Saturday, November 20, 2010

वो जो नदी है

(कार्तिक-पूर्णिमा पर )








वो जो नदी है

उसमे रहती हैं ढेर सारी मछलियां

जिन्हें बचपन में

आटे की गोलियाँ खिलाई थी मैंने

अपने बाबा के साथ

घाट की सबसे निचली सीढ़ी पर खड़े होकर .



वो जो नदी है

बसती हैं उसमे ढेर सारी डुबकियाँ

नाक बंद करके लगाई थी जो मैंने

गहरे पानी में

अपनी दादी का हाथ पकड़कर.



उसी नदी में बसती है

तैरने से पहले

छपाक से कूदने की न जाने कितनी आवाजें

नावों की हलचलें

कमर तक डूब कर सूर्य को दिए गए अर्घ्य

पियरी चढ़ाने की मन्नतें

तुलसी पूजा के बिम्ब

हर हर महादेव की गूँज

हरे पत्ते के दोनों में

पानी पर तिरते दीपक

और ढेर सारा पॉलिथीन.

13 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

"....हरे पत्ते के दोनों में

पानी पर तिरते दीपक

और ढेर सारा पॉलिथीन."

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर नदियों को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त करने का आह्वान करती कविता.

गंगा हो या यमुना या गोमती आज कोई भी नदी प्रदूषण मुक्त नहीं है. हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा और आस्था के नाम पर नदियों में प्रदूषण फैलाने से खुद को रोकना होगा.

शायद कभी वो दिन फिर से आ जाए जब ये सारी यादें एक बार फिर ताज़ा हो जाएँ.

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द ...कई गहरे भावों के साथ ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर मनोभावों की अन्यतम परिणति है आपकी कविता.

सुशीला पुरी said...

uf !!!!!!! ye politheen ! kyaa hoga nadi ka ? kahan tak ja payegi ???

मनोज कुमार said...

डुबकियाँ

नाक बंद करके लगाई थी

बहुत संवेदनशील और सार्थक पोस्ट जो पर्यावरण के प्रति हमारी चिंता को आगे लाती है।

Asha Joglekar said...

और ढेर सारा पॉलिथीन." We are the ones choking our rivers. It is time we woke up and start cleaning them by not throwing any thing. Then and then our memories of river will be clean and seet.

दिगम्बर नासवा said...

हर हर महादेव की गूँज
हरे पत्ते के दोनों में
पानी पर तिरते दीपक
और ढेर सारा पॉलिथीन....

बहुत संवेदनशील ... हकीकत है हमारे समाज की ... जागरूक करती बहुत प्रभावी रचना ..

अनुपमा पाठक said...

संवेदनशील रचना!
सारे पावन विम्बों के बीच पोलीथीन हो रही विकृतियों को बखूबी दर्शाती है ....

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर कविता-
एक तरफ अपनी संस्कृति अपने
गौरव की चर्चा -
तो दूसरी तरफ कितना दर्द......!
प्रदूषण के दुष्प्रभाव.....!!!!
बहुत सुंदर

शरद कोकास said...

सुन्दर कविता ।

Vallabh said...

Bilkul sateek kaha hai.... pani par deepak to ek hi do din tairte hain "polythene" to har din hai.... yahi haal raha to deepak tairaane layak nahi bachengi nadiyan.

Anonymous said...

पानी पर तिरते दीपक
और ढेर सारा पॉलिथीन....
खूबसूरती और बदसूरती एक साथ ! काश की पालीथीन को रोका जा पाता !
कार्तिक पूर्णिमा की उज्ज्वल बधाई !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मीनू जी, आपका ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई। कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई।

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