बहुत दिनों बाद मन है –
चलो लिख डालें एक कविता.
चलो लिख कर देखें
ढेर सारे सपने
सजाता है जिन्हें रोज मन
नींद आने के बस तुरंत बाद..
चलो पिरो दे पंक्तियों में
उन सारी पीडाओं को
व्यथाओं को
जो मन पर बोझ बन कर रहती हैं
और आत्मा जिन्हें न चाहते हुए भी सहती है...
चलो शब्द दे दें
भगवान से अपनी शिकायतों को...
चलो कह दें जग से
वो शिकवे
जो हैं हमें हँथेली की रेखाओं से...
चलो रचें वो सारे वाक्य
सुनना चाहते है जिन्हें कान
देखना चाहती है जिन्हें आँखे
अपने आगे सच होते हुए...
चलो उठाओ कलम और लिख डालो
या
रखो उँगलियाँ की-बोर्ड पर
और
छाप डालो वो सब कुछ
जो असल जिन्दगी में न सही
मगर कविता में तो जरूर हो सकता है सच.
17 comments:
कविता में कितना कुछ पिरोना है।
वाह यह कविता जो हमें अभिव्यक्त करती है खुद के माध्यम से और फिर भी कुछ नहीं कहती .....!
चलो उठाओ कलम और लिख डालो
या
रखो उँगलियाँ की-बोर्ड पर
और
छाप डालो वो सब कुछ
जो असल जिन्दगी में न सही
मगर कविता में तो जरूर हो सकता है सच.
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बेहतरीन।
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कल 14/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
अच्छी लिखी है।
सही सोच! कविता का जन्म हमारी परिस्थितियों के बीच ही होता है। यह हमारी भावात्मक स्थिति और गतिशील चेतना की अभिव्यक्ति है।
सबसे पहले हिंदी दिवस की शुभकामनायें /
बहुत ही सुंदर और गहन सोच को उजागर करती हुई बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट हिंदी दिवस पर लिखी पर आपका स्वागत है /
http://prernaargal.blogspot.com/2011/09/ke.html// आभार/
बेहतरीन रचना ....
वाकई.. कविता में सब कुछ पिरोया जा सकता है.
कविताओं का सच कितना भिन्न है सच से ... बहुत कुछ कहती है ये कविता ..
सपने भी पूरे हो गये, मन भी हल्का हो गया. बड़े ही सहज अंदाज में मन की बात कही गई.
bahut acche meenuji
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Regards.
जो असल जिन्दगी में न सही
मगर कविता में तो जरूर हो सकता है सच. kitna sahi kaha.......
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
जय माता दी..
चलो रचें वो सारे वाक्य
सुनना चाहते है जिन्हें कान
देखना चाहती है जिन्हें आँखे
अपने आगे सच होते हुए... वास्तव में कविता यही मनचाही दुनिया देती है
सुन्दर कविता! बना रहे यह उल्लास यूँ ही!
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