कुछ कवितायेँ, जितनी देख सका, देखी पर "लड़की" कविता पढ़कर क्षोभ की अनुभूति हुई. कितने संवेदना शून्य हो गए हैं हम कि घर में घर के ही अंश से हम मुक्त होना चाहते है! एक पिता होने के नाते कविता मुझे खुद से मुखातिब लगने लगी. संभवतः इस कविता में एक स्त्री होने का ताप भी विद्यमान है जिससे इसका स्वर अतिरेकी हो गया है.
मीनू जी, हर बार आपकी कविता पढ़ कर आपको बधाई देता हूँ. आप जिस बखूबी कह देती हैं वो अंदाज काबिलेतारीफ है. अक्सर मिश्रित अनुभूति होती है, इतनी अच्छी कविता और उसमें इतना दुःख भरा यथार्थ. मुझे लगता है हर कविता का चेहरा होता है और आपकी कविताओं के चेहरे समाज को मुह चिढाते हैं.
स्वरातिरेक की बात एक स्त्री होने के नाते किसी हद तक सही हो सकती है सँजय जी पर यथार्थ कई बार वास्तव में ऐसा भी होता है.
एक सच्ची कहानी आप को बता रही हूँ ----एक घर में बहू जलाकर मार दी गई और उसी बहू के घर की एक और लड्की उसी लड्के के साथ ब्याह दी गई इस विवेचना के साथ कि यदि किस्मत में जलना ही लिखा होगा तो कहीं भी शादी होगी वहीं जला दी जाएगी.. ..
सम्वेदनशून्यता बढ रही है पर सम्वेदनाएँ अभी खत्म नही हुई है. यदि समय मिले तो मेरी कविता "सलाह" पढ्ने का कष्ट करें, मन की कडुआहट कम हो जाएगी.
एक स्नेहिल पिता के रूप में आपका सरोकार पढ कर अच्छा लगा.
हमारा समाज पश्चिमी सभ्यता की नक़ल के पीछे तो पड़ा है लेकिन अंतर्मन वही कुंठित है . नारी का कोई स्थान आज हम समाज में निर्धारित नहीं कर पाए . नारी स्वतंत्रता के नाम पर शोषण ही बढा है . कार्यक्षेत्र बढ़ गया लेकिन दर्जा वही दोयम
मैं असहमत हूँ। पहली टिप्पणी ही ? लड़की को घर के दरवाजे पर पड़ा कूड़ा बहुत कम घरों में माना जाता होगा जो अपवाद हैं। अपवाद पर लिखी कविता का स्वर ऐसा नहीं होना चाहिए।
रही बात कूड़े वालों की तो आज कल उनके पास च्वायस ही नहीं बचा। अब वे भी 'कूड़े' को घर में सजाना और उसकी बात मानना सीख चुके हैं।
तेवर के लिए बधाई। दूषित मनोवृत्तियों के लिए अच्छा है।
BAHOOT HI SAMVEDANSHEEL AUR MAARMIK LIKHA HAI......HAMAARA SAMAAJ AISAA HAI ABHI TAK.....YE SOCH KAR KABHI KABHI GAHRA DUKH HOTA HAI..... AAPNE PRATEEK KE MAADHYAM SE IS BURAI KO LIKHA HAI AUR AAPKA PRAYAAS KAAMYAAB HAI...
हमारे समाज के सड़े हुए हिस्से की सोच को आप ने बखूबी अभिव्यक्त किया है। पर लड़की के मायने और भी हैं। आप चाहें तो दुनिया भर की लड़कियों के नाम, ‘यक़ीन’साहब की एक ग़ज़ल को पढ़ कर देख सकती हैं.... http://anvarat.blogspot.com/2009/01/blog-post_183.html
जी हाँ ,, साफ़ सुथरा दरवाज़ा "दिखे" बरसों बीत चुके हैं जाने कब और कैसे हम सब ही अन्दर से जैसे मर चुके हैं मन और आत्मा के दरवाज़े गंदे हो चुके हैं जाने कयूं शुद्धता से मुहं कयूं मोड़ते जा रहे हैं
बड़ी हिम्मत और सटीक-बयानी से आपने बहुत ही कड़वा सच उजागर किया है संवेदनात्मक विवरण लिए हुए भावुक कविता ...
aapane jo kuchh bhi kahane ki koshish kari hai usame aap puree tarah se safal huee hai .........haan ....is baat ko mai maanata hu ki ladakiyo prati samaaj ki maansikataa aisi hi hai ........behad yathaarthpurn kawita ....jisame samaaj ke dohara wichar ko dikhane me saksham hai .......ek taraf ladaki ko lakshmi ka rup mane jane ka thong kiya jata par asaliyat me sirf kudaa hi banakar rakh diya gaya hai ........bahut bahut shukriya
Today i visited your blog for the first time.Beside being a good radio producer and anchor you are a sensitive poet too.Well this is a pleasant surprise for me. I am sure you must be knowing about Naseeruddin's blog 'Gender Jehad 'and if not you must visit it as it specifically pics up the Gender issues.There you will find a number of other blogs dedicated to gender problems.
Keep it up with best wishes
Akhilesh Dixit Deptt.of Mass Media & Communication Mahatma Gandhi Antarrashtriya Vishwavidyalaya, Warhha, Maharashtra
बात कड़वी है ....कविता में कहने से तीखी भी हो गई है...कविता बहुत अच्छी है.....मगर धीरे ही सही हालात बदल रहे हैं.....मुझे अपनी बेटियों पर गर्व है...वे मेरे घर की जान और शान हैं....पर ऐसा हुआ होगा ..किसी आपकी कविता के असर से ही. www.rajeshwarvashistha.blogspot.com
33 comments:
मीनु जी बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है सच मे अभी भी लडकियों को फालतू ही समझा जाता है शुभकामनयेन्
मीनु जी बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है सच मे अभी भी लडकियों को फालतू ही समझा जाता है शुभकामनयेन्
कुछ कवितायेँ, जितनी देख सका, देखी पर "लड़की" कविता पढ़कर क्षोभ की अनुभूति हुई. कितने संवेदना शून्य हो गए हैं हम कि घर में घर के ही अंश से हम मुक्त होना चाहते है! एक पिता होने के नाते कविता मुझे खुद से मुखातिब लगने लगी. संभवतः इस कविता में एक स्त्री होने का ताप भी विद्यमान है जिससे इसका स्वर अतिरेकी हो गया है.
मीनू जी, हर बार आपकी कविता पढ़ कर आपको बधाई देता हूँ. आप जिस बखूबी कह देती हैं वो अंदाज काबिलेतारीफ है. अक्सर मिश्रित अनुभूति होती है, इतनी अच्छी कविता और उसमें इतना दुःख भरा यथार्थ. मुझे लगता है हर कविता का चेहरा होता है और आपकी कविताओं के चेहरे समाज को मुह चिढाते हैं.
स्वरातिरेक की बात एक स्त्री होने के नाते किसी हद तक सही हो सकती है सँजय जी पर यथार्थ कई बार वास्तव में ऐसा भी होता है.
एक सच्ची कहानी आप को बता रही हूँ ----एक घर में बहू जलाकर मार दी गई और उसी बहू के घर की एक और लड्की उसी लड्के के साथ ब्याह दी गई इस विवेचना के साथ कि यदि किस्मत में जलना ही लिखा होगा तो कहीं भी शादी होगी वहीं जला दी जाएगी.. ..
सम्वेदनशून्यता बढ रही है पर सम्वेदनाएँ अभी खत्म नही हुई है. यदि समय मिले तो मेरी कविता "सलाह" पढ्ने का कष्ट करें, मन की कडुआहट कम हो जाएगी.
एक स्नेहिल पिता के रूप में आपका सरोकार पढ कर अच्छा लगा.
मेरा भारत महान शायद इन्ही कारणों से
bahut hi marmik rachana,sach bhi ladki ko kude se jyada kuch nahi samjha jata.ye bhawna kab badlegi na jane,ek sashakt rachana ke liye badhai.
हमारा समाज पश्चिमी सभ्यता की नक़ल के पीछे तो पड़ा है लेकिन अंतर्मन वही कुंठित है . नारी का कोई स्थान आज हम समाज में निर्धारित नहीं कर पाए . नारी स्वतंत्रता के नाम पर शोषण ही बढा है . कार्यक्षेत्र बढ़ गया लेकिन दर्जा वही दोयम
बहुत ही अच्छी कविता बन पड़ी है ..
क्या बात है. बेहतरीन रचना.
नार्यस्तु यत्र पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता...
अच्छा लगता है....
लेकिन वस्तुस्थिति तो आपने बयान कर दी इस कविता में...
मर्म स्पर्शी रचना , बधाई स्वीकारें...
बहुत दुखद है यह पढना ..मार्मिक रचना ..!!
मार्मिक बहुत ही मार्मिक
Kam shabdon men bahut shaandaar baat.
{ Treasurer-S, T }
शब्द नही ये तो नश्तर है.
न चुभे जिसे वो पत्थर है.
और कुछ नही कहना है
kyaa baat hai.....!!laazawaab....!!
मैं असहमत हूँ। पहली टिप्पणी ही ?
लड़की को घर के दरवाजे पर पड़ा कूड़ा बहुत कम घरों में माना जाता होगा जो अपवाद हैं। अपवाद पर लिखी कविता का स्वर ऐसा नहीं होना चाहिए।
रही बात कूड़े वालों की तो आज कल उनके पास च्वायस ही नहीं बचा। अब वे भी 'कूड़े' को घर में सजाना और उसकी बात मानना सीख चुके हैं।
तेवर के लिए बधाई। दूषित मनोवृत्तियों के लिए अच्छा है।
BAHOOT HI SAMVEDANSHEEL AUR MAARMIK LIKHA HAI......HAMAARA SAMAAJ AISAA HAI ABHI TAK.....YE SOCH KAR KABHI KABHI GAHRA DUKH HOTA HAI.....
AAPNE PRATEEK KE MAADHYAM SE IS BURAI KO LIKHA HAI AUR AAPKA PRAYAAS KAAMYAAB HAI...
हमारे समाज के सड़े हुए हिस्से की सोच को आप ने बखूबी अभिव्यक्त किया है। पर लड़की के मायने और भी हैं। आप चाहें तो दुनिया भर की लड़कियों के नाम, ‘यक़ीन’साहब की एक ग़ज़ल को पढ़ कर देख सकती हैं....
http://anvarat.blogspot.com/2009/01/blog-post_183.html
साफ-सुथरा दरवाज़ा देखे
बरसों बीत चुके हैं.
जी हाँ ,, साफ़ सुथरा दरवाज़ा "दिखे"
बरसों बीत चुके हैं
जाने कब और कैसे
हम सब ही अन्दर से जैसे मर चुके हैं
मन और आत्मा के दरवाज़े गंदे हो चुके हैं
जाने कयूं शुद्धता से मुहं कयूं मोड़ते जा रहे हैं
बड़ी हिम्मत और सटीक-बयानी से आपने
बहुत ही कड़वा सच उजागर किया है
संवेदनात्मक विवरण लिए हुए भावुक कविता ...
अभिवादन स्वीकारें
---मुफलिस---
Is choti si kavita ke dwara aapne bahut kuch kah diya.Shubkamnayen.
गूँज कोयल की कुहुक-सी वादियों में
बन्द कर ये सिसकियों का साज़ लड़की!
तेरे स्वागत को है ये आकाश आतुर
खोल कर पर तू भी भर परवाज़ लड़की!
अपनी कू़व्वत का नहीं अहसास तुझ को
कर ‘यक़ीन’ इस बात पर जाँबाज़ लड़की!
इस ग़ज़ल के लिए दुनिया भर की लड्कियों की तरफ़ से यक़ीन साहब को शुक्रिया.
और इसे पढ्वाने के लिए द्विवेदी जी का आभार.
aapane jo kuchh bhi kahane ki koshish kari hai usame aap puree tarah se safal huee hai .........haan ....is baat ko mai maanata hu ki ladakiyo prati samaaj ki maansikataa aisi hi hai ........behad yathaarthpurn kawita ....jisame samaaj ke dohara wichar ko dikhane me saksham hai .......ek taraf ladaki ko lakshmi ka rup mane jane ka thong kiya jata par asaliyat me sirf kudaa hi banakar rakh diya gaya hai ........bahut bahut shukriya
नही भई लड़की घर का कूड़ा नहीं है । यह यथार्थ भी नहीं है हाँ इसे कल्पित यथार्थ कह सकते हैं ऐसा होता है लेकिन हर जगह ऐसा नही होता
कूड़े वाले ,रद्दीवाले इसी ताक में तो रहते है -अब यह बेचने वालों पर निर्भर करता है !
वाह,कमाल है!
"गन्दगी" को इससे अधिक ’सफ़ाई’ से नहीं पेश किया जा सकता था.
वाह!
"सच में"/"कविता" पर आने और मेरी रचनाओं को दाद देने के लिये शुक्रिया.
बहुत बढिया रचना है बधाई।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!
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INDIAN DEITIES
मीनू जी,
आपकी कविता एकदम हथौडे जैसी लगी सीधे दिमाग पर ....स्तब्ध कर देने वाली रचना ...
लेकिन इन हालातों को हमें ही तो बदलना होगा .
पूनम
अच्छी कविता।
कृपया इस पर भी नज़र डालें...
http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/08/blog-post_14.html
Today i visited your blog for the first time.Beside being a good radio producer and anchor you are a sensitive poet too.Well this is a pleasant surprise for me.
I am sure you must be knowing about Naseeruddin's blog 'Gender Jehad 'and if not you must visit it as it specifically pics up the Gender issues.There you will find a number of other blogs dedicated to gender problems.
Keep it up
with best wishes
Akhilesh Dixit
Deptt.of Mass Media & Communication
Mahatma Gandhi Antarrashtriya Vishwavidyalaya,
Warhha, Maharashtra
Dahej jaisi kuriti par aapne meenuji bada gahra prahar kiya hai.Iske liye aapne kanya paksh ko nahi baksha.Bhadhai ho aisi kavita likhne ke liye.
बात कड़वी है ....कविता में कहने से तीखी भी हो गई है...कविता बहुत अच्छी है.....मगर धीरे ही सही हालात बदल रहे हैं.....मुझे अपनी बेटियों पर गर्व है...वे मेरे घर की जान और शान हैं....पर ऐसा हुआ होगा ..किसी आपकी कविता के असर से ही. www.rajeshwarvashistha.blogspot.com
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