Wednesday, March 03, 2010

बजट





देश का बजट बनाते हो
हर साल
कीमते बढ़ती हैं चीज़ों की
हर साल.


एक बार तो बनाओ
ऐसा बजट कि
कुछ कीमतें बढें लड़कियों की भी..

मिट्टी के मोल भी नहीं खरीद रहा जिन्हे
विवाह के बाज़ार में कोई !


विवाह के इस भव्य बाज़ार में
लड़कों की धुँआधार बिक्री से
चकराने लगा है सिर अब...

अरे एक बार तो मौक़ा दो
लड़कियाँ भी चख लें स्वाद
बिकने के सुख का !


घबराओ नहीं
इसमें ग़लत कुछ भी नहीं..

ऐसा करना पूर्ण वैधानिक होगा
क्यों कि
लड़के और लड़की में
कोई अंतर न रखने का आदेश
तो स्वयँ
देश के सम्विधान ने दे रखा है !

11 comments:

  1. आपने कविता के माध्यम से सशक्त सवाल पुछा है ।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।

    आपका लेख अच्छा लगा।

    हिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।


    अगर आप हिंदी साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, निबंध इत्यादि डाउनलोड करना चाहते है तो कृपया किताबघर पर पधारें । इसका पता है :

    http://Kitabghar.tk

    ReplyDelete
  3. वाह वाह
    बहुत प्‍यारी कविता
    http://chokhat.blogspot.com/

    ReplyDelete
  4. दी...यथार्थ को चित्रित करती ....यह रचना बहुत अच्छी लगी...

    ReplyDelete
  5. एक नवीन अप्रोच !
    कविता के ऐसे सुन्दर ढंग आप ही बनाती हैं ! आभार ।

    ReplyDelete
  6. चिंता न करें जिस गति से कन्या भ्रूण हत्याएँ हो रही हैं एक दिन ऐसा आयेगा कि यह अनुपात गड़बड-आ जायेगा फिर कन्याओं की संख्या इतनी कम हो जायेगी कि अपने आप उनकी कीमत बढ़ जायेगी । ( लेकिन दिल से यह दुआ है कि ऐसा दिन कभी न आये )

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब !!! बहुत अच्छा व्यंग्य किया है आपने देश के नीतिनिर्माताओं पर भी और दहेज के लिये अपने लड़कों का मोल-भाव करने वालों पर भी.

    ReplyDelete
  8. आपकी बात पुरनी हुई। आज हमारे राजस्थान में (खासकर हम जैनियों में) लड़कियों की कमी ने ये हालत कर दी है कि लड़कियों के माँ -बाप लड़की के बदले में पच्चीस लाख रुपये तक मांगने लगे हैं।
    अब जिन लड़कों के माँ बापों के पास पैसे हैं वे दुल्हन खरीद सकते हैं, जिनके पास नहीं है वे दुल्हन का और घर बसाने क सपना ही देखें।
    इस विषय पर मैने एक पोस्ट भी लिखी थी। जहाँ लड़कियों का पिता होना सौभाग्य की बात है

    ReplyDelete
  9. शशक्त प्रभावी रचना ....
    चिंतन की आवश्यकता है इस समाज को ..... कब तक यूँ ही चलेगा ये संसार ...

    ReplyDelete

धन्यवाद आपकी टिप्पणियों का...आगे भी हमें इंतज़ार रहेगा ...