इतने महीनों की चिलचिलाती गर्मी के बात आखिर मानसून की आमद दिखी और बादलों से कुछ बूंदे धरती पर पहुँची . पहली बारिश, हर ले आपके मन की हर तपिश... इस कामना के साथ प्रस्तुत है कुछ काव्य पंक्तियाँ और मेरे पूज्य गुरूजी पद्मभूषण पंडित छन्नू लाल मिश्र जी का गाया राग मियां मल्हार . . पहली फुहार पर इससे अच्छा उपहार और क्या हो सकता है भला एक ब्लॉगर की ओर से !!! आशा है गुरूजी की आवाज़ आपको रससिक्त करने में सफल होगी.
ओ वर्षा के पहले बादल
मन की गति जैसे तुम चंचल
चंचल और चपल .
पहली वर्षा बादल तुम पहले
प्रथम प्रेम आसक्ति प्रथम
प्रिय वियोग का अवसर पहला
कैसे समझाऊँ मन
उड़ कर दूर दूर तुम जाते
छू कर आते उनका द्वार
सुधि लाते उनको ना लाते
सूना मन का आँगन.
ओ वर्षा के पहले बादल
मन की गति जैसे तुम चंचल
चंचल और चपल .
पद्मभूषण पंडित छन्नू लाल मिश्र जी का गाया राग मियां मल्हार सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें .
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10 comments:
पहली वर्षा बादल तुम पहले
प्रथम प्रेम आसक्ति प्रथम
प्रिय वियोग का अवसर पहला
कैसे समझाऊँ मन
एक सुंदर रचना , बधाई
क्या कहने ! बहुत खूब !
सुन्दर कविता और राग मल्हार पर पंडित जी की गायकी -यह सिनर्जी बस गजब ढा गयी ...शुक्रिया !
बेहद उम्दा पोस्ट!
http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/4_04.html
लिखा हुवा तो कमाल का है ... सुनने का लिंक नज़र नही आया ....
गर्मी के बात
or garmmi ke baad..
Read and tasted your lines...
मन को छू लेने वाली कविता.शुद्ध हिंदी के शब्दों का चयन बहुत ही सुंदर है.
sach me bahut sundar rachna.
बहुत सुन्दर
तन -मन सारा भीग गया .........
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