Thursday, October 26, 2017

दीपक अभी अभी जले हैं




गुलाबी ठंड 
सुरमयी शाम का वक़्त
दीपक बस अभी अभी जले हैं
फ़िज़ाओं में फैली अजब सी कैफ़ियत 
रूमानियत और सिहरन
अपनी चोटी में गुँथे  
बेले के गजरे की छुअन से सिहर मैं
देखती हूँ चारों ओर 
तुम अक्षर-अक्षर आने लगते हो शब्दों में
लिखने लगती हूँ कविता 
बनने लगते हैं भावनाओं के ख़ूबसूरत महल 
मोहब्बत की ख़ूबसूरत खिड़कियों से 
झाँकते दिखते हैं कुछ अनचीन्हे अक्स
पास जाती हूँ देखने 
अक्स अदृश्य डर का है 
पाने से भी पहले 
तुम्हें खो देने का 
कविता लिख ली गई है
शाम गहराने लगी है 

दीपक अभी भी जल रहे हैं

Wednesday, July 12, 2017

अमरनाथ हमला: कुछ हाइकु






(1)
 ट्रिगर दबे
हरे से लाल हुआ
फिर सावन।

(2)

किसने किया?
रक्त से अभिषेक
आशुतोष का.

(3)

खूनी बौछार
पानी पानी हो गई
कश्मीरियत.
(4)

चारो दिशाएँ
लाल हुई हे! शिव
त्रिनेत्र खोलो.

(5)

हमारी माँग
माफ़ नहीं साफ़ हों
अब आतंकी।

Monday, July 10, 2017

कुछ हाइकु सावन के नाम


 
 
 
 
 
 


(१)
सावन आया
जग का हलाहल
पी लेंगे शिव|

(2)

है सूनापन
और भी गहराया
माहे सावन|

(३)
तुम न आए
उदास था गुलाब
रो पड़ी जूही|

(४)
किसने पढ़ी
समन्दर की पाती
चाँद के नाम|

(5)
(लघु कविता)
सावन आया
यह मैसेज
कोयल ने वायरल किया|

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