Tuesday, August 18, 2009

सावन

जब जब भी

बेतरह बरसती हैं

मेरी आँखें ,

बेहद हैरानी होती है

कि

मन के किसी कोने में

अब भी सावन बसता है.


और

जब जब भी

बेतरह बरसती हैं

मेरी आँखें ,

बेहद खुशी भी होती है

कि

मन के किसी कोने में

अब भी सावन बसता है .

14 comments:

ओम आर्य said...

वाह वाह वाह .......क्या कहने दिल को छू गयी रचना .........मन कुछ ऐसा ही होता है ......बहुत खुब

vallabh said...

'' मन के किसी कोने में

अब भी सावन बसता है.''

और आँखे हैं कि उस सावन का पता बता ही देती हैं...

अच्छी रचना....बधाई..

सुशीला पुरी said...

मीनू जी ! सुना है रात भर बरसा है बादल,
मगर वह शहर जो प्यासा रहा है .

mayank.k.k. said...

कविता छोटी सी मगर गागर में सागर
9415418569

अमिताभ मीत said...

बहुत खूब. Though, If I may add, if life had just these two shades to offer, it could all've been so simple. That's in no way trying to undermine your poem, I'm writing all these absurd things because something struck a chord ...

Mithilesh dubey said...

मन के किसी कोने में
अब भी सावन बसता है"

अच्छी रचना बधाई..

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!

अर्चना तिवारी said...

दिल को छू गई आपकी रचना...सुंदर

Vinay said...

लाजवाब!
---
ना लाओ ज़माने को तेरे-मेरे बीच

vineeta awasthi said...

very nice heart touching poem.

डॉ महेश सिन्हा said...

बहुत खूब मन और सावन

Arshia Ali said...

यही तो रोना है।
( Treasurer-S. T. )

किरण राजपुरोहित नितिला said...

सबके दिलों में सावन बसा रहें
जो किसी के पतझड़ में बरस पाये
नमस्कार

बहुत अच्छा लग रहा है आपसे परिचित होकर ।

www.bhorkipehlikiran.blogspot.com
www.kiranrajpurohit.blogspot.com

Reetika said...

fir se ye sawan ab kyun na aaye..din dhal jaaye, hai raat na jaaye........!

samvendansheel rachna!

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