Friday, October 22, 2010
Friday, October 01, 2010
इक नया शिवाला इस देश में बना दें
आ इक नया शिवाला इस देश में बना दें
दुनिया के तीर्थों से ऊंचा हो अपना तीरथ
दामन-ए-आसमान से इसका कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गाएं मंतर वो मीठे मीठे
सारे पुजारिओं को मय प्रीत की पिला दें
शक्ति भी शान्ति भी भक्तों के गीत में है
धरती के बासियों की मुक्ति भी प्रीत में है.
आ गैरियत के परदे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक्शे दुई मिटा दें.
---अल्लामा इकबाल
Labels:
अल्लामा इकबाल,
गैरियत के परदे,
शक्ति भी शान्ति भी
Subscribe to:
Posts (Atom)