Monday, October 12, 2009

वे

कुर्सी के सापेक्ष

आला अफ़सर हैं वे,

मानवीय सम्वेदनाओं के सापेक्ष

चपरासी भी नही.

24 comments:

Dr. Shreesh K. Pathak said...

"..कुछ बड़ी कविताओं के सापेक्ष एक छोटी सटीक, व प्यारी कविता..."

विनोद कुमार पांडेय said...

इसे कहते है गागर में सागर भर देना...
कम शब्दों में बेहतरीन बात....धन्यवाद!!!

M VERMA said...

सटीक व अर्थपरक

Mishra Pankaj said...

खूबसूरत रचना

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

चार लाइनों में बहुत कुछ कह दिया आपने---
हेमन्त कुमार

शिवम् मिश्रा said...

दीदी,
प्रणाम !
बहुत बढ़िया, म़जा आ गया !

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब। आप ने तो चन्द लाईनो मे सच्चाई को उकेर दिया। बहुत-बहुत बधाई

मनोज कुमार said...

व्यक्ति को तरीक़े से पहचानने की कोशिश नज़र आती है।

सुशीला पुरी said...

क्या बात कही है मीनू जी !!!!!!!!! बधाई .

हेमन्त कुमार said...

कुर्सी और मानवीय संवेदनाओं के बीच की दूरी घटती नहीं नजर आ रही ।
बेहतर रचना ।
आभार ।

Udan Tashtari said...

कम शब्दों में बहुत बड़ी बात!! बधाई.

Arvind Mishra said...

संजीवनी जडी सी है यह क्षणिका ! बहुत कारगर ! किसके ऊपर /कारण जन्मी ?

विजय गौड़ said...

बहुत ही खूबसूरत चित्र है।

ओम आर्य said...

बेहद सम्वेदनशील रचना........बहुत कुछ कह गयी!

अनिल कान्त said...

बहुत कुछ कह दिया इस रचना ने

विजयप्रकाश said...

देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर
चपरासी से तुलना गजब है.

दिगम्बर नासवा said...

छोटी सी रचना में गहरी बात ...... सच एं कुछ अफसर ऐसी सब सीमाएं दो कर इस स्टार तक गिर जाते हैं ...

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

प्रबन्धन प्रशिक्षण का चतुर्वर्ग याद आ गया, जरा इस मैट्रिक्स की सम्भावनाओं को देखें:

कुर्सी । अफसर
______।___________

संवेदना । चपरासी

मैं देर तक सोचता रहूँगा।
शायद कोई लेख ही निकल आए।

Unknown said...

तो ये है आपकी कविता का गणितः

कुर्सी > अफसर > चपरासी > मानवीयता (मानवीय संवेदना)

बहुत खूब!!!

rashmi ravija said...

बड़े कम शब्दों में गहन बात कह दी है आपने....
एक नज़र इधर भी डालें..एक ज्वलंत विषय पे कुछ लिखा है...

http://mankapakhi.blogspot.com/

Science Bloggers Association said...

आज के दौर में क्षणिकाएं ज्यादा असरकार हैं। मैं भी कभी लिखा करता था, पर अब कविता तो जैसे छूट ही गयी है।
बहुत बहुत बधाई।
जाकिर अली रजनीश
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शरद कोकास said...

मुझे सापेक्षता का सिद्धांत याद आ गया । धन्यवाद ।

पूनम श्रीवास्तव said...

छोटी मगर वजनदार कविता----
पूनम

दर्पण साह said...

ue sapeksta ka siddhant to 'einstine' ke E=MC~2 ki yaad dilata hua sa lagta hai...

Haan Manviya samvedna ke meter se mat naapna menu ma'am in oonche auhde wale logon ko hamesh hi baune sabit hue hai...
Hote raheinge.

App nhi jaanti ki aapki rachnaaiyen mujhe kitna prabhavit karti hain?

Diwali ki hardik shubh kaamnaiyen.

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