Thursday, November 05, 2009

फ़र्क़

वो जहाँ से आया
मैं वहीं से आई

वो भी यहीं आया
मैं भी यहीं आई

उसे भी पाला गया
मुझे भी पाला गया

उसने भी पढ़ा-लिखा
मैंने भी पढ़ा-लिखा

उसने भी सपने बुने
मैंने भी सपने बुने

उसने भी मेहनत की
मैंने भी मेहनत की

वो भी सफल बना
मैं भी सफल बनी

फिर वो सेलेक्ट करने वाला बना
फिर मैं सेलेक्ट होने वाली बनी.

24 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Waah! di......... bahut hi behtareen tareeke se aapne

"FARQ" ko samjhaya hai.........


bahut hi behtreen.......

शिवम् मिश्रा said...

दीदी प्रणाम !
बहुत बढ़िया कविता है .... एक लड़की ही क्यों रहे हमेशा सेलेक्ट होने वालो की लाइन में ??
बहुत ही सटीक प्रश्न है यह, समाज से उम्मीद की जाती है कि जवाब दे !! मेरा भी यही मानना है कि इस मामले में दोनों को सामान अधिकार मिलने ही चाहिए !
एक बेहद उम्दा पोस्ट कि बहुत बहुत बधाई !

Mishra Pankaj said...

सुन्दर कविता है ......
आपका लिखा हर लफ़्ज मायने रखता है मेरे लिये

Mishra Pankaj said...

सुन्दर कविता आभार आपका

Mithilesh dubey said...

वाह जी क्या बात है। लाजवाब रचना, बहुत-बहुत बधाई..........

प्रज्ञा पांडेय said...

वाह मीनू जी क्या चोट है .. क्या बात याद दिला दी आपने
बहुत बधाई !

kavita verma said...

wah meenuji sadiyon ke is fark ko isse behatarin tarike se prastut hi nahi kiya ja sakata.

Udan Tashtari said...

वाह जी, देखिये तो!!

Himanshu Pandey said...

गजब ! प्रवाह चला तो ऐसा प्रहार देगा, सोचा न था ।
बेहतरीन । अंत प्रभावी है ।

Anonymous said...

वाह कैसे समतायें एक विषमता में बदल ,
गई ! कितनी सादगी है ! बहुत सुंदर !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अच्छी सार गर्भित कविता !

प्रकाश गोविंद said...

क्या बात है मीनू जी
बेहतरीन अभिव्यक्ति

आखिरी पंक्ति का पंच लम्बे समय तक याद रहेगा !

शुभकामनाएं

सदा said...

बहुत ही खूबसूरती से व्‍यक्‍त किया गया यह फर्क बेहतरीन बन पड़ा है, बधाई के साथ आभार ।

Amrendra Nath Tripathi said...

नारी को खास सामाजिक
पहचान में फिट कर
देने का बयां करती कविता...
सुन्दर है .......

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

यही फर्क हमारे देश के लिए सबसे बड़ा कलंक है।
------------------
परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।

अनिल कान्त said...

आपकी रचना गहरा असर छोड़ती है
एक ही झटके में फर्क सामने आ जाता है

ओम आर्य said...

आपकी लेखनी से निकली बात मे एक सुल्गती सोच होती है जो प्रवाह मय होकर हम शुध्दि पाठ्को को भिंगो जाती है ..........उम्दा!

Arvind Mishra said...

हूँ ,यह तो है !

दिगम्बर नासवा said...

फिर वो सेलेक्ट करने वाला बना
फिर मैं सेलेक्ट होने वाली बनी....

बस इन antim panktiyon में nari मन की vedna को baakhoobi लिख दिया है आपने .......... ये जीवन की kaduvi sachhai है ....... आपकी रचना बहुत prabhaavit करती है .......

हरकीरत ' हीर' said...

इसी सेलेक्ट ने एक दिन मेरे मन में इतनी वितृष्णा भर दी थी शादी के नाम से ही चिढ होने लगती थी ...आपने करारी चोट की है ....बहुत अच्छे .....!!

सुना है आप ब्लोगर मीट पे गई थी अच्छा लगा जानकर ....!!

पंकज said...

एक सरल सी छोटी सी कविता ने कितनी बडी कहानी कह दी.

सुशीला पुरी said...

गागर में सागर .........कमाल

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said...

वो भी सफल बना
मैं भी सफल बनी

फिर वो सेलेक्ट करने वाला बना
फिर मैं सेलेक्ट होने वाली बनी.
Wah kya mazedar baat hai

राकेश कौशिक said...

सीधी-सादी, सच्ची और बड़ी बात. बधाई.

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