Monday, February 22, 2010

सूरज और माचिस






सूरज की लपटों से

मैं निकाल लाई

अपना घरौंदा सुरक्षित,


अब माचिस की इक तीली

मेरा आशियाना जलाने को है.

18 comments:

समय चक्र said...

बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति ...

ओम आर्य said...

आग जब नजदीक हो, तो ज्यादा जलाती है...पर तीलियों की उम्र हीं कितनी होती है... जरा सब्र किया जाए

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

दी.... बहुत ही गहरी बात लिए हुए...यह रचना .... बहुत सुंदर लगी...

मनोज कुमार said...

थोड़े महँ जानिहहिं सयाने ।
बुद्धिमान लोग थोड़े ही में समझ लेंगे ।

mukti said...

बहुत खूब !!! सुन्दर रचना !!! थोड़े से शब्दों में बड़ी बात .

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब , रचना छोटी परन्तु बहुत कहती ।

M VERMA said...

इरादे ही घर जलाते है वर्ना तो माचिस की तीली ही चूल्हा भी जलाते हैं

प्रज्ञा पांडेय said...

बहुत सुंदर ..थोड़े में बड़ी बात कही आपने! अति सुंदर

Udan Tashtari said...

क्या बात है, बेहतरीन!

रचना दीक्षित said...

बहुत कुछ कह डाला इतने में ही बधाई

Anonymous said...

वाह ! मीनू जी !बहुत गहरा तार छेड़ दिया आपने !अत्यंत सार्थक पंक्तियाँ ! बधाई !

राजू मिश्र said...

थोड़े से शब्दों में बड़ी बात.

दिगम्बर नासवा said...

कमाल की पंक्तियाँ है ... बरबस ये गीत याद आ गया ..."हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकल के ... इस देश को ...."
कई कई बार ऐसा होता है इंसान बड़ी से बड़ी बात, बड़े से बड़ा घाव सह जाता है, पर कोई छोटी सी बात गहरी चुभ जाती है ... बहुत अच्छा लिखा है मीनू जी ...

amarjeet kaunke said...

bahut hi khubsurat poem....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह यह हुई न बात...
पांच लाइनों में सागर

रवीन्द्र प्रभात said...

आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...

Naveen Tyagi said...

Meenu ji aapko va aapke pareevaar ko holi ki hardik shubhkamna.

Kiran Panchal said...

machis se aashiyane nahi diye jalaye jate hai . ashiyano ko to nafrat bhari ek nazar hi kafi hai.

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