श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतानरम्।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकंदनम्।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।
मनु जाहि राचेउ निलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिह पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
सोरठा-जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
Tuesday, March 23, 2010
Tuesday, March 16, 2010
जगदम्बा के नौ रूप
जगत जननी जगदम्बा के नौ रूप:
1. शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चन्द्रघण्टा 4. कूष्मांडा 5. स्कन्दमाता 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।
माँ दुर्गा के नवरूपों की उपासना के मंत्र
1. शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
2. ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
3. चन्द्रघण्टा
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥
4. कूष्मांडा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
5. स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥
6. कात्यायनी
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दघाद्देवी दानवघातिनी ॥
7. कालरात्रि
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥
8. महागौरी
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा ॥
9. सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥
Monday, March 08, 2010
मेरा घर
(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)
बचपन से सुना था
माँ के मुँह से
कि
यह घर मेरा नहीं है
जब मैं बड़ी हो जाऊँगी
तो मुझे
शादी होकर जाना है
अपने घर.
शादी के बाद
ससुराल में सुना करती हूँ
जब तब...
अपने घर से क्या लेकर आई है
जो यहाँ राज करेगी?
यह तेरा घर नही है,
जो अपनी चलाना चाहती है...
यहाँ वही होगा जो हम चाहेंगे,
यह हमारा घर है, हमारा !
कुछ समझी?
बचपन से सुना था
माँ के मुँह से
कि
यह घर मेरा नहीं है
जब मैं बड़ी हो जाऊँगी
तो मुझे
शादी होकर जाना है
अपने घर.
शादी के बाद
ससुराल में सुना करती हूँ
जब तब...
अपने घर से क्या लेकर आई है
जो यहाँ राज करेगी?
यह तेरा घर नही है,
जो अपनी चलाना चाहती है...
यहाँ वही होगा जो हम चाहेंगे,
यह हमारा घर है, हमारा !
कुछ समझी?
Wednesday, March 03, 2010
बजट
देश का बजट बनाते हो
हर साल
कीमते बढ़ती हैं चीज़ों की
हर साल.
एक बार तो बनाओ
ऐसा बजट कि
कुछ कीमतें बढें लड़कियों की भी..
मिट्टी के मोल भी नहीं खरीद रहा जिन्हे
विवाह के बाज़ार में कोई !
विवाह के इस भव्य बाज़ार में
लड़कों की धुँआधार बिक्री से
चकराने लगा है सिर अब...
अरे एक बार तो मौक़ा दो
लड़कियाँ भी चख लें स्वाद
बिकने के सुख का !
घबराओ नहीं
इसमें ग़लत कुछ भी नहीं..
ऐसा करना पूर्ण वैधानिक होगा
क्यों कि
लड़के और लड़की में
कोई अंतर न रखने का आदेश
तो स्वयँ
देश के सम्विधान ने दे रखा है !
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