उन-सलाई शीर्षक से कुछ लघु-कविताएँ
(1) उन-सलाई,
रिश्तों की ऊष्मा को
सहेज आई.
(2) उन-सलाई,
नर्म फंदों की भाषा में
प्रेम की लिखाई.
(3) उन-सलाई,
जो बिटिया ने पकड़ी,
तो माँ मुस्काई.
(4) उन-सलाई की सखी,
नर्म धूप और चारपाई.
(5) ऊन-सलाई लाई
बच्चों की फीस, माँ की दवाई.
(6) माँ के बाद,
देख कर माँ की ऊन सलाई ,
आई बहुत रुलाई.
6 comments:
***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 20/01/2014 को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।
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जब भी ऊन देखता हूँ, माँ की याद आती है।
मन को छूते हुए सभी भाव .. चंद पंक्तियों में गहरा सार ...
देख कर माँ की ऊन सलाई ,
आई बहुत रुलाई.
wah wah
एक-एक फंदा ,
कोई उलटा कोई सीधा
चलती रहगी बुनाई ,
सभी पाठकों को धन्यवाद.
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