Tuesday, July 28, 2009

कामकाजी महिला

कामकाजी महिला,

अपेक्षा और उलाहने के

दो सिरों के बीच

निरंतर पेंग भरता एक झूला...



जिसको दोनो सिरों पर

ठोकर मिलती है,

झूले की रफ्तार

कुछ और बढाने के लिए .

6 comments:

Science Bloggers Association said...

समाज के नग्‍न यथार्थ को बयां करती है ये रचना।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Vinay said...

अत्यंत गहरे भाव मन छू लेते हैं

Akshitaa (Pakhi) said...

Ap to sundar likhti hain.

पाखी के ब्लॉग पर इस बार देखें महाकालेश्वर, उज्जैन में पाखी !!

Neha said...

bahut hi behtarin likha hai aapne.....aage bhi padhna accha lagega...likhti rahen..

डॉ महेश सिन्हा said...

आप संक्षिप्त में बहुत कुछ कह जाती हैं

alka mishra said...

आपने तो मेरी व्यथा लिख दी

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