Tuesday, November 17, 2009
मुस्लिम महिलाओं ने निकाला वन्देमातरम सम्मान मार्च
आज जहाँ देश में चारो ओर वन्दे मातरम सम्बन्धी विवाद चर्चा में है वहीं बनारस की मुस्लिम महिलाओं के प्रसिद्ध संगठन "मुस्लिम महिला फ़्रंट" ने गत 9 नवम्बर को वन्दे मातरम के विरोधियों को कड़ी चुनौती देते हुए "वन्दे मातरम सम्मान मार्च" निकाल कर उदघोष किया कि मुल्क पहले है और धर्म बाद में. सड़्क पर पर्दानशीं, हाथों में तिरंगा और ज़ुबान से निकलते वन्दे मातरम के सतत स्वर...कट्टरपंथियों के लिए यह करारा जवाब था, बनारस शहर की तमाम मुस्लिम महिलाओं की ओर से. ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरी बुर्क़ानशीनों ने शहर के शास्त्री पार्क,सिगरा से मलदहिया चौराहे तक यह मार्च "विशाल भारत संस्थान" के तत्त्वाधान में निकाल कर कहा कि राष्ट्र गीत का अपमान करने वाले देशद्रोही हैं और यह अपराध किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नही किया जाएगा. फ्रंट की नायब सदर नजमा परवीन ने कहा कि इस्लाम राष्ट्रभक्ति का हुक्म देता है अत: सभी मुसलमानों को इस मुद्दे पर आगे आकर धर्म के ठेकेदारों को मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए.मुस्लिम महिला फ़्रंट की सचिव शबाना ने कहा कि धर्म की आड़ लेकर कट्टरपंथी नफ़रत फैलाना चाहते हैं ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए.उन्होने सरकार से मामले में तुरंत हस्तक्षेप की माँग भी की.
महिलाओं ने पोस्टरों के माध्यम से वन्दे मातरम को राष्ट्र्गीत का दर्जा मिलने तक का पूरा इतिहास देश के सामने रखा. पोस्टरों पर हिन्दी के साथ-साथ उर्दू में भी वन्दे मातरम लिखा था. पोस्टरों के ज़रिए बताया गया कि 1896 में मौलाना रहीमतुल्ला ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वन्दे मातरम गाकर इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई. 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन में गोखले ने वन्दे मातरम को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया. 1913 में करांची अधिवेशन में सदर मोहम्मद बहादुर ने वन्दे मातरम गाया. 1923 में मौलाना मोहम्मद अली,1927 में डॉ.एम.ए.अंसारी,1940-45 मे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने देश को वन्दे मातरम की शपथ दिलाई.
महिलाओं का कहना था कि वन्दे मातरम आज़ादी की लड़ाई का मूल मंत्र था. जब आज़ादी के दौरान इतने बड़े नेताओं ने सहर्ष वन्दे मातरम गाया तो आज यह विरोध क्यों? अशफ़ाक़उल्ला खाँ, मौलाना आज़ाद और डॉ.अंसारी जैसे देशभक्तों ने वन्दे मातरम कह कर देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया. हम इन देशभक्तों की क़ुर्बानी को ज़ाया नही होने देंगे और देश की एकता के लिए लगातार संघर्ष करेंगे.वतन के लिए जीना हमारा मकसद है और वतन की शान में कोई गुस्ताखी हम बरदाश्त नहीं करेंगे.
जयहिन्द हो या वन्दे मातरम
कहेंगे ज़रूर चाहे निकल जाए दम.
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33 comments:
ये उनकें मुहँ पर तमाचा है जो कहते फिरते है कि वन्दे मातरम गाना इस्लाम विरोधी है।
Di....... achchci lagi yeh post.....
जयहिन्द हो या वन्दे मातरम
कहेंगे ज़रूर चाहे निकल जाए दम.
दीदी प्रणाम,
बहुत सटीक पोस्ट लगाई है आज आपने !
कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि वह देश से बड़ा है यह तो सब छोटी सोच वालों का खेल है !
शुभकामनाएं |
वन्दे मातरम !
्सचमुच यह इन महिलाओं का एक साहसिक कदम है।
पूनम
बेहद सराहनीय कार्य
bahut achchi baat likhi hai aapne...
वंदे मातरम में मां की प्रशंसा है , मां को सलाम है । मां का सभी आदर करते हैं । ये विरोध करने वाले भूल जाते हैं कि इस गीत के जिन अंतरों पर ऐतराज था उन्हें हटा दिए गए थे एक अर्सा पहले । आपका आलेख और इन महिलाओं का एक साहसिक कदम जीवंत प्रजातंत्र का सबूत है,
प्रतिरोध की आवाज उधर से भी आ रही है , यह एक
अच्छी शुरुवात है |
अच्छी प्रस्तुति का शुक्रिया ...
हाँ, बनारस की यह पहल सम्मानजनक व प्रशंसनीय है । गंगा-जमुनी तहजीब का जीता-जागता सबूत है यह शहर ।
प्रविष्टि का आभार ।
चलो,पच्चीस करोड़ की आवादी के मुस्लिम समाज में कम से कम मुस्लिम महिलाओं ने तो वीरता दिखाई, उनको मेरा हार्दिक नमन और आपका इस बात के लिए शुक्रिया की आपने इसे प्रकाश में लाने का प्रयास किया !
जयहिन्द हो या वन्दे मातरम
कहेंगे ज़रूर चाहे निकल जाए दम.
बहुत सटीक AUR SAARTHAK पोस्ट ..... KARAARA TAMAACHA MAARA HAI DHARM KE THEKEDAARON KE MUNH PAR ...
AAPKA BAHUT BAHUT AABHAAR IS POST KE LIYE ...
vande matram ........
agar iss tarah ki pahal muslim varg ke kuch log bhi kar de to ulemao ko fatwe nikalne se pahle 20 bar sochna parega
jai hind
शाबाश नारी और जियो रजा बनारस ! वाह ! शुक्रिया मीनू जी इस कवरेज के लिए !
मीनू जी,
यह देश की अखण्डता के साथ ही इन महिलाओं की अपनी स्थितियों को बदलने की दिशा में एक अच्छा कदम है।
हेमन्त कुमार
इन महिलाओं की हिम्मत, बहादुरी और देशभक्ति के जज़्बे को सलाम.
वन्दे मातरम
जय हिन्द
यह तो सचमुच ज़न्नाटेदार तमाचा है कट्टरपंथियों पर नारियों की ओर से.
जयहिन्द हो या वन्दे मातरम
कहेंगे ज़रूर चाहे निकल जाए दम.
शर्मनाक है कि राष्ट्रीय चिन्हों को भी विवाद में डाला जाता है , यह केवल इस देश में ही संभव है
प्रशंसनीय।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
बधाई स्वीकारें इस सुंदर प्रस्तुती पर
वन्दे मातरम तो काफी मुसलमान भाई कहते हैं. ए0 आर0 रहमान का गाया हुआ वन्दे मातरम तो काफी लोकप्रिय है. किसी को सलाम करने में जब कोई आपत्ति नहीं तो वतन को सलाम करने में क्या दिक़्कत, शब्दों के हेर-फेर पर क्यों जाते हैं लोग...
मीनू जी,
सवाल ये है कि
- वतन से मुहब्बत का जज्बा ज़ाहिर करने में मज़हब बीच में क्यों लाया जाता है..
- धर्म को दीवार की जगह द्वार के रूप में प्रयोग करना कब सीखेंगे हम..
बहरहाल, आपकी कोशिश के लिये बधाई..
अल्लाह हम सबके दिलों में वतन से मुहब्बत का जज्बा पैदा करे.
आमीन
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
वन्देमातरम को लेकर लगातार भ्रम पैदा किया किया जा रहा है... इस पर कोइ फतवा है ही नहीं... यदि किसी के पास है तो कृपया पेश कीजिये... फतवा एक लिखित दस्तावेज़ होता है... ये कुछ लोगों की सिर्फ एक सलाह थी जिसका कोइ मतलब नहीं है… लोगों को बताया जाना चाहिए की इस्लाम अपने मानने वालों को अपने देश की सीमाओं के प्रति वफादार रहने का हुक्म देता है.. और जो इसके खिलाफ काम करता है वो स्वतः ही इस्लाम से ख़ारिज हो जाता है... देशद्रोहियों की सजा तो सिर्फ मौत है.. चाहे वो फतवों की राजनीत के रूप में हो या कुछ और…हालात सच-मुच ख़राब हैं आज अपनी मात्रभाषा बोलने के जुर्म में हमें विधान सभा में थप्पड़ खाने पड़ रहे हैं... आएये मिल कर देश द्रोहियों की न सिर्फ पहचान करें बल्कि उन्हें नेस्तनाबूद करें... वन्देमातरम !
क्या खबर खोजी है आप ने, और मेरा सलाम उन वराणसी की महान महिलाओं को जो ...........
आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ...आपके विचारों ने बहुत प्रभावित किया है...आप की सोच सकारात्मक और सही दिशा में है...लिखती रहें...
नीरज
जयहिन्द हो या वन्दे मातरम
कहेंगे ज़रूर चाहे निकल जाए दम.
मीनू जी ! बहुत ही अच्छी पोस्ट लगाई है आपने !
हमेशा की तरह !मुस्लिम महिलाएं आगे आयें तो
फिर क्या कहने !उनके साथ सब महिलाएं हैं !
meenu ji in muslim mahilaaon ka kadam prashansiniy hai kintu ek sangthan ka dhikava bhi o sakta hai.
jo sangthan darul ulum ke fatve ke virooddh aawaj utha raha hai to apne kale labade yani ki burke ke khilaf aawaj kyon nahi uthata.
baba bheem rav ambedkar ka kahna tha ki bharat ki sadko par muslim mahila ko burke me dhehna sabse bhayavah sthiti hai.sangthan agar kaamhi karna chahta hai to pahle apni sthiti sudhaare anytha to sab drama i hai.
meenu ji in muslim mahilaaon ka kadam prashansiniy hai kintu ek sangthan ka dhikava bhi o sakta hai.
jo sangthan darul ulum ke fatve ke virooddh aawaj utha raha hai to apne kale labade yani ki burke ke khilaf aawaj kyon nahi uthata.
baba bheem rav ambedkar ka kahna tha ki bharat ki sadko par muslim mahila ko burke me dhehna sabse bhayavah sthiti hai.sangthan agar kaamhi karna chahta hai to pahle apni sthiti sudhaare anytha to sab drama i hai.
नवीन जी मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ. इस संगठन में बहुत सी महिलाएँ है जो बुर्क़ा नहीं पहनती. वो क्या पहनती है मुझे यह उनका व्यक्तिगत मामला लगता है पर इतने विवादास्पद फतवे के विरोध में उनका खुल कर सड़क पर आना एक बहुत बड़ा कदम है और प्रगति की एक खुली बयार का प्रतीक है.
bahut khoob! jabhi to ham kahte hain: saare jahaan se achcha hindustaan hamaara!
पहले देश
फिर कोई भेष
किस बात का विरोध
कैसा क्लेश
प्रेम से गाओ
अपना स्वदेश
वन्दे मातरम!
जय हिन्द!!
Is post ke liye Dhanyvad.
http://guide-india.blogspot.com
MEENU JI MAINE AJ APKA BLOG DEKHA.BAHUT ACHCHHA LAGA.MAI BAHUT DINO SE DEKH RAHI HU KI VARANASI KI MUSLIM MAHILAYE DESH K LIYE KAR RAHI HAI.ABHI AYODHYA K FAISALE K SAMAY VARANASI KI NAZNIN NE URDU ME RAMCHARIT MANAS LIKHA.AKHIR YE KAUN LOG HAI JO IS TARAH KA KAM BINA DARE KAR RAHE HAI.JAMMU SE IN MUSLIM MAHILAO K KHILAF FATAWA JARI HUA THA.HAMESHA VARANASI SE MUSLIM MAHILAYE KABHI RAM K LIYE KABHI VANDEMATRAM K LIYE KUCHH NA KUCHH KARATI RAHATI HAI.KISKA MIND ISKE PICHHE HAI MAI USASE JARUR MILANA CHAHTI HU KAUN HAI JO DESH K LIYE ITNA KAR RAHA HAI.YAH CHHOTI BAT NAHI HAI. ISLAM K KHILAF JAKAR ITNI HIMMAT DIKHANA KISI K BASH ME NAHI .APKE PAS INKA CONTACT NO HO TO PL DIJIYEGA.BAHUT DINO SE MAI IS TARAH KI KHABAR VARANASI SE PADHTI AA RAHI HU THANKS APNE BLOG PAR LIKHANE K LIYE.
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