Friday, February 28, 2014
वसन्त पर कुछ हाइकु कवितायें
(1) वसन्त क्या है?
झूलती मंजरी की
बौराई पेंगें....
(2) कडी ठंड से
बेघरों को बचाने
वसन्त आया.
(3) ढोल की थाप
मधुमास में गूँजे
फाग ही फाग.
(4) कोयल गाए
पलाश की बाहों में
राग वसन्त.
(5) टेसू-पलाश
वसन्त है लगाए
नसों में आग.
(6) तेरा दीदार
मधुमास ने तोड़ी
हर दीवार.
(7) खून की होली
रँगा वसन्त भी
लाल रंग में.
Saturday, January 18, 2014
उन-सलाई शीर्षक से कुछ लघु-कविताएँ
(1) उन-सलाई,
रिश्तों की ऊष्मा को
सहेज आई.
(2) उन-सलाई,
नर्म फंदों की भाषा में
प्रेम की लिखाई.
(3) उन-सलाई,
जो बिटिया ने पकड़ी,
तो माँ मुस्काई.
(4) उन-सलाई की सखी,
नर्म धूप और चारपाई.
(5) ऊन-सलाई लाई
बच्चों की फीस, माँ की दवाई.
(6) माँ के बाद,
देख कर माँ की ऊन सलाई ,
आई बहुत रुलाई.
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