औरत-
पैर की जूती ही सही
मगर
क्या यह भी ध्यान है (?)
कि
जूती के काट लेने से
ज़ख्मी हो जाएगा
तुम्हारा पैर
और
लँगडा कर चलने पर मजबूर हो जाओगे तुम
उसी महफ़िल में
जहाँ
औरत को पैर की जूती कहने की शेखी बघार रहे हो तुम?
Thursday, August 27, 2009
Monday, August 24, 2009
शुभम् करोति कल्याणम्
Thursday, August 20, 2009
एक कविता सिर्फ़ तुम्हारे लिए
उस दिन
जबसे बारिश नहीं हुआ करेगी, न होंगे बादल, न आसमान,
उस दिन
जबसे हवाएँ नहीं बहा करेंगी ,वृक्ष नहीं होंगे, न ही उनकी टहनियाँ, न पत्तियाँ, न कोपलें.
जब समुद्र तट पर नहीं देखी जा सकेंगी चौपाटियाँ,
आना बंद कर देंगे वहाँ हमेशा के लिए
भेलपुरी/पानीपूरी वाले.
कभी नहीं दिखेंगी वहाँ जब
पल में रचने वाली, मेहँदी लगानेवालियाँ.
बेले के गजरे जब मुरझा जाएँगे सदा के लिए
और
मोगरे की लड़ियाँ बिकनी बंद हो जाएंगी जबसे
हमेशा के लिए.
जब समुद्र की लहरें नहीं होंगी,
गीली रेत पर पैरों के निशाँ नहीं होंगे,
और लहरों में भीगने से बचने के लिए,
जींस/शलवार को घुटनों तक चढा लेने की हिदायतें भी न होंगी जब!
जब सूरज न होगा, ना ही उसकी रश्मियाँ, ना ही धूप ही बची रह जाएगी
तारे नहीं होंगे
जिस दिन साँसे भी अस्तित्व में नहीं रह जाएंगी
और चाँद भी कहाँ होगा भला तब?
नदी, झील, झरने, सब थम जाएंगे
धरती, जल, मिट्टी
कुछ भी न बचे होंगे जब
उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के नर्म रेशों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.
जबसे बारिश नहीं हुआ करेगी, न होंगे बादल, न आसमान,
उस दिन
जबसे हवाएँ नहीं बहा करेंगी ,वृक्ष नहीं होंगे, न ही उनकी टहनियाँ, न पत्तियाँ, न कोपलें.
जब समुद्र तट पर नहीं देखी जा सकेंगी चौपाटियाँ,
आना बंद कर देंगे वहाँ हमेशा के लिए
भेलपुरी/पानीपूरी वाले.
कभी नहीं दिखेंगी वहाँ जब
पल में रचने वाली, मेहँदी लगानेवालियाँ.
बेले के गजरे जब मुरझा जाएँगे सदा के लिए
और
मोगरे की लड़ियाँ बिकनी बंद हो जाएंगी जबसे
हमेशा के लिए.
जब समुद्र की लहरें नहीं होंगी,
गीली रेत पर पैरों के निशाँ नहीं होंगे,
और लहरों में भीगने से बचने के लिए,
जींस/शलवार को घुटनों तक चढा लेने की हिदायतें भी न होंगी जब!
जब सूरज न होगा, ना ही उसकी रश्मियाँ, ना ही धूप ही बची रह जाएगी
तारे नहीं होंगे
जिस दिन साँसे भी अस्तित्व में नहीं रह जाएंगी
और चाँद भी कहाँ होगा भला तब?
नदी, झील, झरने, सब थम जाएंगे
धरती, जल, मिट्टी
कुछ भी न बचे होंगे जब
उस दिन भी
शेष रह जाएगी
रुई के नर्म रेशों सी
ब्रह्माण्ड में तिरती
तुम्हे पा लेने की मेरी अपरिमित इच्छा.
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Tuesday, August 18, 2009
सावन
जब जब भी
बेतरह बरसती हैं
मेरी आँखें ,
बेहद हैरानी होती है
कि
मन के किसी कोने में
अब भी सावन बसता है.
और
जब जब भी
बेतरह बरसती हैं
मेरी आँखें ,
बेहद खुशी भी होती है
कि
मन के किसी कोने में
अब भी सावन बसता है .
बेतरह बरसती हैं
मेरी आँखें ,
बेहद हैरानी होती है
कि
मन के किसी कोने में
अब भी सावन बसता है.
और
जब जब भी
बेतरह बरसती हैं
मेरी आँखें ,
बेहद खुशी भी होती है
कि
मन के किसी कोने में
अब भी सावन बसता है .
Saturday, August 15, 2009
वन्दे मातरम!
आज स्वाधीनता दिवस है. मेरा आज का दिन विधान सभा समारोह की कवरेज और उसकी रेडियो-रिपोर्ट बनाने में बीतता रहा हैं. पूरी कवरेज टीम की पसीनाबहाऊ सरगर्मियों का बैकग्राउंड समेटे यह रिपोर्ट खासी थकाने वाली होती है. आज कई वर्षों बाद मेरी ड्यूटी कवरेज में नही लगाई गई है. यानी आज के दिन मैं फ़्री ! परिवारजन कई वर्षों बाद आज इस तरह खुश दिखे.स्वतंत्रता दिवस के दिन मेरा भी स्वतंत्र होना सबके लिए सुखद आश्चर्य है.
सुबह ऑफ़िस के ध्वजारोहण समारोह के बाद से समझ में नही आ रहा क्या करूँ. घरवालों के डर से यह कहने की हिम्मत नही है कि आज की छुट्टी बेरंग लग रही है. कैसे उन्हे बताऊँ कि आज के दिन की रेडियो रिपोर्ट मुझ जैसी साधारण ब्रॉड्कास्टर के लिए, मेरी तरफ़ से एक छोटी सी पुष्पाँजलि होती है भारत माँ के चरणों में ... पर कौन सुनेगा मेरी? हमेशा आप ही की ड्यूटी क्यों लग जाती है ऐसे कामों में? सरकारी नौकरी में ज़्यादा काम करने से तनख्वाह बढ् के नही मिल जाएगी. ..घर वालों की वही पुरानी दलीलें...पर फिर भी मन विचलित है.
एकाएक याद आ जाती है मई 2009 की 19 तारीख. ईरान की राजधानी तेहरान में आयोजित 10वें अंतर्राष्ट्रीय रेडियो फ़ेस्टिवल का अंतिम दिन. विश्व के 42 देशों से आए रेडियो कार्यक्रमों का कम्पटीशन जिसमें 121 फाइनल प्रविष्टियाँ है और जिसका रिज़ल्ट आज आउट होना हैं.एक वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व मेरे ज़िम्मे है. मैं बहुत नर्वस हूँ. पता नही क्या रिज़ल्ट होगा. अपने देश के लिए आज पूरी दुनिया के सामने सम्मान अर्जित कर पाऊँगी या खाली हाथ देश वापस लौटूँगी? मन कर रहा है किसी मन्दिर जाकर मनौती मान आऊँ, पर इस देश में आस पास कोई मन्दिर नही दीखता ..
शाम हो गई है.समारोह में भाग लेने के लिए मैं उस विराट हॉल में प्रवेश कर रही हूँ. दुनिया के 42 देशों के ध्वज कतार से लगे हैं. अपने तिरंगे के सामने मै ठिठक कर खडी हो जाती हूँ ,सबकी नज़र बचा कर, धीरे से तिरंगे को छू कर, भारत माँ से प्रार्थना करती हूँ " अगर आज भारत को शील्ड मिल जाती है तो लौटते में, मैं इसी तिरंगे के साथ फोटो खिचवाऊँगी."
भारत माँ ने मेरी प्रार्थना सुन ली है. मै शील्ड लेकर फोटो खिंचवा रही हूँ और भावुक स्वर में गा रही हूँ वन्दे मातरम!.
वन्दे मातरम! सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम शस्य श्यामलाम मातरम! शु्भ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम फुल्ल कुसुमितद्रुमदल शोभणीम. सुहासिनीम सुमधुर भाषणीम. सुखदाम् वरदाम् मातरम्. वन्दे मातरम!
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Tuesday, August 11, 2009
लड्की
लड्की-
घर के दरवाज़े पर पडा कूडा...
जो
यदि ज़्यादा दिन तक पडा रह गया
तो
सड कर बीमार कर देगा
घर भर को.
इसीलिए
जो मेहनताना माँग रहा है
दे दो कूडेवाले को
उठा कर ले जाए इसे
जल्दी से जल्दी
साफ-सुथरा दरवाज़ा देखे
बरसों बीत चुके हैं.
घर के दरवाज़े पर पडा कूडा...
जो
यदि ज़्यादा दिन तक पडा रह गया
तो
सड कर बीमार कर देगा
घर भर को.
इसीलिए
जो मेहनताना माँग रहा है
दे दो कूडेवाले को
उठा कर ले जाए इसे
जल्दी से जल्दी
साफ-सुथरा दरवाज़ा देखे
बरसों बीत चुके हैं.
Sunday, August 09, 2009
अपराजिता
कल
जब मैं हार जाऊँगी
मैं जानती हूँ
कुछ नहीं होगा.
सब कुछ होगा
वैसा ही पुराना.
वही,
हार में जीत का अहसास ढूँढने की
मेरी आदतन कोशिश
वही निश्चिंतता,
वही मेरे सतत प्रयास
नए बिन्दुओं से नई शुरूआत के
"और निडर"
"और निर्भीक"
शायद अजेय बनने के...
शायद लोग भी क़ायल होंगे
उस नई जीत के नए मायनों के
पर,
यह बात तो मन में रहेगी ही
कि मैं हार गई
एक सच की लडाई.
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Thursday, August 06, 2009
सलाह
सलाह
क्या
आँगन का बल्ब
फ्यूज़ हो गया है ?
पिछवाडे
एक पिता,
अपनी बिटिया की तारीफें
लोगों से कर रहा है,
उसकी आँखों की चमक
उधार माँग ले ...
काम भर की रौशनी
आराम से मिल जायेगी
आँगन में .
क्या
आँगन का बल्ब
फ्यूज़ हो गया है ?
पिछवाडे
एक पिता,
अपनी बिटिया की तारीफें
लोगों से कर रहा है,
उसकी आँखों की चमक
उधार माँग ले ...
काम भर की रौशनी
आराम से मिल जायेगी
आँगन में .
Tuesday, August 04, 2009
Sunday, August 02, 2009
घरेलू महिला
घरेलू महिला,
कुछ उल्टे, कुछ सीधे
फंदों के बीच
फँसी एक सलाई ...
जिसके बिना
स्वेटर की उत्पत्ति संभव नहीं,
पर फिर भी
जिसका कोई अधिकार नहीं
स्वेटर के रंग, आकार और डिजाईन पर .
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मीनू खरे का ब्लॉग,
हिंदी कविता
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