Tuesday, January 26, 2010

हर धडकन वतन के लिए








चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक.


मातृभूमि को नमन,हर स्वर गाए जनगणमन... आज मौक़ा था राजभवन,लखनऊ में आयोजित 61वें गणतंत्र दिवस समारोह का. जब तिरंगी पट्टियों से सजी,बन्दनवारों,तोरणों और पुष्पों से सुसज्जित लखनऊ नगरी के उल्लास और उत्साह के आगे कुहासे की धुन्ध भी मानो शरमा कर एक किनारे हट गई और सामने आया भारत के भविष्य सा जगमगाता सूरज, भारत माँ की चरणवन्दना को...चुस्त और चौकस सुरक्षा-व्यवस्था के बीच प्रात: ठीक 9:30 बजे उ.प्र.के राज्यपाल श्री बी.एल.जोशी ने जैसे ही ध्वजारोहण किया, राजभवन राष्ट्रगान की ओजपूर्ण स्वरलहरियों से गूँज उठा. सारे जहाँ से अच्छा और वन्देमातरम जैसी धुनों को बजाते बैंड का उत्साह देखते बनता था. संक्षिप्त किंतु अतिमहत्वपूर्ण राजभवन के इस समारोह में उपस्थित हर दिल मानो यह कह रहा था कि हर धड़्कन वतन के लिए, सब अर्पण वतन के लिए. इस अवसर पर लखनऊ विधान सभा के सामने एक भव्य परेड की सलामी भी राज्यपाल महोदय ने ली. इस अवसर पर हम आपके लिए लाए हैं, कार्यक्रम की एक ऑडियो रिपोर्ट, कुछ तस्वीरे और कुछ देशभक्ति गीतों के संगीतबद्ध ऑडियो जो मेरे ब्लॉगर मित्रों ने कुछ समय पूर्व मेरे अनुरोध पर खास तौर से लिखे थे और मैने उन गीतों को संगीतबद्ध करवाने का वायदा किया था. सबसे पहले प्रस्तुत है राजभवन के आयोजन की ऑडियो रिपोर्ट:




अब प्रस्तुत है श्री पंकज सुबीर जी का गीत और उसका संगीतमय ऑडियो. संगीत हेमसिंह का और गायक देवेश चतुर्वेदी----

बुलबुल हैं हम जान हमारी है अपने गुलशन के लिये
देखो सीना चीर हमारा हर धड़कन है वतन के लिये
भारत की माटी को अपने शीश पे हमने लगाया है
लेके तिरंगा शान से हमने वंदे मातरम गाया है
जब भी पड़ी ज़रूरत तो हम आगे बढ़ के लुटा देंगें
खून का इक इक कतरा अपने जाने से प्यालरे चमन के लिये
हर धड़कन है वतन के लिये, हर धड़कन है वतन के लिये
पैदा हुए यहीं पर इसकी ख़ाक में ही मिल जाएंगे
मज़हब ज़ात हो कुछ भी बस हिन्दुस्तानी कहलाएंगे
जन्नत भी गर मिले तो हंस के ठुकरा देंगे हम उसको
काश्मीजर से कन्याे कुमारी तक फैले आंगन के लिये
हर धड़कन है वतन के लिये, हर धड़कन है वतन के लिये





दिगम्बर नासवा जी का गीत और उसका संगीतमय ऑडियो. संगीत हेमसिंह का और गायक देवेश चतुर्वेदी---

हर धड़कन वतन के लिए
यह जीवन वतन के लिए
इस धरती से जो पाया है
सब अर्पण वतन के लिए
मुक्त धरा हो मुक्त पवन
मुक्त गगन वतन के लिए
रग रग से फिर गूँजे अपने
जन गन मन वतन के लिए
भाषा या हो धर्म अलग पर
एक हो मन वतन के लिए
माँ मुझको भी टीका कर दो
यह तन मन वतन के लिए





सुलभ सतरंगी का गीत और संगीतमय ऑडियो. संगीत गोपाल दास का ---

है जीवन वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए ..

आवाज़ हम उठाये वतन के लिए
खून अपना बहायें वतन के लिए
दुश्मन को सबक सिखायें वतन के लिए
हमारा तन अर्पण वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए..

तरक्की की राह में हम चलते जायें
हमारी कोशिश है नफरतों को मिटायें
हर कदम पर दिया प्रेम का जलायें
हम जीये हमवतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए..

वतन के वास्ते जीयें जायें हम
कार्य दुष्कर सारे किये जायें हम
बाधाओं से कभी न घबरायें हम
हमारा समर्पण वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए..

है जीवन वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए ..




गिरीश पंकज जी का गीत और उसका संगीतमय ऑडियो. संगीत गोपालदास का ---

हर धड़कन वतन के लिए
हम जिएंगे अमन के लिए
देश मेरा सलामत रहे...
हम मरें इस सपन के लिए
हम है इन्सां नहीं है पशु
जीते है जो कि धन के लिए
हमको जीना है मरना यहाँ
अपने सुन्दर चमन के लिए
कांटे राहों से हटते सदा
बढ़ने वाले चरन के लिए
रोशनी को बचाएँगे हम
हर किसी अंजुमन के लिए






एक नज़्म मेरी भी इसी श्रँखला में, संगीतकार और गायिका रशिम चौधरी, बाँसुरी पर हरिमोहन श्रीवास्तव और सितार पर सिब्ते हसन हैं--


तेरे दामन पर ऐ माँ

जब भी आया काला साया
हमने भी तो खून बहाया

हमने भी तो खून बहाया
पर ऐसी क्या बात हुई माँ

शक के काले साए में अब
क्यूँ तेरा इक बेटा आया?
क्यूँ तेरा इक बेटा आया?

कठिन सवाल खड़ा है ऐ माँ
तुझको ही कहना होगा माँ

हम सब बच्चे तेरे ही हैं
भारत हम सबका ही वतन

सबके तन में एक लहू है
तेरे लिए सबकी धड़कन.


20 comments:

Arvind Mishra said...

वाह सुन्दर गीत और नयनाभिराम दृश्य ! बहुत आभार !

प्रज्ञा पांडेय said...

bahut sunder hain saare drishya aur saare geet aapki chusti aur furti kaabile taareef hai . .. dil se dhanyvaad

Mithilesh dubey said...

हर एक गीत जैसे सिधे दिल तक उतर गया, आपका बहुत-बहुत आभार इसे हमें तक पहुचाने के लिए ।

Ajay said...

Bahut madhur geet hai , Greetings on Republic Day

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

दी.... यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

क्या बात है!
ब्लॉगरों के गीत/नज़्म तो वाकई सुरीले हैं। आभार इस प्रविष्टि के लिए!

सुशीला पुरी said...

मुझे तोड़ लेना वनमाली देना तुम उस पथ पर फेंक....
........वाह अद्भुत प्रस्तुति मीनू जी ,बहुत बहुत बधाई .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...गीत बहुत जोश भरने वाले हैं...बधाई

girish pankaj said...

ati sundar. socha nahi tha, ki itani badiyaa cheez ban jayegee. har rachanaa ko sangeetkaro v gayako ne taraash kar marmsparshi bna diya. aapko bhi sadhuvaad...ki jo vadaa kiya, use poora kar ke bhi dikhayaa. dhnyvaad. bhavishy me bhi aap ke liye rachanaatmak sahyog de kar achchha lagega.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत सुन्दर. सांस्कृतिक मूल्यों से परिपूर्ण. राष्ट्रीयता से लबरेज़ प्रस्तुति.
शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि पर आधारित सभी गीत सुन्दर हैं.
बहुत आनंद आया. मीनू जी को धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

मीनू जी ....... सभी चित्र लाजवाब हैं ...... और सारे गीत भी एक से बढ़ कर एक ... समा बँध गया ..... आवाज़ और संगीत का जादू अपना असर दिखा रहा है ......... आपका बहुत बहुत शुक्रिया ........

Saleem Khan said...

Bahut sundar!!!

"तरक्की की राह में हम चलते जायें
हमारी कोशिश है नफरतों को मिटायें
हर कदम पर दिया प्रेम का जलायें
हम जीये हमवतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए.."

रचना दीक्षित said...

वाह मीनू जी वाह क्या सच्चे देश भक्त की तरह पोस्ट लिखी है. गीत लिखने वाले हमारे ब्लोगर बंधुओं ने, आपने और आपको सहयोग देने वाले दूसरे लोगों ने बड़ी कड़ी मेहनत की है. इस मेहनत फल मीठा ही नहीं बहुत मीठा है माँ (मातृभूमि) के प्यार की तरह. आगे भी आपसे ऐसी आशा रखती हूँ. आपको व आपकी पूरी टीम को धन्यवाद वन्दे मातरम

Himanshu Pandey said...

कहीं दिक्कत आ रही है, ऑडियो सुन नहीं पा रहा । फिर-फिर कोशिश करूँगा !
चित्र मोहक हैं । आभार ।

पूनम श्रीवास्तव said...

Meenu ji ,
Bahut hee sundar lagee yah post .yadyapi net kii gadabdee geet sunane men badhak ban rahee thee.
Poonam

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत सुंदर, चित्र और कविताएं दोनो।
--------
घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।

ghughutibasuti said...

वाह बहुत बढ़िया गीत सुनवाए वे भी साथी ब्लॉगरों के ! आभार।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

sachuch hridy desh bhakti ke pavan
rang me rang gyaa ! hardik badhai !

सागर नाहर said...

आदरणीय मीनूजी
सुलभ सतरंगी के गीत वतन के लिये और आपका गीत "तेरे दामन" ये दो गीत खासकर बहुत पसन्द आये। बाकी गीत "ठीक" लगे।
सुलभ जी के गीत "है जीवन वतन के लिए" के संगीत के साथ गायक की आवाज भी बहुत अच्छी है, सीधे दिल में उतरने वाली।
धन्यवाद।

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