Saturday, January 18, 2014

उन-सलाई शीर्षक से कुछ लघु-कविताएँ













(1) उन-सलाई,
       रिश्तों की ऊष्मा को 
                      सहेज आई.



(2) उन-सलाई,
               नर्म फंदों की भाषा में
                                प्रेम की लिखाई.



(3) उन-सलाई,
              जो बिटिया ने पकड़ी,
                                तो माँ मुस्काई.



(4) उन-सलाई की सखी,
                       नर्म धूप और चारपाई.



(5) ऊन-सलाई लाई
               बच्चों की फीस, माँ की दवाई.

(6) माँ के बाद,
       
देख कर माँ की ऊन सलाई ,
                       आई बहुत रुलाई.

6 comments:

kuldeep thakur said...

***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 20/01/2014 को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।


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प्रवीण पाण्डेय said...

जब भी ऊन देखता हूँ, माँ की याद आती है।

दिगम्बर नासवा said...

मन को छूते हुए सभी भाव .. चंद पंक्तियों में गहरा सार ...

Unknown said...

देख कर माँ की ऊन सलाई ,
आई बहुत रुलाई.

wah wah

प्रतिभा सक्सेना said...


एक-एक फंदा ,
कोई उलटा कोई सीधा
चलती रहगी बुनाई ,

Meenu Khare said...

सभी पाठकों को धन्यवाद.

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