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वो मुझे 'मैम' कहकर सम्बोधित करता है क्यों कि ऑफिस में मैं उसकी बॉस हूँ और इस लिए भी क्यों कि वो मेरा शिष्य है.मैं उसे 'लेटलतीफ़' कहती हूँ, क्यों? अरे भई नाम से ही ज़ाहिर है कि वो हमेशा लेट आता है .किसी एक दिन, किसी एक मौक़े, किसी एक जगह पर नहीं, हर दिन हर मौक़े और हर जगह, हर कार्यक्रम में वो लेट आता है.कभी 15मिनट लेट तो कभी 45मिनट, कभी 1 घंटा लेट, कभी 2 घंटा और कभी कभी तो सुबह की जगह शाम को पहुँचता है.आपका काम रूके तो रूके पर उस बेचारे को समय से न पहुँचने की जैसे क़सम है.कई बार आकाशवाणी स्टूडियो में किसी वीआईपी रिकार्डिंग में, मेरे बार बार रिमाइंडर के बावजूद भी वो तब पहुँचा जब रिकार्डिंग समाप्त होने वाली थी!!! अब चाहे आप अपने बाल नोचें, चाहे हज़ार बातें सुनाएँ, चाहे जो सज़ा देने की बात कहें, वो एक चुप तो हज़ार चुप. आखिर में थक हार कर अगले को ही चुप होना पड़ता है. हर बार 'अब से हमेशा समय से आऊँगा' का वायदा पर ......??!!!ज़्यादा पूछो तो कहेगा "मैम मैं देर नही करता, पता नहीं कैसे देर अपने आप हो जाती है." वो बहुत अच्छा वर्कर है, विश्वसनीय है, मेहनती है, जानकार है और सबसे बड़ी बात कि इस सबके बावजूद बहुत विनम्र और आज्ञाकारी भी है.शायद यही कारण है कि अपनी हैरान कर देने वाली लेटलतीफ़ी के बावजूद भी वो मेरे हर महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में मेरी टीम में ज़रूर रहता है.
पिछले दिनों उसने मुझे अपनी शादी का कार्ड दिया. बारात 27 नवम्बर को लखनऊ से कानपुर जानी थी.उसका आग्रह था कि मैम शादी में आपको ज़रूर ज़रूर आना है.ऑफिस के अन्य सहकर्मी भी सादर आमंत्रित थे.अपने प्रिय शिष्य़ की शादी में शामिल होने का मेरा खुद बहुत मन था. मन में उसे दूल्हा बना देखने की बड़ी उमंग थी.उसने बताया कि "मैम चूँकि शादी में बैण्ड पहली शिफ़्ट का है अत: कैसे भी करके बारात कानपुर 6:30 शाम तक ज़रूर पहुँचनी है वर्ना बैण्ड वाले वापस चले जाएँगे." समय से पहुँचने की उसकी एक दो रिमाइंडर कॉल भी मुझे प्राप्त हुई.बारात पौने पाँच बजे शाम को रवाना हुई.एक बस थी और तीन गाड़ियाँ. एक गाड़ी में दूल्हा और कुछ परिवारजन थे. अन्य गाड़ियों में हम ऑफ़िस वाले थे.वो बार बार फोन से हम लोगों से सम्पर्क बनाए था कि कौन सी गाड़ी कहाँ तक पहुँची.उन्नाव पहुँच कर एक ढाबे पर हम लोगों ने चाय पीने की सोची. हम लोगों ने उससे कह दिया कि तुम चलो हम लोग पहुँच जाएँगे.करीब आधे घंटे उन्नाव में बिता कर हम लोग फिर चल पड़े.पर यह क्या! कानपुर से करीब पाँच किमी पहले हमारी गाड़ी एक भयँकर जाम में फँस गई. हमें लगा कि चाय पीने के चक्कर में हमसे बहुत बड़ी ग़ल्ती हो गई है. अब पता नही बारात मे समय से पहुँच पाएँगे कि नहीं. तभी हमने देखा कि बारात वाली बस तो हमारे बग़ल में ही खड़ी है! अब हमने सोचा कि यह अच्छा है कि बारातीगण तो जाम में फँसे है क्या दूल्हा राजा अकेले ही बैण्ड बाजा लेकर निकलेंगे? तभी उनका फोन आता है "मैम मेरी गाड़ी आप से पीछे खड़ी है."इस समय कोई आठ बज रहे थे. दूल्हा समेत पूरी बारात इस जाम से कैसे निकलेगी ? चार पाँच किमी के जाम का यह सफ़र बहुत मुश्किल था. हर आदमी के मन में एक ही प्रश्न की लखनऊ से कानपुर का आमतौर पर दो घंटे में खत्म होने वाला सफ़र आज कितने घंटे लेगा? सड़क पर तिल रखने की जगह नही थी.तभी मेरी लाइन की एक गाड़ी ने साइड वाले कच्चे रास्ते में मोड़ा हमारी गाड़ी भी उसके पीछे मोड़ी गई. आगे पता चला कि आज कानपुर में भारत-श्रीलंका क्रिकेट मैच था और सुरक्षा व्यवस्थाओं के चलते यह अभूतपूर्व जाम लगा था.फिलहाल हमें निकलने की जगह मिल चुकी थी और भले ही रेंग-रेंग कर ही सही पर मेरी गाड़ी रात बारह बजे शादी स्थल पर पहुँच चुकी थी.बाराती पहुँच चुके थे पर दूल्हा मिसिंग था. हमने फोन किया तो जवाब मिला "मैम अभी तो मुझे पहुँचने में बहुत वक़्त लग जाएगा, मेरी गाड़ी भयँकर जाम में अभी भी फँसी है,कहीं से भी निकलने की जगह नहीं मिल रही है." मैने सिर पकड़ लिया.आज भी लेट !!!! और हमेशा की भाँति मुझे बहुत इंतज़ार करना पड़ा.दूल्हा महाशय रात डेढ बजे शादी स्थल पर पहुँचे. बारात करीब दो बजे शुरू हुई और जयमाल की रस्म होते समय घड़ी ढ़ाई बजा रही थी.जयमाल के वक्त जब उसने स्टेज पर मेरे पैर छुए तो मुझे उसकी वही बात याद आ रही थी " "मैम मैं देर नही करता, पता नहीं कैसे देर अपने आप हो जाती है......."
खैर देर चाहे जितनी भी हुई हो पर शादी बहुत अच्छी हुई.मेरा शिष्य बहुत सजीला और सुन्दर लग रहा था. दुल्हन उससे भी बढ़ कर! शादी की रस्में अपनी गति से चल रही थी और मैं मन ही मन यह कामना कर रही थी कि जिस तरह का जाम आज हमारे रास्ते में लगा था उससे बहुत्-बहुत बड़ा जाम लग जाए,इस जोड़ी के जीवन में आने वाले किसी भी दुख-तकलीफ़ के रास्ते में.
ओम और श्वेता को स्नेहाशीष, आशीर्वाद और सुखमय जीवन की अशेष शुभकामनाएँ.