Friday, June 18, 2010
एक अच्छी सी पोस्ट
बड़े दिनों से ब्लॉग पर कोइ पोस्ट नहीं लिखी. आखिरी पोस्ट १८ अप्रैल को लिखी थी इस हिसाब से आज पूरे दो महीने हो गए . इतना लम्बा गैप तो आज तक मेरे ब्लॉग लेखन में कभी नहीं आया फिर यह कैसे हुआ ? कारण तो मुझे भी ठीक से समझ नहीं आ रहा पर कुल मिला कर विचार शून्यता का गहरा माहौल मेरे अन्दर जाने कहाँ से सिमट आया था और मै उससे निकल नहीं पा रही थी.विचार शून्यता की स्थिति बहुत खतरनाक होती है. यह अवसाद से भी अधिक डरावनी होती है. एकांत श्रीवास्तव की एक कविता में कहा भी गया है की आदमी जब कुछ नहीं सोचता ,कुछ नहीं कहता तो वो मर जाता है.
थोड़ा मुड़ कर पीछे देखती हूँ तो एक बहुत प्यारा मित्र दिखाई देता है, बचपन का सहपाठी, पढने में बहुत शार्प था, परम देश-भक्त, ऐसा राष्ट्रवादी जिसकी हर सांस सिर्फ देश के लिए ही हुआ करती थी. हम सब साथी विदेश जाने के नाम भर से ही बच्चों की तरह मचल जाते थे पर वो बड़े गर्व से कहा करता था की मैं तो देश छोड़ कर स्वर्ग भी नहीं जाऊंगा और हम सब लोग खिलखिला कर हंस पड़ते थे. यूनिवेर्सिटी की वो कैंटीन ऐसे ही तमाम बातों की साक्षी हुआ करती थी.
हम सभी साथी समय बीतने के साथ जीवन में अपने -अपने हिसाब से सेट हो गए पर अपने उस मित्र को आज तक नहीं भूल पाई थी. संपर्क छूट चुका था पर उसकी बातें अभी भी मानो ज़ेहन में घूमा करती थी."देश के प्रति अटूट प्रेम होगा तभी देश बदला जा सकता है .. और देश बदलेगा जब राष्ट्रवादी ताकतें एक होंगी ...और उस दिन भारत विश्व में नंबर वन होगा ...."
अभी हाल में ही उसके पिता जी से मुलाक़ात हुई तो पता चला जनाब अमरीका में जा बसे हैं.देश तो दूर अपने घरवालो, यहाँ तक की माता पिता की भी सुध भूल बैठे हैं.पिछले साल माँ की मृत्यु पर तो वो जनाब भारत नहीं ही आ पाए थे अब एक साल बाद माँ की बरसी पर भी आने की कोई जुगत बेचारे नहीं लगा पाए है अतः सब कुछ पिताजी को ही अकेले करना पड़ रहा है.केवल एक बेटा ही जो है संतान के नाम पर इन बेचारों का!सुन कर सन्न रह गयी. खून खौल गया. ऐसी कहानिया सिर्फ पत्रिकाओं में ही पढी थी. आज जब इसका लाइव शो देखा तो पैर के नीचे की ज़मीन खिसकती सी लगी. शाम को एक लम्बा सा ईमेल उस महापुरुष को लिखा और जितनी गालियाँ दे सकती थी दी. सोचा था साब जी माफी ज़रूर मांगेगे पर साब जी ने मुझे पहचानने से भी इंकार कर दिया. मन खिन्न हो उठा .कुछ और मित्रों ने भी संपर्क की कोशिश की पर उधर से कोइ प्रतिक्रिया नहीं मिली.वो इंसान कितना बड़ा कायर है ! कितना बड़ा पलायनवादी ! मुंह छुपाये घूम रहा है.... पर सबसे भागने वाला इंसान क्या अपने आप से भी भाग सकता है ? उसके मन में ज़रूर गिल्ट होगा वर्ना वो हम सबसे बचता क्यों घूमता?हमारा सामना करता और अपना स्पष्टीकरण देता!
बस यही कुछ था जिसने मन को अजीब सी हालत में लाकर खड़ा कर दिया था. मन बिलकुल खाली घर जैसा हो गया था. विचार जैसे रूठ गए थे. आज दो महीने बाद सोचा था एक अच्छी सी पोस्ट लिखूँगी पर लिखने बैठी तो सच्चाई
जैसे अपने आप लिखती चली गयी.
मन अभी भी उदास है पर पता नही क्यूं मन में विश्वास है की वो मित्र ज़रूर एक दिन देश वापस आयेगा हम मित्रो की खातिर न सही, देश की खातिर न सही पर अकेले बूढ़े पिता की आँखों में बसने वाली नमी की खातिर वो ज़रूर वापस आयेगा और आकर देश की मिट्टी से माफी मांगेगा...अपने संस्कारों को भूल जाने के अपराध की माफी .....
इतने बड़े अंतराल के लिए आप सबसे दूर रहने की माफी मै भी मांगती हूँ पर आप यह ज़रूर बताइयेगा की क्या मेरी यह पोस्ट एक अच्छी सी पोस्ट की श्रेणी में आती है?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
18 comments:
देर आमद पर दुरुस्त आमद !
दीदी प्रणाम !
कैसी है आप ?
पोस्ट के बारे में बाद में ..........
बहुत अच्छी पोस्ट .. बचपन के सारे संस्कार न जाने कहां खो जाते हैं .. कि लोग अपनो को भी नहीं पहचान पाते हैं !!
आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी !!
माता पिटा = माता पिता
अपने संस्कारों कोhttp://draft.blogger.com/post-create.g?blogID=7756472865096344292 भूल जाने के अपराध की माफी = अपने संस्कारों को भूल जाने के अपराध की माफी
कृपया सुधार लें !
बाकी पोस्ट सच में बढ़िया है !
मीनू बहुत अच्छी पोस्ट है आपकी ! आपके उस विदेश जा बसे दोस्त को ईश्वर सद्बुद्धि दें इसी शुभकामना के साथ आमंत्रण मेरे वहाँ का !
एक अच्छी पोस्ट ताज़गी लिए ..शायद मित्र के जीवन में कुछ समस्या हों जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहें हों ....आपका मित्र बुरा इंसान नहीं हों सकता !
शिवम् जी यह पोस्ट लैपटॉप पर लिखी है. इस पर अभी हाथ उतना सेट नही है अतः गलती हुई. भूल सुधार कर दिया है. धन्यवाद्.
और ये रही एक अच्छी सी टिप्पणी।
कृपया समय निकाल कर कुछ न कुछ लिखती रहें, हमें इंतजार रहता है।
मीनू जी आपने जिनके बारे में लिखा है वे आपके मित्र हैं... पर मैंने तो ऐसी कहानी अपने परिवार में जी है... मेरा भाई तो देश में ही है...पर ... खैर छोड़िये क्या कर सकते हैं? बड़े-बड़े लोगों को ऐसे अपनी ही कही बातों से पलट जाते देखा है, कुछ कर नहीं सकते पर दिल तो दुखी हो ही जाता है.
" आदमी जब कुछ नहीं सोचता ,कुछ नहीं कहता तो वो मर जाता है. "
मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ . पहली बात तो इस अवस्था को वास्तव में प्राप्त करना बिरले लोगों के लिए ही संभव होता है . जो लोग इस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं वह एक ध्यान की अवस्था है . इस अवस्था में जो नया दीप जलता है वह उस व्यक्ति के जीवन में क्रांति ला सकता है .
बेहतरीन लेख. बहुत खूब!
आप पढ़िए:
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
बड़ी दूर तक गया।
लगता है जैसे अपना
कोई छूट सा गया।
कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
ख्वाहिश छीन ली सबकी।
लेख मेरा हॉट होगा
दे दूंगा सबको पटकी।
सपना हमारा आज
फिर यह टूट गया है।
उदास हैं हम
मौका हमसे छूट गया है..........
पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:
http://premras.blogspot.com
जब आदमी कुछ नही कहता और कुछ नही सोचता ..तो वह नन्ही नन्ही जिजीविषाओं का खाद पानी लेना होता है ! अक्सर मेरा भी इनसे सामना होता है ! बहुत सुंदर पोस्ट है आगे की उम्मीदों के लिए ! प्रतीक्षा में !
jeevan ke kaphi kareeb hain apki post...Aksar na chahtey huye bhi vyakti ka mann khinn ho jata hai asey mein thodey viram ke bad doguni utsah se khud ko abhivyakt karney ka santosh hi kuch or hota hai
जिनकी सारी उम्र तिनके जोड़ने में कट गयी,
उन बुज़ुर्गों के लिए घर क़ैदखाने हो गए...
आपकी ये अच्छी से दुखी करने वाली पोस्ट आज देखा -मीनू जी आप एक घटना से विचलित हो गयीं ? यहाँ तो सीने में अपनों के ही कई दफ़न हैं -संतोष कर लिए बैठे हैं ..
भूलिए इसे और काम पर लगिए..
पोस्ट सच में अच्छी है .... बहुत ही लाजवाब ... कुछ संवेदनशील सवाल उठाती हुई ...
didi tumhare lekh itne achche hai ki mere aankh me pani aa gaya. laddoo.
Post a Comment