Tuesday, September 01, 2009

पर्स में उगा पैसों का पेड़

अपने बिल्कुल खाली पर्स में उगे

पैसों के


इक पेड़ की छाँव में,


चॉकलेट का एक पौधा लगाना चाहती हूँ मैं


अपने बच्चे के लिए.


जिसकी पत्तियाँ टॉफ़ी की हों


और

जिस पर बिस्किट के फल उगें..


जिसकी छाल बेशक़ीमती कपड़ों की हो


तो फूल हों

सुन्दर खिलौनों से..


और फूलों की महक हो

बेहतरीन लज़ीज़ व्यंजनों की महक से मिलती



और जिसके बीज

एक ऐसा नया पेड़

उगा सकने में सक्षम हों

कि

उसकी जड़ पीस कर

अपने बच्चे को यदि पिलाऊँ मै

तो मेरा बच्चा

फिर कभी ज़िद्द न करे मुझसे

चॉकलेट,टॉफ़ी, बिस्किट, खिलौने और नए कपड़े

खरीद कर देने की.

39 comments:

श्यामल सुमन said...

सार्थक कल्पना है मीनू जी।

Mithilesh dubey said...

बङा अच्छा होता अगर ऐसा हो जाता, मुझे भी चाँकलेट बहत पसन्द है,,,,,,,,,,,,,,

ओम आर्य said...

एक जादुई दुनिया मे लेकर गया आपका पर्स मे उगा पैसो का पेड...............खुबसूरत रचना!

महेन्द्र मिश्र said...

अच्छी भावपूर्ण सोच .धन्यवाद.

निर्मला कपिला said...

तभी कहती हूँ कि चाहे कल्पनाओं के पर नहीं होते फिर भी वो इतनी ऊँवी उडान भर लेते हैं जहाँ तक इन्सान सोच भी नहीं सकता वाह सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

Arvind Mishra said...

वाह! मिनी कल्पवृक्ष !

36solutions said...

आपकी कल्‍पना साकार हो. इस सुन्‍दर कविता के लिए धन्‍यवाद मीनू जी.

डॉ महेश सिन्हा said...

बेहतरीन
तारे जमीन पर

विजय गौड़ said...

एक दिन रूपयों के पेड़ बोऊंगा, जाने किस कवि की कविता थी। बचपन में कभी पढ़ी थी, बरबस याद आ गई।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

चॉकलेट और टाफियों से दाँत खराब हो जाते हैं।
लेकिन ऐसी भी क्या जिद बच्चा तो बच्चा है...

बेटा
आसमान माँगेगा
(बेटा आसमान नहीं
पोकमैन वाला खिलौना चाहता है
और उसके सपनों में परियाँ नहीं आतीं)
बेटी
गुड़िए के लिए नवलखा हार माँगेगी
(बच्चियाँ अब गुड़ियों से नहीं खेलतीं, क्यों?
हम माँ बाप कैसी छाँव सजा बैठे !)
...
बचपन की सोंधी ऊष्मा
जवानी की आग सब सहेजनी होती है
सँभालनी होती है - माँ बाप को।

यहाँ बच्चे 18 साल के होने पर अलग नहीं होते
माँ बाप के लिए वे हमेशा बच्चे रहते हैं।
..
नहीं ऐसा पेंड़ नहीं उगेगा।
बच्चे ज़िद करते रहेंगे।
चॉकलेट और टॉफियों के लिए...
जरा बताइए तो
कितनों के बचपन के खराब हुए दाँत
बड़े होने पर भी खराब रह गए।
----
----
बहक गया शायद।

Anonymous said...

kya likha madam aapne...
kya wo chocolate mujhe mil sakti hai!!

राजीव तनेजा said...

मध्यमवर्गीय बेबसी को दर्शाती सार्थक रचना

अपूर्व said...

मीनू जी..ब्लोग पर प्रतिक्रिया दे कर मुझ जैसे नवोदित ब्लोगर का हौसला बढाने के लिये हार्दिक धन्यवाद..उम्मीद है आगे भी रचनात्मक सुझाव मिलते रहेंगे..
..आपकी इस कविता मे भारत के न जाने कितने बच्चों की कल्पना और न जाने कितनी माँओ की व्यथा छिपी है..दिल को छू लेने वाली रचना के लिये दिल से बधाई!

Udan Tashtari said...

जबरदस्त!!

Arshia Ali said...

Aapki kalpanaa ko salaam kartee hoon.
( Treasurer-S. T. )

डॉ .अनुराग said...

अद्भुत...... आपने एक कामकाजी मां की सोच को विस्तार दिया है

Aparna Bajpai said...

Bahut sarthak kavita hai , Bachpan me padhi Pantji ki kavita yad aagai" Maine Bachman me Paise boye the)
Baccho ki har jid ( ICHCHHA, SAPNE) pure karne ka khwab har ma dekhti hai. Lekin Khali pars , Khali Batua baccho ki jid ke hisab se bahut chhota ho jata hai. Kash har ma ki pars me apne bachhe ki har jid puri karne ki takat hoti, to yah duniya kabhi itni sooni na hoti.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अद्भुत कल्पना.....वैसे क्रेडिट कार्ड से ये कल्पना साकार हो सकती है:)

Poonam Agrawal said...

Kalpnao ki duniya mein leker aa gay hai aap apne padne vaalo ko.... behad sunder si najuk si kalpana....kash aisa ho pata....

Atmaram Sharma said...

बहुत सुंदर भाव. अच्छी कविता.

डिम्पल मल्होत्रा said...

badi achhi kalpana hai......

अर्चना तिवारी said...

वाह क्या कल्पना कि है..

अनवारुल हसन [AIR - FM RAINBOW 100.7 Lko] said...

खिलोनों की बात करते करते आप ने जो गंभीरता ओढ़ ली वो काबिले तारीफ़ है ...

हेमन्त कुमार said...

सच कहूं....!स्वप्नलोक मेम ले गयीं आप । बेहतरीन..! आभार ।

दिगम्बर नासवा said...

SAARTHAK ......... BAHOOT BHI GAHRAI SE LIKHTI HAIN AAP .... AAPKI KALPANA SHAKTI BAHOOT HI VISTRAT HAI TABHI ITNI SUNDAR ..... SAARTHAK RACHNAAYE NIKALTI HAIN AAPKI KALAM SE ........ BAHOOT BAHOOT BADHAAI AAPKO IS RACHNA KE LIYE .... AAJ KI PADHI KAVITAAON MEIN SABSE UTAAM KRITI .......

डिम्पल मल्होत्रा said...

fantacy ki khoobsurat duniya me le gyee apki rachna...khoobsurat bhav...

सुशीला पुरी said...

चाकलेट का पेड़ ...............बहुत सारी संभावनाओं सपनों को समेटे .

M VERMA said...

उम्दा कल्पना है आपकी
टाफ़ी के पेड पर बिस्किट के फल ---
बहुत खूब

पूनम श्रीवास्तव said...

मीनू जी ,
बच्चो न की मांग और उनके मनोभावों का अच्छा चित्रण.
पूनम

usharai said...

कविता में कल्पनाये क्या गजब ढाती हैं !
बडी प्यारी रचना है !
मीनू जी मेरे सुने ब्लॉग पर भी कभी आइये !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

kya kahoon ab is shaandaar rachna ke baare mein........?????? aapne to speechless kar diya......

ek jaadui rachna........ kalpna ki anoothi udan......

Renu goel said...

काश ऐसा ही जादुई पर्स हो मेरा भी ...पोधों से टपकें चोकलेट और टॉफी ...सदा ही महके आपका ये कल्पवृक्ष ....यही कामना है हमारी

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

बच्चों को लेकर लिखी गयी एक बेहतरीन कविता-------हार्दिक बधाई।
हेमन्त कुमार

स्वप्न मञ्जूषा said...

kash aisa ho jaaye saare problem solve ho jaayenge ji..
beshak kalpana hai lekin jeewan ki vidambnaaon ko bahut acche tareeke se shabd diya hai aapne.

अशरफुल निशा said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति।
Think Scientific Act Scientific

Ravi Prakash said...

Sundar bhav


चर्चा

अनूप शुक्ल said...

आपको आपका जन्मदिन मुबारक

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Came to know thru one blog named as janmdin.blogspot.com...... dat today is ur birthday......... So,........ HAPPY BIRTHDAY to you......... Wishing u a very happy birthday to u........ May dis day brings joy n happiness in ur life.....


Regards.........

डॉ महेश सिन्हा said...

जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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