(गणतन्त्र-दिवस पर)
पूछने हैं तुमसे कुछ सवाल दोस्तों,
हाथ रख के दिल पे दो जवाब दोस्तों.
गणतन्त्र की विजय का जो मना रहे हो जश्न,
जन गण के मन का सच में है क्या हाल दोस्तों?
कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अपनी जमीन, अपना आसमान दोस्तों,
फिर सरजमीं पे अपनी ही लहराने के लिए
बेबस है क्यों तिरंगा, क्या विधान दोस्तों?
यह ध्वज प्रतीक अपनी आन,बान,शान का
ये है प्रतीक माँ भारती के मान का,
वो कौन है जो गर्व को गिरवी बना रहे
उनको सजा क्या देगा संविधान दोस्तों?
हिन्दोस्तां वतन है हिन्दुस्तानी हम सभी
हर स्वार्थ छोड़ उठ खड़े हो साथ हम सभी
लहराएगा तिरंगा हर चौक पर सदा
देनी पड़े या लेनी पड़े जान दोस्तों.
18 comments:
आज बस इसी जज्बे की जरुरत है मीनू जी -यह बना रहे -और हल आपने बता ही दिया है !
देश का गर्व सर्वोपरि है।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
बहुत सुंदर कविता जी, धन्यवाद
हम सब के जज्बातों को आपने अलफ़ाज़ दे दिए !
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
बहुत सुंदर ...सटीक प्रासंगिक पंक्तियाँ
गणतंत्र दिवस की मंगल कामनाएं
कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अपनी ही है जमीन, आसमान दोस्तों,
फिर सरजमीं पे अपनी ही लहराने के लिए
बेबस है क्यों तिरंगा, क्या विधान दोस्तों?
yahi to aham prashn hai !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बहुत ही गंभीर प्रश्न पूछा है आपने.और बहुत ही सटीक जवाब भी दे दिया है.
हम साथ साथ रहेंगे तो ही कामयाब होंगे.
आपकी कलम को सलाम.
सही कहा आपने.
गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं.
सादर
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गणतंत्र को नमन करें
बहुत खूब।
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हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेखा,टोना-टोटका।
जब तक देश में एम् एम् एस जैसे भक्त और मैडमजी जैसी राजमातायें मौजूद है, कुछ भी जबाब देना नहीं बनता ! : ) खैर, आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अपनी जमीन, अपना आसमान दोस्तों,
फिर सरजमीं पे अपनी ही लहराने के लिए
बेबस है क्यों तिरंगा, क्या विधान दोस्तों?
जब सरज़मी अपनी है तो तिरंगा क्यों नहीं ....?
रोकने से कहीं ज़ज्बे खत्म न हो जायें .....
कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अपनी जमीन, अपना आसमान दोस्तों,
फिर सरजमीं पे अपनी ही लहराने के लिए
बेबस है क्यों तिरंगा, क्या विधान दोस्तों?
ekdam sahi bolin aap.
लहराएगा तिरंगा हर चौक पर सदा
देनी पड़े या लेनी पड़े जान दोस्तों.
देश प्रेम भी क्रन्तिकारी तेवर भी. वाह क्या बात है.
पूछने हैं तुमसे कुछ सवाल दोस्तों,
हाथ रख के दिल पे दो जवाब दोस्तों.....
सही कहा आपने.
दिल पर हाथ रख कर ही सोचने और आत्मविश्लेषण की जरूरत है इन दिनों। बहुत ही सुंदर कविता !और बहुत ही गहरे भाव !
बधाई।
पूछने हैं तुमसे कुछ सवाल दोस्तों,
हाथ रख के दिल पे दो जवाब दोस्तों...
आज इस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है देशवासियों को सोचना समझना जरूरी है ...
खूबसूरत रचना ....
कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अपनी जमीन, अपना आसमान दोस्तों,
फिर सरजमीं पे अपनी ही लहराने के लिए
बेबस है क्यों तिरंगा, क्या विधान दोस्तों?
behtreen panktiyaan, meenu ji,
shayad kisi ke pass inka jawab ho!
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