औरतों में प्रतिभा नही होती
पर होती हैं उनके पास बिन्दी, चूड़ियाँ, काजल..
औरतों मेहनत भी नही कर पातीं
पर उन्हे आता है चहकना, खिलखिलाना, मुस्कुराना...
औरतों के लिए आगे बढ़ना मुश्किल नही होता
बड़ी आसानी से
वे बढ़ जाती हैं आगे
अगले को
अपनी मुस्कान का "गिफ़्ट-पैक"
पकड़ा कर ...
वे पा लेती हैं ऊँचाइयाँ
बस खिलखिला कर ..
कर देती हैं द्रवित
मोती जैसे आँसुओं से.
पा जाती हैं औरतें, बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ, बड़ी आसानी से.
शो-बिज़नेस का ज़माना है
और
औरतें होती हैं
शो-पीस की मानिन्द ...
कोई ज़रूरत ही कहाँ है इन्हे
परिश्रम की ?
कोई ज़रूरत ही कहाँ है इन्हे
प्रतिभा की?
इन्हे तो आगे बढ़्ना ही बढ़्ना है
यह नहीं बढ़ेंगी तो और कौन बढ़ेगा आगे?
इन्दिरा, लता, महादेवी, किरन बेदी
सभी प्रतिभाहीन
एक तरफ़ से.
33 comments:
क्या खूब कटाक्ष किया है. बहुत खूब
वाह !!! बहुत ही लाजवाब कटाक्ष....बढियां जवाब दिया आपने......
बहुत ही खुब मीनू जी
बिल्कुल सटीक कटाक्ष करी है आपने .........
बहुत बहुत आभार
ओम
बहुत ही सुन्दर,
गंगा तुम टेढी क्यों चलती हो,
दुष्टों को शिव कर देती हो,
गजब!!!!!!!!! क्या मखमली ......मारा है आपने ,मै तो हतप्रभ हूँ इतनी गहरी संवेदना और इतना तीखा कटाक्ष .
मीनू जी कुछ तो सचाई है ही कटाक्ष में। लेकिन मैं इसे गलत नहीं मानता। माधुर्य नारी का सहज गुण है। ... वैसे ही जैसे परुषता पुरुष की। लेकिन एक सीमा के आगे मेरिट ही चलता है।
इन्दिरा, लता, महादेवी, किरन बेदी आदि मेरिट वाले नारियाँ थीं/हैं - किसी से कम नहीं।
बहुत ही खुब मीनू जी
purushon ko unki hi bhasha me achha jabab diya hai aapne...aksar naari ki uplabdhiyon ko inhi sangyaon se nawaaz kar kam karne ki koshish ki jaati hai..
एक और नाम भी आपके कटाक्ष को संभालता है- सुश्री मीनू खरे!
पुरुष प्रधान समाज उसे मिलने वाली किसी भी चुनौती को ऐसे ही झूठे दंभ युक्त तर्कों से कमतर आंकने की कोशिश करता है जिनका ज़िक्र आपने कविता में किया है.एक किस्म का पूर्वाग्रह भी मन में लम्बे अरसे से रहा है जो स्त्री की किसी भी उपलब्धि को सहज स्वीकार नहीं कर पाता.
सार्थक,गहन भाव.
मीनू जी सही जवाब दिया है | बढिया है |
औरतों में प्रतिभा नही होती
पर होती हैं उनके पास बिन्दी, चूड़ियाँ, काजल.।
इतने में ही सारी कहानी कह दी आपने ।
आभार !
इसे कहते हैं नारी को हेय समझने वालों के गाल पर करारा चाँटा!!!
एक बहुत ही सुन्दर रचना !
शो-बिज़नेस का ज़माना है
और
औरतें होती हैं
शो-पीस की मानिन्द ...
कोई ज़रूरत ही कहाँ है इन्हे
परिश्रम की ?
कोई ज़रूरत ही कहाँ है इन्हे
प्रतिभा की?
इन्हे तो आगे बढ़्ना ही बढ़्ना है
यह नहीं बढ़ेंगी तो और कौन बढ़ेगा आगे
मीनूजी बहुत सही सशक्त कटाआक्ष है आज की नारी अपनी दशा और दिशा से भटक रही है। आपका जवाब जोरदार है बधाई
हां ये तो है उनके पास गिफ्ट पैक जो है
धन्यवाद डॉ.अरविन्द मिश्र जी. आप जैसे योग्य चिंतक और कर्मठ व्यक्ति की यह टिप्पणी मेरे लिए किसी बडी उपलब्धि के समान है.
THANX! YOU HAVE AVENGED OUR INSULT.
वाह .. बहुत बढिया !!
शो-बिज़नेस का ज़माना है
और
औरतें होती हैं
शो-पीस की मानिन्द ....nice. commentuci ka natija hai
दिल में नश्तर की तरह उतर जाने वाला कटाक्ष ..!!
अच्छा लिखा है! सुन्दर्!
मीनू जी,
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस कटाक्ष के लिए ...शायद यह कटाक्ष ही है, जैसा कि औरों की टिपण्णी से लग रहा है......लेकिन यह उत्तर किसको दिया गया है मुझे अभी तक मालूम नहीं हो पाया है ...इसलिए क्षुब्ध भी हूँ और उत्सुक भी .....अवश्य ही किसी ने अपनी सीमा का अतिक्रमण करने की कोशिश की है, जिसने आपकी लेखनी को पैना बनाया है......खैर इसका तो मैं blind support करुँगी ही अवश्य लेकिन अगर मुझे भी बतातीं की उद्गम कहाँ है तो कृपा होती ...
एक बार फिर ह्रदय से आभारी हूँ...
गहरी चोट की है आपने पुरुष मानसिकता पर .......... पर ऐसे पुरुष भूल जाते हैं की नारी शक्ति है ....... ज्यादा मेहनत करती है .... हर कदम पर पुरुष का साथ देती है ............ कमाल की रचना है .....
Sateek Vyang !!
"औरतों मेहनत भी नही कर पातीं
बड़ी आसानी से
वे बढ़ जाती हैं आगे
वे पा लेती हैं ऊँचाइयाँ
बस खिलखिला कर"
jaisi soch rakhe waalon par
"इन्दिरा, लता, महादेवी, किरन बेदी "
Ek karara thappd.
waise to list bahut labhi hai par kavita main sab ke naam dena uchit nahi main samjh sakta hoon...
Par is 'Male Dominated' sansaar main kitni "indryiien, lataiyen" hain hain ye prashn bhi vichrniya ha
aurat na bane roodali . ya to durga bane ya kali.
sach to yahi hai.aur mai sirf is sach ka hi sanmarthak hoon.
आसान से लफजों में आपने बहुत गम्भीर बातें कही हैं।
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )
@धन्यवाद अदा जी, आपकी उत्सुकता अच्छी लगी. यह कविता वास्तव में किसी एक व्यक्ति के लिए न होकर हर उस व्यक्ति के लिए है जो ऐसी सोच रखता है. आप तो जानती ही है कि औरतों के काम को कम करके आँकने वाले लोग बहुत बड़ी सँख्या में पाए जाते हैं. अक्सर औरत के हर गुण से ऊपर उसका औरत होना मान लिया जाता है...कविता का आशय उसी से था. यह कविता दुनिया भर की हर उस स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है जो इस पीड़ा से गुज़री है. इतने सारे पुरूषों ने भी कविता का समर्थन किया यह इस बात का प्रतीक है कि समय धीरे धीरे बदल रहा है.. हर औरत को आगे बढ़ कर अपनी वास्तविक जगह हासिल करनी है....आमीन !
@ दर्शन जी पुरूष प्रधान समाज में लता, इन्दिरा जैसी महिलाएँ अब गिनती की नही रहीं...बहुत ही बड़ी लिस्ट है...ऐसी बहुत सारी महिलाओं से भविष्य़ में आपको इसी ब्लॉग पर मिलवाऊँगी...यह वायदा रहा... बस इसी स्नेह से आते रहिए इस ब्लॉग पर...धन्यवाद.
बहुत खूब मीनू जी आपने तो खरी- खरी सुना दी ......!!
ब्लॉग की दुनिया का नया सदस्य हूँ. आपके ब्लॉग को भी देख. आप भी कम नहीं. यहाँ एक से एक दिग्गज बैठे है. सबकी अपनी प्रतिभा को एक मंच मिल रहा है. आपकी रचनाये सोचने पर मजबूर करती है. कभी मेरे ब्लॉग पर भी नज़र डालें और... गिरीश पंकज
कविता और कटाक्ष एक साथ! :-)
meenu ne mara hai
hawa mein ball uchli hai kahi feild mein khade khiladi lapak na le.....nahi nahi ye to ball boundry se bahir sixer
wah kya lapet ker resham mein mara aapne purush hone per dhambhbharne wale meree samantsahi logo ko khub mara hai aapne wah meenu wah
wahhh !!!
bahut pasand aaya..........isi tarah .likhty rahiye...
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