



नवाबों का शहर लखनऊ जहाँ एक ओर अपनी तहज़ीब, गंगा-जमुनी संस्कृति और अदब के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर यह संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प की बेजोड़ कलाओं के लिए भी जाना जाता है परंतु यहाँ की पाक कला भी ऐसी है कि खाने वाला बस उंगलियाँ चाटता रह जाए. अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी खानपान शैली है।
अगर आप लखनऊ आ रहे हैं तो लज़्ज़तदार व्यंजनों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त आपके इंतज़ार में है जनाब. खाने का मीनू हाज़िर है ----कबाब, पुलाव, कोरमा, अकबरी जलेबी, खुरासानी खिचड़ी, दही के कोफ्ते , तरह की बिरयानीयां, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा ,काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब, 'दमपुख़्त', सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है। चकरा गए न? बताइए क्या खाएँगे आप?
मुगलकाल में अवध प्रांत अपनी समृद्धि के लिए विख्यात था। यहां के नवाब वाजिद अली शाह अपने शाही अंदाज और शानो-शौकत के लिए मशहूर थे। उन्हें लजीज खाने का बेहद शौक था। शाही रसोई में उनके खानसामे तरह-तरह के मुगलई लजीज पकवान बनाया करते थे और वहां ये पारंपरिक पकवान आज भी बेहद पसंद किए जाते हैं। गरम मसालों की खुशबू से भरपूर लज्जतदार अवधी व्यंजन आज पूरी दुनिया में मशहूर है।
नवाबी दौर में लज़ीज़ वयंजनों की अवधी पाक शैली अपने उरूज़ पर थी. पाक कला के माहिर अवध के बावर्ची और रकाबदारों ने मसालों के अतिविशिष्ट प्रयोग से अवध की खान पान परम्परा को अद्वितीय लज़्ज़त बख्शी और इसे कला की ऊँचाइयों तक पहुँचाया.
अवध के बावर्चीखाने ने जन्म दिया पाक कला की दम पद्धति को जिसमें व्यंजन कोयले की धीमी आँच पर पकाए जाते थे. पकाते समय भाप पतीली से बाहर न निकले इसके लिए सने हुए आटे की लोई को पतीली के ढक्कन के किनारों पर चिपका दिया जाता था. लखनऊ की बिरिआनी का खास स्वाद दम शैली से बिरयानी बनाने के कारण आता है और यही इसे हैदराबादी बिरयानी से अलग भी करता है. अवधी खाने की विशेषता मसालों और अन्य सामग्रियों के एक खास संतुलन से उत्पन्न स्वाद से जानी जाती थी और आज भी यह परम्परा जीवित है.
आइए खाने की शुरुआत शोरबे से करते हैं.माँसाहारियों को परोसा जाएगा “लखनवी यखनी शोरवा ” तो शाकाहारी स्वाद लेगे ‘दाल शोरवा’ का.
इसके बाद बारी है केसर लगा कर रोस्ट की गई ‘झींगा मेहरुन्निसाँ’और मुर्ग की खास प्रिपरेशन ‘टँगरी-मलिहाबादी’ की.
दम पुख्त एक लखनवी व्यंजन पकाने की विधि है। मूलतः इसके द्वारा मांसाहारी व्यंजन पकाये जाते हैं। 'दमपुख़्त' का कायदा है कि गोश्त को मसालों के साथ 4-5 घंटे तक हल्की आँच पर दम दिया जाता है (सारे मसालो जैसे तले हुए प्याज, हरी मिर्च, अदरख-लहसुन और खड़े मसालों को एक साथ पीस कर बरतन में गोश्त के साथ ढक दिया जाता है और ढक्कन के किनारों को गीले आटे से सील कर उसकी भाप (दम) में पकने दिया जाता है)। अगर लकड़ी के कोयले पर इसे पकाया जाए तो इसका असली ज़ायका पता चलता है, पकने के बाद इसे सूखे मेवे, धनिया-पुदीना से सजा रूमाली रोटियों के साथ पेश किया जाता है।
अवध का एक प्रसिध व्यंजन नहारी-कुल्चे है. वास्तव मे नहारी एक सामिष व्यंजन है जिसमें हड्डियों को विशिष्ट मसालों के साथ उबाल कर मसालेदार रसे में मिला कर गर्मागरम परोसा जाता है.इसी तरह कोरमा भी अवधी दस्तरख्वान का एक खास आकर्षण होता है.
मीठे व्यंजंनों में शीर क़ोरमा बहुत लोकप्रिय है जिसमें ग़ाढे दूध में मेवे और खोया पड़्ता है. डबलरोटी के टुकडों को तल कर केसर मिले दूध से बनाए गए शाही टुकडे मीठा खाने वालों की पहली पसन्द होती है तो जब लखनऊ की सिवइय़ाँ जब केसर की खुशबू और कटे हुए पिस्ते के साथ परोसी जाती हैं तो आदमी के मुँह से बेसाख्ता यही निकल जाता है क्या कहने लखनवी व्यंजनों के.
ऐसा नही है कि अवधी दस्तरख्वान पर शाकाहारी लोगों के लिए कुछ है ही नहीं.यहाँ पर आपको मिलेंगे कटहल, केले और पपीते के खास कबाब भी.पनीर को कोयले की आँच पर सेक कर मसालों के साथ बना “तोहफ़ा-ए-नूर्” केसर मिले “दही के कोफ़्ते” ,पनीर में खास तरह की चटनी भर कर बनाए गए कोफ्ते “पनीर-ए-हज़रतमहल”और शाकाहारी “गुलनार बिरयानी” आपको लखनवी स्वाद कभी भूलने नही देगी. लखनऊ की चाट देश की बेहतरीन चाट में से एक है तो मलाई की गिलौरी और मलाईमक्खन का स्वाद आप कभी भूल नहीं पाएँगे। और खाने के अंत में विश्व-प्रसिद्ध लखनऊ के पान जिनका कोई सानी नहीं है।