Sunday, July 26, 2009

उदासी

उदासी,

मेरी आँखों के ड्राइंग रूम में

बड़े इत्मिनान से बैठी थी

पलकों के सोफा सेट पर,



तुम्हारा फोन आया

और उदासी

शर्म से ज़मीन में गड़ गयी.

5 comments:

Vinay said...

बहुत कोमल कविताएँ लिखती हैं आप, जैसी स्याही अभी तक गीली हो!
---
चर्चा पर टिप्पणी करने के लिए आभार
---
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम

सुशीला पुरी said...

भटकी हुई उदास नदी में कितनी बार बहेंगे हम ?

Science Bloggers Association said...

Adbhut.

श्यामल सुमन said...

कम शब्दों में अच्छी अभिव्यक्ति मीनू जी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

प्रशांत मलिक said...

bahut achchi kavita... sach me

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails