आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। किन्तु क्या अधिकार कभी यूँ ही मिलते हैं? छीनने पड़ते हैं। रंग, डिजाईन, आकार सब खुद चुनिये और यह भी कि स्वैटर बुनना है या नहीं। घुघूती बासूती
मीनू जी , इतनी गहन सोच वाले मुद्दे पर ..इतने कम शब्दों में अभिव्यक्ति ...बहुत अच्छा लगा पढ़कर . हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत करते हुए खुशी हो रही है. हेमंत कुमार
Women is the best half not the better half. Beleive me!!! Chandar Meher avtarmeherbaba.blogspot.com www.trustmeher.org lifemazedar.blogspot.com kvkrewa.blogspot.com
gharelu mahilaa ek rare commoditi hai ab ,kaam kazi use nikhattu samajhti hain ,kya mazaak hai ,jivan to usi ka hai belaag ,nis svaarth salaai saa jo jivan ke rupaakaar bunti hai ,ulte sidhe fande ,jivan ke gorakh dhandhe se dur bahut dur rahten hain ,belaus ,veerubhai
बहुत सही वास्तवा में अभी भी महिलाओं की स्थिति इससे ज़्यादा इतर नहीं है. बडे सलीके से आपने अभिव्यक्ति दी है आपने. पुरुष भी क्या करे संस्कारों में इतना अहम मिल जाता है कि लाख कोशिश के पश्चात भी जता ही देता है. खैर परिवर्तन आया है और भी आयेगा-
दर्द की इस दोहरी मार पर बरबस ही याद आ गया: चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोये, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए आज पुरुषों की स्थिति भी कमोबेश अच्छी नहीं है, फ़र्क सिर्फ इतना है के उन्हें खुले आम आँसू बहाने का अधिकार भी नहीं मिला...
सही बात कही है अनवार! आज वक़्त की मार पुरुषों पर भी है . कोशिश करिए की एक रचना इस विषय पर आप लिखें या फिर वो सभी लोग जो इस टिप्पणी को पढ़ रहे है वो भी ऐसी कोशिश करें तो एक अच्छी पहल होगी . मेरे ब्लॉग पर पधारे सभी सुधिजनो का बहुत धन्यवाद .
बहुत सटीक लगा. आपकी कविताओं के बारे में बेशक कहा जा सकता है - देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर. लेकिन स्थिति बदलनी शायद शुरू हो गयी है. May be its too few and far between and it may take a long time to undo these things.
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
27 comments:
ek maanwiya dard ubharta hai aapake is sidhe sapat rachana me....sundar
आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। किन्तु क्या अधिकार कभी यूँ ही मिलते हैं? छीनने पड़ते हैं। रंग, डिजाईन, आकार सब खुद चुनिये और यह भी कि स्वैटर बुनना है या नहीं।
घुघूती बासूती
Bahut gahree baaten kah rahee hai ye rachna.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
Achcha likhti hain aap.Shubkamnayen.
मीनू जी ,
इतनी गहन सोच वाले मुद्दे पर ..इतने कम शब्दों में अभिव्यक्ति ...बहुत अच्छा लगा पढ़कर .
हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत करते हुए खुशी हो रही है.
हेमंत कुमार
वाह कितना लाजवाब, कितना सार्थक लिखा है........ लाजवाब .....अच्छा लिखा है .स्वागत है आपका
Kitna sahee kaha aapne..!
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वाह आप ने इतने कम शब्दों में एक बहुत बड़ी बात कह दी है. अच्छा लगा.........
सुन्दर अभिव्यक्ति. जारी रहें.
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कृपया यहाँ भी विजिट करें.
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लाजवाब। गागर में सागर लिये ये पंक्तियां बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं बधाई।
कर दी आपने धुलाई
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बेहतरीन रचना
Women is the best half not the better half. Beleive me!!!
Chandar Meher
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बेहतर है...
उंगलियां बुन रहीं हैं ख्वाब किसी के मन का
फिर किसी बात पै रह रह के लजाना क्या है ।।
-सलाइयों पर चलती हुई उंगलियों पर कभी यह शेर और फिर गजल बनी आपकी रचनासे उसकी याद आई
मजबूती के साथ आगे बढ़ें
http://anubhutiyanabhivyaktiyan.blogspot.com
gharelu mahilaa ek rare commoditi hai ab ,kaam kazi use nikhattu samajhti hain ,kya mazaak hai ,jivan to usi ka hai belaag ,nis svaarth salaai saa jo jivan ke rupaakaar bunti hai ,ulte sidhe fande ,jivan ke gorakh dhandhe se dur bahut dur rahten hain ,belaus ,veerubhai
आपकी सारी रचनायें एक से एक ...बेहतरीन है.....आभार.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
bahut hi sunder abhivyakti..........
Regards............
kuch hi shabdo me boht kuch bun diya....sunder...
बहुत सही वास्तवा में अभी भी महिलाओं की स्थिति इससे ज़्यादा इतर नहीं है. बडे सलीके से आपने अभिव्यक्ति दी है आपने. पुरुष भी क्या करे संस्कारों में इतना अहम मिल जाता है कि लाख कोशिश के पश्चात भी जता ही देता है. खैर परिवर्तन आया है और भी आयेगा-
दर्द की इस दोहरी मार पर बरबस ही याद आ गया:
चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोये,
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए
आज पुरुषों की स्थिति भी कमोबेश अच्छी नहीं है, फ़र्क सिर्फ इतना है के उन्हें खुले आम आँसू बहाने का अधिकार भी नहीं मिला...
सही बात कही है अनवार! आज वक़्त की मार पुरुषों पर भी है .
कोशिश करिए की एक रचना इस विषय पर आप लिखें या फिर वो सभी लोग जो इस टिप्पणी को पढ़ रहे है वो भी ऐसी कोशिश करें तो एक अच्छी पहल होगी . मेरे ब्लॉग पर पधारे सभी सुधिजनो का बहुत धन्यवाद .
बहुत सटीक लगा. आपकी कविताओं के बारे में बेशक कहा जा सकता है - देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर. लेकिन स्थिति बदलनी शायद शुरू हो गयी है. May be its too few and far between and it may take a long time to undo these things.
ati sunder
एकदम सही! बहुत गहिरी बात कह दी आपने!
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत बढ़िया
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