गुलाबी ठंड
सुरमयी शाम का वक़्त
दीपक बस अभी अभी जले हैं
फ़िज़ाओं में फैली अजब सी कैफ़ियत
रूमानियत और सिहरन
अपनी चोटी में गुँथे
बेले के गजरे की छुअन से सिहर मैं
बेले के गजरे की छुअन से सिहर मैं
देखती हूँ चारों ओर
तुम अक्षर-अक्षर आने लगते हो शब्दों में
लिखने लगती हूँ कविता
बनने लगते हैं भावनाओं के ख़ूबसूरत महल
मोहब्बत की ख़ूबसूरत खिड़कियों से
झाँकते दिखते हैं कुछ अनचीन्हे अक्स
पास जाती हूँ देखने
अक्स अदृश्य डर का है
पाने से भी पहले
तुम्हें खो देने का
कविता लिख ली गई है
शाम गहराने लगी है
दीपक अभी भी जल रहे हैं.