वो जहाँ से आया
मैं वहीं से आई
वो भी यहीं आया
मैं भी यहीं आई
उसे भी पाला गया
मुझे भी पाला गया
उसने भी पढ़ा-लिखा
मैंने भी पढ़ा-लिखा
उसने भी सपने बुने
मैंने भी सपने बुने
उसने भी मेहनत की
मैंने भी मेहनत की
वो भी सफल बना
मैं भी सफल बनी
फिर वो सेलेक्ट करने वाला बना
फिर मैं सेलेक्ट होने वाली बनी.
24 comments:
Waah! di......... bahut hi behtareen tareeke se aapne
"FARQ" ko samjhaya hai.........
bahut hi behtreen.......
दीदी प्रणाम !
बहुत बढ़िया कविता है .... एक लड़की ही क्यों रहे हमेशा सेलेक्ट होने वालो की लाइन में ??
बहुत ही सटीक प्रश्न है यह, समाज से उम्मीद की जाती है कि जवाब दे !! मेरा भी यही मानना है कि इस मामले में दोनों को सामान अधिकार मिलने ही चाहिए !
एक बेहद उम्दा पोस्ट कि बहुत बहुत बधाई !
सुन्दर कविता है ......
आपका लिखा हर लफ़्ज मायने रखता है मेरे लिये
सुन्दर कविता आभार आपका
वाह जी क्या बात है। लाजवाब रचना, बहुत-बहुत बधाई..........
वाह मीनू जी क्या चोट है .. क्या बात याद दिला दी आपने
बहुत बधाई !
wah meenuji sadiyon ke is fark ko isse behatarin tarike se prastut hi nahi kiya ja sakata.
वाह जी, देखिये तो!!
गजब ! प्रवाह चला तो ऐसा प्रहार देगा, सोचा न था ।
बेहतरीन । अंत प्रभावी है ।
वाह कैसे समतायें एक विषमता में बदल ,
गई ! कितनी सादगी है ! बहुत सुंदर !
अच्छी सार गर्भित कविता !
क्या बात है मीनू जी
बेहतरीन अभिव्यक्ति
आखिरी पंक्ति का पंच लम्बे समय तक याद रहेगा !
शुभकामनाएं
बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया गया यह फर्क बेहतरीन बन पड़ा है, बधाई के साथ आभार ।
नारी को खास सामाजिक
पहचान में फिट कर
देने का बयां करती कविता...
सुन्दर है .......
यही फर्क हमारे देश के लिए सबसे बड़ा कलंक है।
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परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
आपकी रचना गहरा असर छोड़ती है
एक ही झटके में फर्क सामने आ जाता है
आपकी लेखनी से निकली बात मे एक सुल्गती सोच होती है जो प्रवाह मय होकर हम शुध्दि पाठ्को को भिंगो जाती है ..........उम्दा!
हूँ ,यह तो है !
फिर वो सेलेक्ट करने वाला बना
फिर मैं सेलेक्ट होने वाली बनी....
बस इन antim panktiyon में nari मन की vedna को baakhoobi लिख दिया है आपने .......... ये जीवन की kaduvi sachhai है ....... आपकी रचना बहुत prabhaavit करती है .......
इसी सेलेक्ट ने एक दिन मेरे मन में इतनी वितृष्णा भर दी थी शादी के नाम से ही चिढ होने लगती थी ...आपने करारी चोट की है ....बहुत अच्छे .....!!
सुना है आप ब्लोगर मीट पे गई थी अच्छा लगा जानकर ....!!
एक सरल सी छोटी सी कविता ने कितनी बडी कहानी कह दी.
गागर में सागर .........कमाल
वो भी सफल बना
मैं भी सफल बनी
फिर वो सेलेक्ट करने वाला बना
फिर मैं सेलेक्ट होने वाली बनी.
Wah kya mazedar baat hai
सीधी-सादी, सच्ची और बड़ी बात. बधाई.
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