Tuesday, March 23, 2010

श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन

श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतानरम्।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकंदनम्।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्।।

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्।।

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।

मनु जाहि राचेउ निलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिह पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।

सोरठा-जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

7 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

दर्शन करके धन्य हो गया.....अभी तक तो पहेलियों में ही खोया था.....
........
विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
.........
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....

mukti said...

रामनवमी की शुभकामनाएँ!!

प्रणाम पर्यटन said...

मीनू जी बधाई,
बहुत सुन्दर
प्रदीप श्रीवास्तव

देवेन्द्र पाण्डेय said...

sunder post.
...abhar.

सुशीला पुरी said...

बहुत बहुत मुबारक !!!!!!!!! बहुत दिन बाद पढ़ा ,सुखद लगा .

shama said...

Bade dino baad aapke blogpe aayi aur bada sukhad ehsaas hua!

दिगम्बर नासवा said...

प्रभु श्री राम के सुंदर चित्रों से सज़ा आपका ब्लॉग बहुत सुंदर लग रहा है ... जै श्री राम ...

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