वो मेरा सबसे प्यारा दोस्त
जिसकी निगाहें
साफ़ एकदम,
जिसका दामन
पाक एकदम.
जिसने
हर मौक़े पर मदद की है मेरी
और
डूब कर सिर तक
निकाला है मुझे
गहरी नदी के पेट से
न जाने कितनी बार !
पर
आज मौक़ा मेरा आया है
चलो तोड़ डालें उसका सर
चलो जला डालें उसका घर
उसका धर्म मुझसे अलग है.
32 comments:
सुंदर कविता है, अंदर तक चोट करने वाली! बधाई!
उसका धर्म मुझसे अलग है.
तभी तो हमने भी अपना धर्म बदल लिया है मानवता से इतर ---
बहुत सुन्दर कविता
भीष्म साहनी के उपन्यास तमस का एक दृश्य यही है ! बहुत मारक !
धर्म के विषय में ऐसी ही सोच रखनी चाहिए
बहुत सही चोट करती हुई कविता लिखी है।
घुघूती बासूती
यह सामयिक प्रश्नों का उत्तर देने के साथ-साथ जीवन के शाश्वत मूल्यों से भी जुड़ी है। मुनव्वर राना जी की दो पंक्तियां याद आती है ---
फजा़ में घोल दी है नफ़रतें अहले सियासत ने
मगर पानी कुंए से आज तक मीठा निकलता है।
चलों देख आयें जगत का तमाशा ,
सुना है वो काफिर मुसलमां भी है .
यह धर्मं है ....बिलकुल नहीं ...
गहरी सोच ...!!
meenu bahut hi pyari kavita hai....gahari nadi ka pet....kia baat hai aur dharnm par itna kathor kataksh....kamaal hai...
dharm ka sankeern chehara toh yahi hai .. par vastav men yeh nahin hai .. logon ne dharm ko badnaam kar diya hai .. aapki kavita padhkar shayad kuchh dharmaandh log aankhen kholen .. sahi jagah par chot hai .
MINOO JI
aapakaa khyaal bahut hi nek our pak hai ........ham bhi aapake saath hai
एक नन्ही सी कविता में इतनी बड़ी बात इतनी आसानी से कह दी आपने! मैं तो स्तब्ध रह गया. पहली बार आपके ब्लॉग तक पहुंचा और दुखी हूँ कि पहुँचने में इतनी देर क्यों लगाई. आप बहुत अच्छा लिख रही है, इस लिखन को बरकरार रखते हुए और बुलंदियां हासिल कीजिए, मेरी यही दुआ है.
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।
क्या यही धर्म है .. कुछ सोंचने को मजबूर करती रचना !!
मीनू दीदी,
क्या बात कह दी आपने बातो बातो में !!
बहुत बढ़िया कविता !!
शुभकामनाएं !
ओह!! अन्दर तक झिंझोड़ डाला इस कविता ने....क्यूँ करते हैं लोग ऐसा...क्यूँ भूल जाते हैं लोग सबकुछ, और याद रह जाता है सिर्फ धर्म....सोते मन को जगाने वाली कविता...बेहतरीन
चोट करती हुई रचना
bahut achchi lagi yeh post....
धर्म का स्वरूप आज इतना विकृत हो गया है कि अब उस पर पाबंदी लगाने पर सोच सिचार होना चाहिए।
कल मैंने भी इसी विषय पर एक पोस्ट लिखी है और आज आपकी रचना पढ रहा हूं। सही है, जो सच है, वही तो सामने आएगा, उसे हम और आप कैसे रोक सकते हैं?
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चलो जला डालें उसका घर
उसका धर्म मुझसे अलग है.
चोट करती हुई बहुत सुन्दर कविता
कविता में बड़ी बात कह दी आपने!
शुभकामनाएं
bahut hi sunder tarike se samaaj ki baat sabke saamne rakkhi hai aap ne ye wahi baate hai jinhe samaaj jaanta to hai par maanne se inkaar karta hai ........
छदम धर्म पर प्रहार करती लाजवाब रचना है ............ मनुष्य धर्म को अक्सर लोग पहचानते नहीं हैं ........... गहरी सोच से उपजी रचना है ......... करार प्रहार है समाज पर ........... लाजवाब ........
उसका धर्म मुझसे अलग है....
बहुत खूब... धर्म की आड में पनपते अधर्म पर एक गहरी चोट करती कविता....
bahut satik vyag hai hamari apni mansikta par
aabhar
बिलकुल ध्यान से पढ़ी है अच्छी कविता है ..पत्रिकाओं मे भी भेजिये ।
पर
आज मौक़ा मेरा आया है
चलो तोड़ डालें उसका सर
चलो जला डालें उसका घर
उसका धर्म मुझसे अलग है.
वाह....वाह....व्व्व्व्व्व्वाह ........!!
बेहद सटीक .....!!
waah waah...bahut achhe
बहुत खूब !सुन्दर
कृपया हिन्दी में लिखें वाला गूगल ट्रांसलिट्रेटर गॅजेट यदि आवश्यक न हो तो हटा दें. जब आपके ब्लॉग का पेज लोड होता है तो वो पेज को वही हाईजैक कर लेता है, और पेज दिखाने में समस्या पैदा करता है. इसके बदले इसका एक लिंक दे सकते हैं.
धन्यवाद रवि जी.सन्दर्भित गजेट हटा दिया है.
Wah.....Bhavotprerak rachna..wah
"उसका धर्म मुझसे अलग है"
लाजवाब कविता!
प्यार देते तो प्यार मिल जाता
कोई बेबस दुत्कार क्यूं पाता
रहनुमा राह पर चले होते
तो दरोगा न रौब दिखलाता
मेरा रामू भी जी रहा होता
तेरा जावेद भी खो नहीं जाता
सर से साया ही उठ गया जिनके
दिल से फ़िर खौफ अब कहाँ जाता
बच्चे भूखे ही सो गए थक कर
अम्मी होती तो दूध मिल जाता
जिनके माँ बाप छीने पिछली बार
रहम इस बार उनको क्यों आता?
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