Saturday, December 12, 2009

क्रेश



यह जानते हुए भी
कि
उसे मारपीट कर
जबरन सुला दिया जाता है वहाँ
मैं छोड़ जाती हूँ
अपनी सम्वेदनाओं के अबोध शिशु को
तर्कशक्ति के नज़दीकी क्रेश में.
क्या करूँ ?
यथार्थ के ऑफ़िस में ले जाने पर
काम ही नही करने देता
यह नन्हा
यह नादान.

23 comments:

  1. ओह कितनी सशक्त और सारगर्भित अभिव्यक्ति !

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  2. मीनू मेरी बेटी भी क्रेश में रहती थी और हमारा अनुभव बहुत सकारात्मक रहा है । क्रेश वाली बच्चे ज्यादा सामाजिक होते हैं ।

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  3. दी... बहुत ही अच्छी और सशक्त पोस्ट...

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  4. शानदार अभिव्यक्ति मनोभावों की.

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  5. बहुत ही मार्मिक .... गहरा संदेश देता ......... महानगरीय जीवन की विवशता को उकेरती लाजवाब रचना है मीनू जी ........

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  6. भाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग, अच्छी रचना। बधाई।

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  7. कविता कह गयी भावनाओं के अबोध शिशु की दास्तान चुपके से सारी की सारी.
    गहन भाव!सशक्त अभिव्यक्ति !

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  8. विदेशी व्यवस्थाओं से कितनी उम्मीद रखी जा सकती है

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  9. महेश भाई


    विदेशी व्यवस्था..अरे इतिहास देखिये..पन्ना धाय दिखेंगी...विदेशियों ने तो हमसे सीखा है विश्वास करना!!

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  10. "यथार्थ के ऑफिस में ...."- जैसे सारा खाका ही खिंच गया !
    जबर्दस्त रचना । आभार ।

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  11. क्रेजी किया रे।
    क्रेश में समाजवाद की ट्रेनिंग भी होती है शायद, जान कर अच्छा लगा।
    समीर जी की दूसरी बात में दम है। दुबारा जो आए - बिना वादा किए!

    आप की रचना ममतामयी 'माँ' की अभिव्यक्ति है। यह माँ आधुनिक है लेकिन संतान पालन के दायित्वों के प्रति पूरी तरह से सजग भी!
    सम्वेदनाएँ जीवित हैं।
    सुखद।

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  12. समीर जी आपकी बात सही है .
    मेरी टिप्पणी इस सन्दर्भ में थी -
    "यह जानते हुए भी
    कि
    उसे मारपीट कर
    जबरन सुला दिया जाता है वहाँ"

    माँ का जो रूप अपने यहाँ देखने मिलता है वह और कहीं नहीं देखने मिलता लेकिन आज की स्तिथि ने बच्चे को माँ से अलग करना शुरू कर दिया और उसीकी उत्पत्ति है क्रेश

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  13. बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ...संवेदनाओं का मानवीकरण ...
    जयशंकर प्रसाद का स्मरण हो आया ...!!

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  14. कितना सच लिखा है आपने बहुत ही करीब है हमारे ये पंक्तिया .........धन्यवाद ...........

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  15. Yeh is yug ki den hai. Mei अफ़लातून ji se sahmat hu, creche me bacche jaldi he jeevan ke utar chadav se avgat ho jaate hai aur atmnirbhar ho jaate hai.

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  16. बच्चों पर लिखी गयी एक अच्छी कविता---
    हेमन्त कुमार

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  17. कम शब्दों में काफी कुछ समेटे हुए एक मार्मिक गहरी और बेहतरीन रचना

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  18. बदलते सामजिक परिवेश को बिम्ब बनाकर अपनी संवेदनाओं और मनोभावों की लाचारी को सहज ही लिख दिया आपने.

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  19. इस बात को महसूस तो सभी करते हैं पर कितने लोग इसे कविता की सूरत देते हैं. आपने इतनी बड़ी समस्या को जितनी आसानी से, हल्के-फुल्के शब्दों में बाँध कर कविता रची है, वह आपकी सामर्थ्य का परिचायक है. आपकी लेखनी(की पैड)ऐसे ही चलती रहे, नये किले गढ़ती रहे---- बधाई.

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  20. मितकथन का शिल्प लिए आपकी ये कविता बेजोड़ है ,हार्दिक बधाई

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