(वर्ल्ड एड्स दिवस पर)
मेरे शरीर में रहता है एक वायरस
वैसे ही
जैसे अपने शरीर में रहता हूँ मैं खुद...
वैसे ही
जैसे रहते हैं यहाँ
खून,पानी,ऑक्सीजन,साँसें,
फेफड़े,गुर्दे,
चिंता ,
मुस्कुराहटें,
ह्ताशाएँ,निराशाएँ,आशाएँ...
लोग बताते हैं
वायरस बहुत खतरनाक है.
लोग खतरों से डरते हैं
इसीलिए लोग वायरस से डरते हैं
इसीलिए लोग मुझसे भी डरते हैं
क्यों की मेरे ही तो शरीर में वायरस रहता है...
मैं वायरस से नही डरता
जो हमेशा साथ रहे उससे क्या डरना?
वो खतरनाक है
पर वो हमेशा मेरे साथ रहेगा,
मेरी अंतिम साँस तक ...
वो मुझे छोड़ कर कभी नही जाएगा
जैसे मेरे सभी दोस्त एक-एक कर चले गए
मुझे छोड़ कर
वायरस के कारण...
मरने से भी ज्यादा
मुझे 'छोड़े जाने' से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है.
19 comments:
एड्स जैसे मानवता के महारोग पर यह अभिव्यक्ति :) ?
बहुत खूब .
वो मुझे छोड़ कर कभी नही जाएगा
जैसे मेरे सभी दोस्त एक-एक कर चले गए
मुझे छोड़ कर
वायरस के कारण.
गहन बात ...
मुझे “छोड़े जाने” से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है.
एक कटु सत्य कह दिया।
"...मुझे “छोड़े जाने” से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है."
बहुत ही सामयिक कविता है आप की.
सादर
apki kavita bahut prerana deti hai.ahinsa gandhi
meenu ji
bahut khoob kya baat kahi hai
मुझे “छोड़े जाने” से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है.
ak kadua sach
poonam
bahut achchi lagi .
क्या बात है।
वैसे ईश्वर हर व्यक्ति को कम से कम एक वायरस आईमीन दोस्त अवश्य दे।
---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
मै उसी तरह रहता हूं जैसे चिन्ता हताशा निराशा और आशा और मुस्कराहट रहते है। जो हमेशा साथ रहे उससे क्या डरना ।या तो शायद खतरों से खेलने का शौक है मुझे या चूंकि यह दोस्तों की तरह बेवफा नहीं है । मरने से ज्यादा छोडे जाने का डर । विल्कुल सही है फिर तो मौत से बदतर होजाती है जिन्दगी
@जाकिर और अरविन्द जी
यह कविता तमाम एच आइ वी पोसिटिव लोगों के interview पर आधारित है जिसमे उन्होंने यह कहा की वायरस से ज्यादा उन्हें समाज और दोस्तों से डर लगता है. उन्हें वायरस से लड़ने से ज्यादा मुश्किल लगता है समाज से लड़ना. बस इसी आधार पर यह कविता लिखी गई है जो सच्ची बातों और अनुभवों पर आधारित है.
एक नया ही नजरिया है.
घुघूती बासूती
आदरणीया मीनू खरे जी
एच आइ वी पोजिटिव लोगों के interview पर आधारित आपकी इस कविता के लिए साधुवाद !
समाज में आम आदमी के रहने की स्थितियां भी सरल नहीं रहीं , वहां एच आइ वी पोजिटिव लोगों के लिए स्थिति बदतर होना तय ही है ।
मरने से भी ज्यादा
मुझे 'छोड़े जाने' से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है
एकाकीपन का भय बहुत बड़ी विडंबना है शायद …
आपकी लेखनी ने विवश, अक्षम और ठुकराए हुए असमर्थों की अनुभूति को अभिव्यक्ति दी … इसके लिए बधाई और आभार !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मीनू जी ,आपका स्पष्टीकरण शिरोधार्य है ..मैं इस कोण को नहीं समझ पाया था- सारी !
मरने से भी ज्यादा
मुझे 'छोड़े जाने' से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है.!!!
वह मीनू जी क्या बात कह दी आपने ! सचमुच बहुत डर लगता है ! बताने के लिए धन्यवाद
bahut hi badiya...
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
मुझे 'छोड़े जाने' से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है
Sunder ati sunder bhav rachna me........ .sab kuch ha sabkuch bayan ker diyan hai aapne ek insaan jo apni maut se lad sakta hai pr jindagi me saamil dosto se nahi .............
मरने से भी ज्यादा
मुझे 'छोड़े जाने' से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है.
mujhe bhi ... to vairus se hi pyaar karna behtar hai...
meenu ji zabardast rachna
वायरस और दोस्त
क्रेश
सब त्रिया-चरित्र है
ye teenon rachnayen vatvriksh ke liye rasprabha@gmail.com per bhejiye parichay aur tasweer ke saath
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