Tuesday, August 04, 2009

एग्रीमेंट

तुमने,

नींद में

एक एग्रीमेंट सामने रखा...



और मै,

साइन कर बैठी

हक़ीक़त में

बिना कोई क्लॉज़ पढे .

12 comments:

प्रशांत मलिक said...

achcha likha hai par samajh me kuch kam aaya... :)

Vinay said...

बहुत सार्थक अभिव्यक्ति

Meenu Khare said...

सॉरी प्रशांत जी भूलवश कविता में कुछ शब्द ग़लत लिख गए थे इसी से शायद आपको परेशानी हुयी.

डॉ महेश सिन्हा said...

सपने की हकीकत :)

Udan Tashtari said...

सही है..विश्वास है तो सब है!!

adwet said...

shayad jindagi ke agriment ese hi sighn karne padte hain.

पूर्णिमा वर्मन said...

अच्छा लिखती हैं मीनू, कभी अनुभूति के लिए ऐसी क्षणिकाएँ भेजें 7 से 10। प्रतीक्षा रहेगी।

हैरान परेशान said...

आपने ऐसी कविता रच दी जो हमारी जिंदगी की त्रासदी है. बहुत सारा अनजाने में हम ऐसे ही स्वीकार करने को बाध्य हो जाते हैं. बधाई.

ओम आर्य said...

बिल्कुल जिन्दगी की कहानी है...........

vijay kumar sappatti said...

sach me viswaas hi to sabkuch hai ji , aapne bahut acchi abhivyakti ki hai


regards

vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

HAKEEKAT AUR NEEND MEIN, KHWAAB MEIN HONE WAALE FARK KO ANOKHE ANDAZ SE BATAYA HAI AAPNE...PAR VISHWAAS BHI TO EK EHSAS HAI JISMEN INSAAN UTARNA CHAAHTA HAI......

Anonymous said...

is tarah gahrai me doobkar ek adh line me itne bade dard ko sirf tum hi likh sakti ho.I feel breathless.

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