Friday, October 30, 2009
बेगम अख़्तर की गाई चुनिन्दा ग़ज़लें
पिछली सात अक्टूबर को जब बेगम अख़्तर की जयँती के अवसर पर उनसे सम्बन्धित मैने पोस्ट लगाई थी तो बहुत लोगों ने यह फ़रमाइश की थी कि उनकी चुनिन्दा ग़ज़ले सुनवाऊँ. आज उनकी पुण्यतिथि है, आपके लिए लाई हूँ कुछ ऐसी ग़ज़ले जिनके चलते वो रह्ती दुनिया तक अमर रहेंगी. बेगम साहिबा की आवाज़ की सबसे बड़ी खासियत थीं आवाज़ का दर्द में डूबा होना. उनकी ग़ज़लें ज़ेहन पर एक अजब असर डालती हैं.जहाँ एक ओर उनमें कशिश है वही अल्फ़ाज़ों के रखरखाव का एक नायाब अन्दाज़ उन्हे और गायकों से जुदा करता है.जहाँ शास्त्रीय संगीत का पुट उनकी आवाज़ में है वही जज़्बात की अदायगी का बेजोड़ अन्दाज़, सुनने वाले को मजबूर करता है कि वो हमेशा के लिए उनका दीवाना हो जाए.
आकाशवाणी से उनका जुड़ाव 25 सितम्बर 1948 को हुआ, जब आकाशवाणी लखनऊ के स्टूडियों में पहली बार उनकी आवाज़ गूँजी थी.
वो जो हममे तुममें क़रार था,तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निभाह का तुम्हे याद हो के न याद हो.
अब इसे बेगम साहिबा की आवाज़ की सलाहियत कहिए या उनका खुलूस कि लखनऊ की उस ज़माने की महफ़िलें आज भी लोगों को नहीं भूली है. लखनऊ के हैवलक रोड इलाके में बेगम साहिबा का मकान भले ही वीरान पड़ा है मगर आज भी फिज़ाओं में मानो यह ग़ज़ल गूँजती है. सुनिये, यक़ीनन यह आपकी रूह में उतर जाएगी.
अब छलकते हुए साग़र नहीं देखे जाते
तौबा के बाद यह मंज़र नहीं देखे जाते.
बेगम अख़्तर एक बार आकाशवाणी लखनऊ के स्टूडियो में गाने आईं. उदघोषिका ने उनका नाम ग़ल्ती से बेग़म अख़्तर एनाउंस कर दिया. कार्यक्रम समाप्त होने के बाद बेगम साहिबा उस एनाउंसर के पास आकर बोली " बिटिया मैं बहुत ग़मज़दा हूँ तुमने मुझे बेग़म क्यों कहा? मैं तो बेगम हूँ, जनाब इश्तियाक़ अहमद अब्बासी की बेगम!"
उनकी आवाज़ में यह ग़ज़ल, अपने आप में कितने ग़म समेटे है आप भी सुनिए...
कोई ये कह दे गुलशन-गुलशन,लाख बलायें एक नशेमन
फूल खिले है गुलशन गुलशन लेकिन अपना अपना दामन.
बेगम साहिबा की आवाज़ में अक्सर नासिका स्वर लगते थे. कोई और होता तो यह ऐब कहलाता मगर बेगम साहिबा ने क्या खूबी के साथ इस कमी को भी अपनी खासियत में बदल कर गायन की एक अलग शैली ही बना डाली.
मेरे हमनफस मेरे हमनवा मुझे दोस्त बनके दग़ा न दे...
एक इतनी बड़ी कलाकार जिसकी दुनिया दीवानी थी खुद बहुत सरल स्वभाव की थीं. अपनी शिष्याओं को हमेशा अपनी बेटी की तरह रखती थीं. ग़रीब परिवार की ज़रीना बेगम भी उनकी शिष्याओं में से एक थीं. वो बताती हैं कि "अम्मी हमसे फीस तो नहीं ही लेती थी उल्टा हमें खाने को अच्छी अच्छी चीज़ें दिया करती थी." 30 अक्तूबर 1974 को बेगम साहिबा ने दुनिया से पर्दा किया मगर उनकी आवाज़ का जादू हमेशा एक सुरूर की तरह छाया रहेगा उनके चाहनेवालों पर.
उल्टी हो गई सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमार-ए-दिल ने आखिर काम तमाम किया.
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26 comments:
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया .... किस दुनियां में ले गइं आप। अब तो आज के गीतों पे रोना आता है। बहुत खूब। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
वो नये ग़िले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिक़ायतें ..वो हर एक बात पे रूठना तुम्हे याद हो के न याद हो.." हमें तो खूब याद है और वह भी.. हुई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया.. और.. आज की शाम सार्थक कर दी मीनू जी आपने । धन्यवाद ।
It's really great.
vakai begum akhtar ji ki ghazalo ka jawaab nahi ....umda jaankaari
kabhi samay nikalkar idhar bhi dekhe
jyotishkishore.blogspot.com
मीनू जी बहुत आभार पर प्लीज !!! एक साथ उनकी चुनिन्दा गजलें -मुझे कुछ और आज शाम को नहीं करने देगीं क्या !
सुर और गजल की बेगम को श्रद्धांजली !
आभार ...
सुन्दर प्रस्तुति के लिए
बेगम अख्तर मेरी पसंदीदा गायिका हैं |
फैजाबाद से ताल्लुक होने के कारन मुझे
ज्यादा लगाव भी है | सो,बार-बार आभार...
''बेगम साहिबा की आवाज़ में अक्सर नासिका स्वर
लगते थे. कोई और होता तो यह ऐब कहलाता मगर
बेगम साहिबा ने क्या खूबी के साथ इस कमी को भी
अपनी खासियत में बदल कर गायन की एक
अलग शैली ही बना डाली.'' आपकी यह बात सही है
और इसी 'नासिका स्वर' के कायल थे
उस्ताद बिस्मिल्लाह जी.
धन्यवाद् ...
सब सुनी -बुकमार्क किया ! आभार !
मस्त कर मुझे औरों को पिला साकी
ये करम होश में देखे नहीं जाते !
uff !
बहुत बढ़िया सुन्दर प्रस्तुति ....
di........ bahut hi sunder prastuti.......
सुदर लगा आपका लेख
नमस्कार
सुंदर प्रस्तुति.. बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार!!
बेगम अख्तर की गाई लाजवाब गजलों को आपने एक जगह लगाकर बहुत बडा उपकार किया है. यूं तो बेगम अख्तर के प्रसंशकों के पास उनकी गाई गजलों का खजाना बहुत संभाल कर रखा है. जिनमे से आप भी हैं और उस खजाने से आज चंद मोती आपने दिये हैं.
हम भी बचपन से उनको सुनते आरहे हैं और मेरा ऐसा मानना है कि जिसने एक बार बेगम अख्तर को सुन लिया वो उन्हीं का होकर रह गया.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
begam akhatr ki khubsoorat gazalon ke liye aapko tahe dil se shukriya ..
एक से बढ़कर एक बेगम अख्तर की गज़लें सुनवाईं आपने शुक्रिया मीनू जी
- लावण्या
उलटी हो गई सब तदबीरें ,
कुछ न दवा ने काम किया ...
धन्यवाद मीनू जी ! ग़जल सुनते सुनते ,
मै अपने ब्लॉग पर जाना भूल गई !
बहुत बहुत धन्यवाद !
अरे वाह, ये तो नायाब खजा़ना है। शुक्रिया।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । बधाई । २२४ सितम्बर २००८ को मैंने भी चार गज़लें प्रस्तुत की थीं । इतने सुन्दर आलेख के बिना ।
वाह वाह वाह!
दिल से शुक्रिया.
MAZAA AA GAYA .... AAJ KI SHAAM KAMAAL KI BEET RAHI BHAI ... IN LAJAWAAB GAZLON KE SAATH .... BEGAM AKHTAR KI AWAAZ KE BAAD ITNI LAJAWAAB AAWAAZ KHAAS KAR THUMRI GAAYKI MEIN TO NAHI AAYE ...
AAJ TO AAPNE KISI DOOSRI HI DUNIYA MEIN PAHUNCHAA DIYA .. BAHOOT BAHOOT SHUKRIYA ...
आज कि पोस्ट बुक मार्क हुई अब ये ग़ज़लें जब मन होगा सुनी जायेगी. साधुवाद !
बहुत ही शानदार गजलें हैं।
आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बेगम अख्तर की आवाज में यह गजलें अमूल्य धरोहर हैं ।
आभार इनकी प्रस्तुति के लिये ।
मीनू जी,बेगम अख्तर पर आप की सामग्री
देख कर मन खुश हो गया.इसके लिए आप
बधाई की पात्र हैं.फैजाबाद व् लखनऊ की जमी
से वास्ता होने के कारण .बेगम जी के गायन में
रूचि है. जुरत है उनके पैतृक निवास को धरोहर के
रूप में सजोने की जिससे आने वाली पीढी उनके
बारे में जान सके.
प्रदीप श्रीवास्तवा
निजामाबाद /फैजाबाद
watch spl programme on begum akhtar 30 oct 2013 on RAJYASABHA TV 10 am ,2.30 pm,12.30 pm
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