(बाल दिवस पर )
यह कविता
घर के बर्तनों के नाम
धोते हैं जिन्हें छोटे छोटे हाथ हर रोज हमारे घरों में
गर्मी,बरसात या फिर कडकडाती ठंड में.
उन झाडुओं के नाम
जिन्हें मजबूती से पकड़ कर बुहारी जाती है संगमरमरी फर्श
और पूरी ताकत झोंक दी जाती है पोंछे से उसे चमकाने में
हर रोज दोनों जून
किसी एक जून पेट भरने की जुगाड़ में.
यह कविता नही है
चमचमाती प्लेटों में उपेक्षा से छोड़े गए
आलू के पराठों और पनीर सैंडविचों के नाम
यह कविता है
भिनभिनाती मक्खियों के बीच
कूड़े में पड़े बिस्कुटों, डबलरोटियों के नाम
जिन्हें परहेज़ नही है
किसी नन्हे पेट में नाश्ता बन कर जाने में.
यह कविता नही है
रंग बिरंगे बैगों, टिफिनों और स्कूलों के नाम
यह कविता है
जिंदगी की उन बदसूरत सच्चाइयों के नाम
जो बिना किसी एडमिशन पढ़ा डालती है
बहुत कुछ
बहुत कम समय में
बहुत कम उम्र में.
यह कविता नही है
नेहरु चाचा और गुलाबों के नाम
यह कविता है
मोहल्ले के
उन सभी चाचा,फूफा, मामा
और एकांत के नाम
जिसके बारे में जबान नही खुल पाती है
किसी भी
गुड़िया,पूनम, पिंकी और गरीब सुनीता की.
यह कविता सपनीले बचपन के सजीले मन के नाम नही
बल्कि
उन असंख्य पत्थरों के नाम
जिनसे मिल कर बने है दिल
हमारे
आपके
हम सबके.
21 comments:
मीनू जी, कविता को एक बार नहीं कई बार पढ़ लिया और हर बार गली,मुहल्ले,सड़क,चौराहे पर अक्सर दिखने वाली किसी मासूम का चेहरा सामने आ गया -------जो बड़ी हसरत भरी निगाहों से हम सभी की ओर देखती है---कि हम सब शायद उनकी हालत बदलें---पर क्या कभी ऐसा दिन आयेगा? ---------काफ़ी पहले शायद मैंने बालिका दिवस पर एक कविता क्रियेटिवकोना पर लिखी थी------मासूम लड़की----मौका लगे तो पढ़ियेगा। हेमन्त
यह कविता है
भिनभिनाती मक्खियों के बीच
कूड़े में पड़े बिस्कुटों, डबलरोटियों के नाम
जिन्हें परहेज़ नही है
किसी नन्हे पेट में नाश्ता बन कर जाने में.
nishabd kar jane waali prastuti hai.... meenu ji....ek behtreen rachna......
बहुत संवेदनशील रचना ....
यह कविता समाज के भद्र वर्ग के मुँह पर एक तमाचा है ।
निश्चय ही बाल दिवस पर आपने बेहद संवेदनशील और निः शब्द कर देने वाली कविता लिखी है.
शायद हम वाकई पत्थर दिल हैं जो सिर्फ एक दिन ऐसे बच्चों की सुधि लेने का कर्तव्य निर्वहन करेंगे और बाकी दिन क्या होगा या होता है इसे तो आपने ही बयां कर दिया है.एक बात याद आ रही है-
मैं जब कानपुर बिग बाज़ार में था तो जिस दूकान पर हम चाय पीते थे वहां वो १०-१२ साल का बच्चा जो आने वाले ग्राहकों की खिदमत में लगा रहता था (अक्सर बात -बे बात मालिक की पिटाई भी झेलता था)मुझे हमेशा याद रहेगा.मैं हमेशा उसी दूकान से उसे कुछ न कुछ खरीदकर खिलाता रहता था इस बात की परवाह किये बगैर की उसका मालिक बुरा मान रहा है;.और तब उस गंदे से दिखने वाले बच्चे के चेहरे पर जो मुस्कान खिलती थी वो हजारों मुस्कुराहटों में मुझे अनोखी लगती थी.
अब तो नौकरी छोड़कर यहाँ लखनऊ आ गया हूँ पर वो बच्चा जब तब याद आता रहता है.
यह कविता नही है
नेहरु चाचा और गुलाबों के नाम
यह कविता है
मोहल्ले के
उन सभी चाचा,फूफा, मामा
और एकांत के नाम
जिसके बारे में जबान नही खुल पाती है
किसी भी
गुड़िया,पूनम, पिंकी और गरीब सुनीता की
atmiya sanvednao se bhari sunder rachna ..... samaj ko aaina dikhati hui jhajkor rahi hai ...........
मीनू जी बहुत ही भाव पूर्ण मार्मिक रचना !
मीनू जी,आपकी कविता स्तब्ध और निःशब्द कर देने वाली है---बहुत प्रभावशाली।
बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
कितनी तकलीफें हैं :( आंटी...
बाल दिवस की शुभकामनायें
मीनू जी,
पहली बार आपको पढ़ा है इसके लिए ब्लोग४वर्त को धन्यवाद देती हूँ. बाल दिवस की सच्ची तस्वीर और हम सबको आइना दिखाती हुई कविता एक कटु सत्य है और हंम इस सत्य को इस तरह से पचा जाते हैं जैसे की रोजमर्रा का नाश्ता. बहुत मार्मिक वर्णनहै.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
बाल दिवस के उपलक्ष्य में एक सचेत करती कविता के लिए बधाई स्वीकारें।
---------
जानिए गायब होने का सूत्र।
बाल दिवस त्यौहार हमारा हम तो इसे मनाएंगे।
संवेदनाओं से भरी साहसी कविता !
संवेदनाओं को बखूबी उकेरा है और सच ये कविता नही हकीकत ही तो है जिसे आपने काव्य का रूप दिया है……………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
यह कविता है
जिंदगी की उन बदसूरत सच्चाइयों के नाम
जो बिना किसी एडमिशन पढ़ा डालती है !!
सचमुच मीनू जी ! आज भी भारी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो तमाम कोशिशों के बावजूद स्कुल नही पहुँच पा रहे है ! जरूरी पोस्ट जो सोचने को मजबूर करती है ! आभार !
बाल -दिवस पर गरीब -आश्रय हीन बच्चों का खूब ख्याल रखा आपने ,सभी को ऐसा ख्याल रखना चाहिए .जो कर सकते हों वे ऐसे लोगों के भले के लिए कुछ करें तो समस्या का हल भी निकल सकता है.
मीनू जी आज तो अपने झकझोर देने वाली कविता लिखी है -यह जगह का प्रभाव तो नहीं ? :)
@Arvind Mishra
--:)
बहुत सुन्दर कविता ...
गरीबी का इतना दर्दनाक परिचय पड़ा ! सच मै आंखे नम हो गई दोस्त काश हम इन मै से किसी एक के दुःख को ही कम कर पाते !
बहुत सुन्दर मार्मिक कविता !
बधाई दोस्त !
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