(बेगम अख्तर जयँती पर विशेष)
एक कमसिन सी लड्की को उसकी माँ किसी पीर के पास दुआ के वास्ते ले गई .पीर ने ग़ज़ल का एक दीवान लड्की के हाथ में देकर कोई एक पन्ना खोलने को कहा साथ ही यह भविष्यवाणी भी किया कि जो भी पन्ना खुलेगा उस पर लिखी ग़ज़ल गाकर लड्की बहुत नाम और यश पाएगी. लड्की पन्ना खोलती है, वहाँ लिखा है-----
“ दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे...”
दुनिया को अपने फ़न से दीवाना बनाने वाली यह लड्की और कोई नही बल्कि मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख्तर थी. हिन्दुस्तान में क्लासिकी ग़ज़ल को अनोखी ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाली बेगम अख्तर के बारे में कैफ़ी आज़मी कहा करते थे ----
"ग़ज़ल के दो मायने होते हैं--पहला ग़ज़ल और दूसरा बेगम अख्तर."
न केवल ग़ज़ल बल्कि ठुमरी और दादरा को अपनी आवाज़ से सजा कर एक नया कलेवर देने वाली बेगम अख्तर का बचपन का नाम बिब्बी था. उनका जन्म 7 अक्तूबर 1914 को फ़ैज़ाबाद के रीडगंज इलाक़े में मुश्तरीबाई के घर हुआ था. गाना मुश्तरीबाई के लिए आजीविका का साधन था पर वो बिब्बी को इस लाइन में नही डालना चाहती थीं. उन्होने बिब्बी का नाम मिशनरी स्कूल में लिखाया और पढाई में मन लगाने को कहा. बिब्बी बहुत शैतान थी. वहाँ एक दिन क्लास-टीचर कुर्सी पर बैठी इमला बोल रही थी, उनकी नागिन सी लम्बी चोटी नीचे लटक रही थी जो बिब्बी को बहुत पसन्द थी. जब सारी लडकियाँ ज़मीन पर बैठी स्लेट पर इमला लिख रही थीं, बिब्बी ने चुपके से कैंची निकाली और टीचर की चोटी का निचला हिस्सा काट कर अपने बस्ते में रख लिया. उसके बाद से बिब्बी कभी स्कूल नही गई.
संगीत से पहला प्यार 7 वर्ष की उम्र में थियेटर अभिनेत्री चन्दा का गाना सुनकर हुआ तो संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा पटना के सारंगी नवाज़ उस्ताद इम्दाद खाँ से मिली. मंच पर अपना पहला कार्यक्रम बिब्बी ने 14 वर्ष की आयु में कलकत्ते में प्रस्तुत किया .इस कार्यक्रम से प्रभावित होकर मेगाफोन रिकार्ड कम्पनी ने बिब्बी का गाया पहला गाना रिकार्ड किया----
"तूने बुत-ए-हरजाई कुछ ऐसी अदा पाई, तकता है तेरी सूरत हर एक तमाशाई"
मेगाफोन कम्पनी के इस रिकार्ड ने ‘रिकार्ड’ धूम मचाई. चारो ओर बिब्बी की चर्चा होने लगी और इसी रिकार्ड से बिब्बी, बिब्बी से अख्तरीबाई ‘फ़ैज़ाबादी’ बन गई. उसके बाद अख्तरी ने पीछे पलट कर नही देखा. रिकार्ड कम्पनियों में उनके गानों को रिकार्ड करने की होड सी लग गई तो दूसरी ओर मंच पर उन्हे सुनने वालों की भीड के चलते हॉल छोटे पड्ने लगे. पटियाला घराने के अता मोहम्मद खाँ की तालीम ने उन्हे कठिन से कठिन मीड्, मुरकी, खटका , तानें बडी आसानी और लेने की सलाहियत बक्शी तो किराना घराने के अब्दुल वहीद खाँ ने उनके गायन को भाव प्रवणता प्रदान की. उस्ताद झन्डे खाँ साह्ब से भी अख्तरी बाई ने तालीम हासिल की.
उनकी गायकी जहाँ एक ओर चंचलता और शोखी से भरी है वही दूसरी ओर उसमें शास्त्रीयता और दिल को छू लेने वाली गहराइयाँ हैं. आवाज़ में ग़ज़ब का लोच, रंजकता, भाव अभिव्यक्ति के कैनवास को अनन्त रंगों से रंगने की क्षमता के कारण उनकी गाई ठुमरियाँ बेजोड हैं.
प्रसिद्ध संगीतविद जी.एन.जोशी 1984 में बेगम अख्तर पर लिखी अपनी किताब "डाउन द मेमोरी लेन" में लिखते हैं कि ठुमरी " कोयलिया मत कर पुकार, करेजवा मारे कटार" में 'कटार' का वार इतना गहरा है जिसे ताउम्र भूलना मुश्किल है.
सब कुछ था पर अख्तरी साहिबा औरत की सबसे बडी सफलता एक कामयाब बीवी होने में मानती थीं. इसी चाहत ने उनकी मुलाक़ात लखनऊ में बैरिस्टर इश्तियाक़ अहमद अब्बासी से करवाई. यह मुलाक़ात जल्द ही निक़ाह में बदल गई पर इसके बाद सामाजिक बन्धनों के चलते अख्तरी साहिबा को गाना छोड्ना पडा. गाना छोड्ना उनके लिए वैसा ही था जैसे एक मछली का पानी के बिना रहना.अख्तरी बीमार रहने लगी. उनकी गाई एक बहुत प्रसिद्ध ग़ज़ल है--
"ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया...."
डॉक्टरों की सलाह के आगे अब्बासी साहब को झुकना पडा और चार साल के लम्बे अन्तराल के बाद 25सितम्बर 1948 को बेगम साहिबा आकाशवाणी लखनऊ के स्टूडियो में रिकार्डिग कराने पहुँची. इसी रेडियो माइक ने उन्हे बेगम अख्तर के नाम से सारी दुनिया में मशहूर कर दिया.
बेगम साहिबा का सम्मान समाज के जानेमाने लोग करते थे.सरोजिनी नायडू बेगम अख्तर की बहुत बडी फ़ैन थीं तो कैफ़ी आज़मी भी अपनी ग़ज़लों को बेगम साहिबा की आवाज़ में सुन कर मन्त्रमुग्ध हो जाते थे. 1974 में बेगम साहिबा ने अपने जन्मदिन पर कैफ़ी आज़मी की यह ग़ज़ल गाई —
वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ था क़त्ल मेरा,
किसी के हाथ का लेकिन वहाँ निशाँ नहीं मिलता.
तो कैफ़ी समेत वहाँ उपस्थित लोगों की आँखें नम हो आईं. किसी को नही मालूम था कि इस ग़ज़ल की लाइने इतनी जल्दी सच हो जाएँगी. 30अक्टूबर 1974 को बेगम साहिबा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया मगर संगीत के आकाश का यह सूरज अपनी आवाज़ की रौशनी से दुनिया को रौशन करता रहेगा रहती दुनिया तक.
(7 अक्टूबर 2008 को दैनिक जागरण,लखनऊ से प्रकाशित)
31 comments:
बेगम अख़्तर जी के बारे में इतना विस्तार से जानना अच्छा लगा..बढ़िया प्रस्तुति..बढ़िया जानकारी...बहुत बहुत धन्यवाद!!
बेगम अख्तर जी को लेकर आपकी ये प्रस्तुति अच्छी लगी।
बेगम अख़्तर जी के बारे में इतना विस्तार से जानना अच्छा लगा
धन्यवाद!!
बेगम अख्तर पर इस आलेख के लिए बहुत आभार -कृपा कर उनकी गाई कम से कम एक गजल भी यहाँ जोडें ! कह इसलिए रहा हूँ की आप सुविधा और संस्रोत सम्पन्न हैं तो ऐसा होना ही चाहिए ! क्यों ?
बेगम गजल गायकी में मेरी पहली पसंद रहीं - पहला अफसाना तो आप समझती ही हैं! -फिर मेहंदी हसन और गुलाम अली -यही है मेरी पसंद त्रयी ! बाकी तो सुखनवर और भी हैं !
"मैंने सोचा था अबकी बरसात में बरसेगी शराब
आयी बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया "
इस बार की बारिश में सूखे के अंदाज ने बार बार
इस महान अदाकारा की गजल की याद दिलाई .
मेरी श्रद्धांजली !
बेगम अख्तर के बारे मैं इतनी researched जानकारी देने के लिए धन्यवाद (वो इमला,वो मैडम की चोटी ,वो पीर साहेब की भविष्यवाणी, वो रिकॉर्ड का 'रिकॉर्ड' सभी कुछ ऐसा लगा मानो आपने उनको नज़दीक से जाना है)
मेरी जानकारी मे बेगम अख्तर की शैली श्यामचौरासी घराने की शैली कही जाती है - सुना था कि वे इसी क्लासीक "स्कूल" की थीं. वैसे इस घराने के बारे मे ज्यादा जानकारी तो नही है लेकिन आपके लेख मे इस बात का कोई ज़िक्र नही मिला!
यदि कोई रेफ़रंस/जानकारी मिले तो और भी लिखियेगा.
शानदार लेख .. आभार!
यह भविष्यवाणी भी किया कि जो भी पन्ना खुलेगा उस पर लिखी ग़ज़ल गाकर लड्की बहुत नाम और यश पाएगी. लड्की पन्ना खोलती है, वहाँ लिखा है-----
“ दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे...”
ऐसी भविष्यवाणियां महान हस्तियों के लिए ही होती है .....बेगम अख्तर की इतनी सुंदर जानकारी के लिए शुक्रिया .....!!
इत्तेफाक देखिये आज ही किसी दोस्त ने उनकी आवाज में एक नगमा भेजा है ,,,आज जाने की जिद न करो.....
@ अरविन्द जी आपकी पसंद की ग़ज़ल लगा दी है सुन कर ज़रूर बताइयेगा.
बेगम अख्तर के बारे में कुछ बातें जानकर अच्छा लगा। अरविंद जी से सुझाव पर भी ध्यान दें, सम्भव हो तो अगली पोस्ट में उनकी कोई गजल सुनवाएं प्लीज।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
बेहद खुबसूरत ......जानकारी और गज़ल के लिये बहुत बहुत धन्यवाद!
Aapke lekh me ant tak baandhe rakhe ki takat h...achha laga padh k...
''दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे ''................बेगम अख्तर जी के आवाज की याद में .
अपने प्रिय को स्मरण करते हुए यादों के चिराग ख़ूबसूरती से जलाए हैं आपने।
"ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया...."यह पंक्ति तो भीतर कहाँ गहराई मे अवस्थित है पता नही ।
बेगम अख्तर के बारे में इतनी सारी जानकारी देने का बहुत आभार ...
मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया ...!! पसंदीदा ग़ज़ल ..!!
कमाल का लिखा है ......... बेगम अख्तर सच में ठुमरी और ग़ज़ल गायकी में मील का पत्थर हैं ........ दरअसल female singers mein ग़ज़ल गायकी में उनके मुकाम को कोई और गायिका आज तक नहीं ले सकी है .......
बेगम अख्तर जी के ऊपर लिखा गया एक रोचक और सुन्दर लेख्।
हार्दिक बधाई।
पूनम
बेगम अख्तर जी के बारे में बहुत विस्तृत और तथ्यपरक जानकारियां प्रस्तुत करने के लिये आभार्।
हेमन्त कुमार
shraddhajali dene ka sahi andaaz...
माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
आपने बेगम साहिबा को आदर देकर
अनुकरणीय सन्देश भी दिया है
ek bemisaal kalakar ke bare me aapne jaankari di.shukriya
बहुत आभार ,मीनू जी ! कुछ भूले बिसरे दिन याद आ गये !
दूसरी भी सुनी -मीनू जी आपका कृतग्य रहूँगा !
बहुत बडिया रही जानकारी बेगम अख्तर जी को विनम्र श्रद्धाँजली
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोंना आया ..
की फनकार के बारे में इतनी सुंदर तरीके से जानकारी ,
मीनू जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !बेगम अख्टर ने
सचमुच सबको दीवाना बना दिया ...
अनुरोध है कि इस उम्दा जनकारी को विकीपीडिया पर भी प्रकाशित कर दें तो बहुत अच्छा होगा।
धन्यवाद।
॥दस्तक॥|
गीतों की महफिल|
तकनीकी दस्तक
par ab kuch sunaee nhi de rha.
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