ही अच्छी कविता।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.

really......... no words to express ........ speechless here...... n dis the reward......

Regards

डिम्पल मल्होत्रा said...

dil chho liya kavita ne,sach me...kuchh bhi nahi hoga jab tab bhi aapke ahsaas kavita ke roop me zinda rahenge...

सागर said...

कविता में किसी चीज़ के ना रहने की कल्पना की गयी है... और अंततः ....

... लेकिन कविता में हर चीज़ समेत दिया है आपने...

निर्मला कपिला said...

तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा....
अदभुत अभिव्यक्ति बधाई

हरकीरत ' हीर' said...

उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के नर्म रेशों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती

तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.

मीनू जी इतनी विशाल इच्छा ...वो भी पाने की ....???

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें।

GAJANAN RATHOD said...

Veri nice one..........

रवीन्द्र दास said...

kitni achchhi kavita ban rahi thi, ant me kya kar diya!

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