चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक.
मातृभूमि को नमन,हर स्वर गाए जनगणमन... आज मौक़ा था राजभवन,लखनऊ में आयोजित 61वें गणतंत्र दिवस समारोह का. जब तिरंगी पट्टियों से सजी,बन्दनवारों,तोरणों और पुष्पों से सुसज्जित लखनऊ नगरी के उल्लास और उत्साह के आगे कुहासे की धुन्ध भी मानो शरमा कर एक किनारे हट गई और सामने आया भारत के भविष्य सा जगमगाता सूरज, भारत माँ की चरणवन्दना को...चुस्त और चौकस सुरक्षा-व्यवस्था के बीच प्रात: ठीक 9:30 बजे उ.प्र.के राज्यपाल श्री बी.एल.जोशी ने जैसे ही ध्वजारोहण किया, राजभवन राष्ट्रगान की ओजपूर्ण स्वरलहरियों से गूँज उठा. सारे जहाँ से अच्छा और वन्देमातरम जैसी धुनों को बजाते बैंड का उत्साह देखते बनता था. संक्षिप्त किंतु अतिमहत्वपूर्ण राजभवन के इस समारोह में उपस्थित हर दिल मानो यह कह रहा था कि हर धड़्कन वतन के लिए, सब अर्पण वतन के लिए. इस अवसर पर लखनऊ विधान सभा के सामने एक भव्य परेड की सलामी भी राज्यपाल महोदय ने ली. इस अवसर पर हम आपके लिए लाए हैं, कार्यक्रम की एक ऑडियो रिपोर्ट, कुछ तस्वीरे और कुछ देशभक्ति गीतों के संगीतबद्ध ऑडियो जो मेरे ब्लॉगर मित्रों ने कुछ समय पूर्व मेरे अनुरोध पर खास तौर से लिखे थे और मैने उन गीतों को संगीतबद्ध करवाने का वायदा किया था. सबसे पहले प्रस्तुत है राजभवन के आयोजन की ऑडियो रिपोर्ट:
अब प्रस्तुत है श्री पंकज सुबीर जी का गीत और उसका संगीतमय ऑडियो. संगीत हेमसिंह का और गायक देवेश चतुर्वेदी----
बुलबुल हैं हम जान हमारी है अपने गुलशन के लिये
देखो सीना चीर हमारा हर धड़कन है वतन के लिये
भारत की माटी को अपने शीश पे हमने लगाया है
लेके तिरंगा शान से हमने वंदे मातरम गाया है
जब भी पड़ी ज़रूरत तो हम आगे बढ़ के लुटा देंगें
खून का इक इक कतरा अपने जाने से प्यालरे चमन के लिये
हर धड़कन है वतन के लिये, हर धड़कन है वतन के लिये
पैदा हुए यहीं पर इसकी ख़ाक में ही मिल जाएंगे
मज़हब ज़ात हो कुछ भी बस हिन्दुस्तानी कहलाएंगे
जन्नत भी गर मिले तो हंस के ठुकरा देंगे हम उसको
काश्मीजर से कन्याे कुमारी तक फैले आंगन के लिये
हर धड़कन है वतन के लिये, हर धड़कन है वतन के लिये
दिगम्बर नासवा जी का गीत और उसका संगीतमय ऑडियो. संगीत हेमसिंह का और गायक देवेश चतुर्वेदी---
हर धड़कन वतन के लिए
यह जीवन वतन के लिए
इस धरती से जो पाया है
सब अर्पण वतन के लिए
मुक्त धरा हो मुक्त पवन
मुक्त गगन वतन के लिए
रग रग से फिर गूँजे अपने
जन गन मन वतन के लिए
भाषा या हो धर्म अलग पर
एक हो मन वतन के लिए
माँ मुझको भी टीका कर दो
यह तन मन वतन के लिए
सुलभ सतरंगी का गीत और संगीतमय ऑडियो. संगीत गोपाल दास का ---
है जीवन वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए ..
आवाज़ हम उठाये वतन के लिए
खून अपना बहायें वतन के लिए
दुश्मन को सबक सिखायें वतन के लिए
हमारा तन अर्पण वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए..
तरक्की की राह में हम चलते जायें
हमारी कोशिश है नफरतों को मिटायें
हर कदम पर दिया प्रेम का जलायें
हम जीये हमवतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए..
वतन के वास्ते जीयें जायें हम
कार्य दुष्कर सारे किये जायें हम
बाधाओं से कभी न घबरायें हम
हमारा समर्पण वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए..
है जीवन वतन के लिए
हर धड़कन वतन के लिए ..
गिरीश पंकज जी का गीत और उसका संगीतमय ऑडियो. संगीत गोपालदास का ---
हर धड़कन वतन के लिए
हम जिएंगे अमन के लिए
देश मेरा सलामत रहे...
हम मरें इस सपन के लिए
हम है इन्सां नहीं है पशु
जीते है जो कि धन के लिए
हमको जीना है मरना यहाँ
अपने सुन्दर चमन के लिए
कांटे राहों से हटते सदा
बढ़ने वाले चरन के लिए
रोशनी को बचाएँगे हम
हर किसी अंजुमन के लिए
एक नज़्म मेरी भी इसी श्रँखला में, संगीतकार और गायिका रशिम चौधरी, बाँसुरी पर हरिमोहन श्रीवास्तव और सितार पर सिब्ते हसन हैं--
तेरे दामन पर ऐ माँ
जब भी आया काला साया
हमने भी तो खून बहाया
हमने भी तो खून बहाया
पर ऐसी क्या बात हुई माँ
शक के काले साए में अब
क्यूँ तेरा इक बेटा आया?
क्यूँ तेरा इक बेटा आया?
कठिन सवाल खड़ा है ऐ माँ
तुझको ही कहना होगा माँ
हम सब बच्चे तेरे ही हैं
भारत हम सबका ही वतन
सबके तन में एक लहू है
तेरे लिए सबकी धड़कन.