Wednesday, October 28, 2009
लिफ़ाफ़ाबाद का ब्लॉगर सम्मेलन और मच्छर
एक शहर था लिफाफाबाद. उस शहर में कुछ ब्लॉगर और बहुत सारे मच्छर रहते थे. ब्लॉगर बड़ी मेहनत से ब्लॉगिंग करते थे और मच्छर खून चूसने का पुश्तैनी काम किया करते थे.मच्छरों को ब्लॉगर्स के ब्लॉग पढ पढ कर बड़ी ईर्ष्या होती थी क्यों कि खून चूसने का काम कोई सरकारी नौकरी की तरह तो था नही कि ऑफ़िस पहुँचे नहीं कि ब्लॉगिंग और टिपियाना शुरू! यहाँ तो रात-रात भर जाग कर कस्टमर के सिर पर घंटों लोरी गाइए तब जाकर बूँद भर खून का इंतजाम हो पाएगा. अब रात भर इतनी मेहनत के बाद कोई क्या खाक ब्लॉगिंग करेगा? यही कारण था कि क्वालिफ़िकेशन होते हुए भी एक भी मच्छर अब तक अपना ब्लॉग नहीं बना पाया था. वैसे भी ब्लॉगिंग के लिए कितनी योग्यता की ज़रूरत ही होती है?
एक दिन शहर के एक ब्लॉगर को जाने क्या सूझी कि उसने देश भर के ब्लॉगरों की मीटिंग बुलाने की सोची. पोस्टों के आदान प्रदान, सनाम और बेनामी टिप्पणियों,यहाँ तक कि ऐग्रीगेटर, मॉडरेशन के बावजूद काफ़ी कुछ ऐसा था जिसे आमने-सामने बैठ कर सलटाया जाना ज़रूरी लगता था. बात शहर के अन्य ब्लॉगरों तक पहुँची. सबने कहा व्हॉट ऐन आइडिया सर जी! तीन बार सबने कहा "क़ुबूल,क़ुबूल,क़ुबूल" और मीटिंग बुलानी पक्की हो गई. किसे-किसे बुलाना है, लिस्ट बनने लगी, ईमेल पते ढूँढे जाने लगे, मोबाइल बजने लगे. लकी ड्रॉ निकाल कर ब्लॉगर अतिथियों की लिस्ट बनाई गई. फोन किए गए. जिनके फोन बजे वो धन्य हुए जिनके नही बजे वे मोबाइल कम्पनियों को गरियाने लगे कि अनचाही कॉलें तो खूब मिलती है पर मनचाही नहीं.
निमंत्रण मोहल्लों, कॉफ़ी हाउसों में पहुँचने लगे. ब्लॉगर समझ गए कि भड़ास निकालने का मौक़ा आ गया है."लिफ़ाफ़ाबादी" अपने काम के धुरन्धर होते हैं अत: ब्लॉगर की हर प्रजाति को न्योता भेजा गया.
" भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण ब्लॉगर तुम्हे बुलाने को
हे कुंठासुर! हे भैंसासुर! भूल न जाना आने को "
मीटिंग में कुंठासुर से लेकर भैंसासुर तक, मसिजीवी से लेकर श्रमजीवी तक, अफ़लातून, खातून , रवि ,कवि,वैज्ञानिक, इंजीनियर,साहित्यकार,पत्रकार सभी चिठ्ठाकार की कैपेसिटी में पहुँचे. मच्छरों को ब्लॉगरों की यह फुरसतिया गैदरिंग देख कर बड़ी कोफ़्त हुई पर बिचारे कर क्या सकते थे! मच्छरों को बड़ा दुख हुआ कि इतने बड़े आयोजन में उन्हें नही बुलाया गया श्रमजीवी और मसिजीवी तो नही मगर परजीवी श्रेणी में तो उनकी बिरादरी आती ही है और यह किसे नहीं पता कि कुछ ब्लॉगर जन्म से ही परजीवी होते हैं (कॉपी-पेस्ट ज़िन्दाबाद!). फ़िलहाल मच्छरगण मीटिंग को लेकर बहुत उत्सुक थे. उन्होने तय किया कि भले ही बुलाया न गया हो पर वो भी सभागार में भनभनाएँगे तो ज़रूर. हो सकता है कोई दिलवाला उन्हे भी माइक सौंप दे!
खैर मीटिंग शुरू हुई.माला-फूल,दीप-बाती,भाषण कॉफ़ी के बीच उदघाटन सत्र बीता. ब्लॉगरों का रोल ताली बजाने के सिवा और कुछ नहीं था इस सत्र में. सब, बड़ी मजबूरी में गुड-ब्वाय बने बैठे रहे, सोचते रहे एक बार हमारा मौक़ा आने दो तब बताएँगे! इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म हुईं. अगला सत्र शुरू होने की सीटी बजी. "खाए-पिए-अघाए लोगों" की जमात, एक साथ रिंग में उतर चुकी थी और रिंग-मास्टर का कंसेप्ट तो ब्लॉग जगत में होता ही नहीं. लोकतंत्र के पाँचवें खम्भे के इर्द-गिर्द् सब स्वतंत्र ! बात सीधी-साधी बातों से शुरू हुई पर सेंसेक्स की भाँति ही जुमले शूट करने लगे मसलन "ब्लॉग बहस का प्लेटफार्म नहीं है", "बेनामी दस कदम आकर जाकर लड़खड़ा जाएगा", "एक भी मर्द नहीं है जो स्वीकार करे कि हम अपनी पत्नी को पीटते हैं",औरत बिना दुपट्टे के चलना चाहती है जैसे जुमले। . . .(बन्द करो कोई पीछे से कुंठासुर जैसा कुछ कह रहा है।),पोर्नोग्राफ़ी जैसे जुमले पर वंस मोर के नारे लगने लगे...अपनी स्ट्रैटेजी के मुताबिक मच्छरगणों ने भनभनाना शुरू किया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के धनी ब्लॉगर्स की हुँकार के आगे मच्छर फीके पड़ने लगे. मच्छरों ने एक कहावत सुन रखी थी कि ब्लॉगर कहीं का भी हो वो जात का "मुँहनोचवा" होता है..और आज के इस कार्यक्रम में वे इस कहावत का लाइव टेलीकास्ट देख रहे थे ! आयोजकों के तय किए गए विषय धरे के धरे रह गए. आखिर ब्लॉगर् किसी के निर्देशों को क्यों माने? हर व्यक्ति ने जिस विषय पर चाहा बोला, जो चाहा बोला! किसी के कुछ समझ में आया हो, न हो गरीब मच्छरों की समझ में कुछ नही आया.
शाम हुई, रात हुई. सारे दिन के थके हारे ब्लॉगर्स खर्राटे मार कर सो गए. उनके सपनों में लिफ़ाफ़ाबाद सम्मेलन की रिपोर्टिंग सम्बन्धी दाँवपेंच भरे आइडियाज़ आने लगे.मच्छर कोई ब्लॉगर तो थे नही जो सो जाते. उन्होने अपने कस्टमरों के सिर पर रोज़ की तरह लोरी गानी शुरू कर दी. आखिर रोज़ी-रोटी का सवाल था!
-----------------------------------------------------------------------
नोट---@ "ब्लॉग बहस का प्लेटफार्म नहीं है", "बेनामी दस कदम आकर जाकर लड़खड़ा जाएगा", "एक भी मर्द नहीं है जो स्वीकार करे कि हम अपनी पत्नी को पीटते हैं",औरत बिना दुपट्टे के चलना चाहती है जैसे जुमले। . . .(बन्द करो कोई पीछे से कुंठासुर जैसा कुछ कह रहा है।)---पोस्ट का यह भाग गिरिजेश जी के ब्लॉग " एक आलसी का चिट्ठा" से साभार.
----------------------------------------------------------------------
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
31 comments:
लिफाफाबाद याद रहेगा।
दीदी प्रणाम !
क्या यह भी उन चुनिदा रिपोर्ट में से है ब्लॉगर मीट की, या बात कुछ और है ??
वैसे, अंदाज़-ए-बयां तो कुछ और होने का ही आभास करवा रहा है !!
खैर, जो भी हो आपने लिखा ज़ोरदार है !
व्यंग तो धमाकेदार है ....
ब्लॉगिंग के लिए कितनी योग्यता की ज़रूरत ही होती है?
लकी ड्रॉ निकाल कर ब्लॉगर अतिथियों की लिस्ट बनाई गई.
"लिफ़ाफ़ाबादी" अपने काम के धुरन्धर होते हैं ...waise mai bhi lifafabadi hi hun
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण ब्लॉगर तुम्हे बुलाने को
हे कुंठासुर! हे भैंसासुर! भूल न जाना आने को
meenu ji kya khoob tasveer kheechi hai aapne. aapke liye avismarneey sansmaran
badhaayi
लिफाफाबाद बारे तमाम टाँग खीँचू पोस्टोँ में बस आप की पोस्ट है जिसे पढ़कर खुलकर हँसे। धन्यवाद!
मीनू जी नमस्कार एक एक लाइन कई बार पढ़ लिया इतना जोरदार भी व्यंग हो सकता है पता नहीं था
लिफ़ाफ़ाबाद यह तो शरदजी की कहानी संग्रह "लापतागंज" जैसा हो गया। बहुत बढ़िया।
di...yeh vyang roopi aalekh bahut achcha laga.....
वह मीनू जी .. ब्लोगर्स कि तो ऐसी तैसी कर दी आपने .. बिचारे इतना बड़ा बौध्धिक सम्मलेन करने गए थे और मेहनताना हम लोगों को दे दिया .. इतनी मनोरंजक समीक्षा करके
लिफफाबाद में मच्छरों की धमाकेदार उपस्थिति को अपनी व्यग्य की तेज धार से
खूब बयां कर दिया है ...!!
बहुत सुन्दर ! तरकस से तीर छोडा है तो दूर तक जाएगा !
वाह मीनू जी :)
ब्लोगर सम्मेलन की चर्चा तो बहुत हो रही है सब चिट्ठों में ..........जोरदार व्यंग है ...... सम्मेलन की तो खूब बघिया उधेडी है ..... और आपका लिफाफाबाद तो बहुत मजेदार रहा .......... खूब खबर ली है आपने
आप तो अच्छी व्यंगकार भी हैं मालूम न था ! अब अतिरिक्त सावधानी रखनी होगी !
मीनूजी हम तो झांसे में आकर पूरी पोस्ट पढ़ गये और आनन्दित भी हो लिये। लेकिन बाद में देखा तो सनाका खा गये। आपने मच्छरों के साथ फ़ुरसतिया का नाम जोड़ रखा है। अब ई त बताइये कि मच्छर सीनियर ब्लागर हैं कि फ़ुरसतिया? जो सीनियर होगा वह इस बात के लिये हल्ला मचाने का इंतजाम करेगा कि उसको जूनियर के साथ टिका दिया।
किराए वाला लिफाफा अभी तक रखे हैं। सोच रहे हैं सुरक्षित रख दें - ऐतिहासिक वस्तु होगी। सौ साल बाद निलामी में अच्छी कीमत मिल जाएगी। लेकिन हम तो न होंगे।
________________
'किराया' स्पष्टीकरण इसलिए दिए हैं कि ब्लॉगरों को खरीदने बेंचने की बातें चल रही हैं। लिफाफा सुन कर लोग जाने क्या समझ लेते ! व्यंग्य तो अभिनव है। बधाई।
अब जाकर पूरी हुई रपट..हम तो सोचिये रहे थे ..कि मच्छर का एतना महत्वपूर्ण सहभागिता होते हुए भी कौनो रपट में ..इसकी चर्चा नहीं हुई काहे..अब जा के खरे जी ने ..एकदमे खरी खरी रपट दी है...
@अरे अनूप जी हमारी क्या हिम्मत कि हम फुरसतिया जैसे कुशल ब्लॉगर का नाम (जिनके लेखन के हम स्वयँ प्रशंसक हैं) मच्छर के साथ जोड़ें? ज़रा एक बार देखिए न हमने लिखा है:---
"मीटिंग में कुंठासुर से लेकर भैंसासुर तक, मसिजीवी से लेकर श्रमजीवी तक, अफ़लातून, खातून ,रवि ,कवि,वैज्ञानिक,इंजीनियर,साहित्यकार,पत्रकार सभी चिठ्ठाकार की कैपेसिटी में पहुँचे. मच्छरों को ब्लॉगरों की यह फुरसतिया गैदरिंग देख कर बड़ी कोफ़्त हुई पर बिचारे कर क्या सकते थे!"
अरे भई ब्लॉगरों की इतनी बड़ी फुरसतिया गैदरिंग हो पाना क्या कोई आसान बात है जैसी हमारे सिद्धार्थ भाई जी ने बुलाई ? हमने तो इस गैदरिंग को बहुत पसन्द किया. आप लोगों के प्रयास सचमुच प्रशंसनीय रहे और देखिएगा आने वाले वक्त में यह संगोष्टी ब्लॉग-जगत के विकास में नींव की ईंट साबित होगी.
सभी आयोजकों को धन्यवाद और मेरी अनेक शुभकामनाएँ.
@ आलसी भाई( गिरिजेश जी) लिफाफाबाद नाम मैने नही मेरी 4 वर्षीय भाँजी ने रखा है. हुआ यूँ कि जब मै लौट कर आई तो उसने अपनी तोतली ज़ुबान में कहा लिफ़ाफ़ाबाद से मेरे लिए क्या लाई? मुझे यह नाम अपने आर्टिकिल के लिए पसन्द आ गया और यह आप सब तक पहुँचा.
मीनू जी, अब आपके कहने कुछ न हो सकता है। आप कितनौहो समझाइये हम अब ई बात समझ लिये तो समझ लिये कि आप मच्छर और फ़ुरसतिया का तुलनात्मक अध्ययन किये हैं। आप तो खाली हमको ई बताइये कि जूनियर कौन है,सीनियर कौन् है? मच्छर या फ़ुरसतिया। बकिया हम बाद में देखेंगे। इस चक्कर में एक बार और बांच गये ई लेख। क्या आप वही वाली मीनूजी हैं जो कविता लिखती हैं! अजित जी ई त् नहीं बताये थे कि आप मजेदार खिंचाई भी करती हैं।
भैया ओम को हमारी शुभकामनायें कहियेगा। वे न होते तो अभय जी की पिक्चर न देख पाते हम लोग।
जिंदाबाद ....लिफाफाबाद ... बहुत ही रोचक लगा ये लिफाफाबाद
@अनूप जी
हा हा हा हा हा...
इस पूरे झमेले में ये एकमात्र आलेख है जो मुझे पसन्द भी आया और पठनीय भी लगा,,,,,,,,,वैसे समय तो और भी कई जगह खर्च किया था लेकिन यहाँ कुछ आनन्द की अनुभूति हुई
आपका धन्यवाद.इस आलेख के लिए !
मीनू जी खूब लिफाफेबाजी की है लिफाफाबाद सम्मेलन पर शुभकामनायें अच्छा व्यंग है
ज़ोरदार...अंदाज़े बया अलहदा लगा शुक्रिया
एक तीर से कित्ने शिकार करियेगा ??
:)
वीनस केशरी
ओह, अब अया समझ मे ..कि मच्छरों ने लिफ़ाफ़ाबाद में क्यों इतना उत्पात मचाया था?
रामराम.
बेहतरीन करारा व्यंग्य।
लिफाफाबाद में बूड़े कर्रे लोग रहते हैं।
आप कभी कभी व्यंग्य लिखा करें।
अच्छा व्यन्ग्य----आपकी कविताओं की तरह्।
पूनम
ताउ जी हमारे ब्लॉग पर पहली बार पधारे, हम कृतार्थ हुए. यूँ ही अपने भतीजे-भतीजियों पर आशीर्वाद बनाए रखें. धन्यवाद.
मच्छरों को भी नमस्ते जी.
ye to brahmastra jaisa ho gaya hai
Meenu JI.
Post a Comment