यह जानते हुए भी कि उसे मारपीट कर जबरन सुला दिया जाता है वहाँ मैं छोड़ जाती हूँ अपनी सम्वेदनाओं के अबोध शिशु को तर्कशक्ति के नज़दीकी क्रेश में. क्या करूँ ? यथार्थ के ऑफ़िस में ले जाने पर काम ही नही करने देता यह नन्हा यह नादान.
समीर जी आपकी बात सही है . मेरी टिप्पणी इस सन्दर्भ में थी - "यह जानते हुए भी कि उसे मारपीट कर जबरन सुला दिया जाता है वहाँ"
माँ का जो रूप अपने यहाँ देखने मिलता है वह और कहीं नहीं देखने मिलता लेकिन आज की स्तिथि ने बच्चे को माँ से अलग करना शुरू कर दिया और उसीकी उत्पत्ति है क्रेश
Yeh is yug ki den hai. Mei अफ़लातून ji se sahmat hu, creche me bacche jaldi he jeevan ke utar chadav se avgat ho jaate hai aur atmnirbhar ho jaate hai.
इस बात को महसूस तो सभी करते हैं पर कितने लोग इसे कविता की सूरत देते हैं. आपने इतनी बड़ी समस्या को जितनी आसानी से, हल्के-फुल्के शब्दों में बाँध कर कविता रची है, वह आपकी सामर्थ्य का परिचायक है. आपकी लेखनी(की पैड)ऐसे ही चलती रहे, नये किले गढ़ती रहे---- बधाई.
ओह कितनी सशक्त और सारगर्भित अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteमीनू मेरी बेटी भी क्रेश में रहती थी और हमारा अनुभव बहुत सकारात्मक रहा है । क्रेश वाली बच्चे ज्यादा सामाजिक होते हैं ।
ReplyDeleteदी... बहुत ही अच्छी और सशक्त पोस्ट...
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति मनोभावों की.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक .... गहरा संदेश देता ......... महानगरीय जीवन की विवशता को उकेरती लाजवाब रचना है मीनू जी ........
ReplyDeleteuttam abhivyakti
ReplyDeleteभाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग, अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteकविता कह गयी भावनाओं के अबोध शिशु की दास्तान चुपके से सारी की सारी.
ReplyDeleteगहन भाव!सशक्त अभिव्यक्ति !
विदेशी व्यवस्थाओं से कितनी उम्मीद रखी जा सकती है
ReplyDeleteमहेश भाई
ReplyDeleteविदेशी व्यवस्था..अरे इतिहास देखिये..पन्ना धाय दिखेंगी...विदेशियों ने तो हमसे सीखा है विश्वास करना!!
"यथार्थ के ऑफिस में ...."- जैसे सारा खाका ही खिंच गया !
ReplyDeleteजबर्दस्त रचना । आभार ।
क्रेजी किया रे।
ReplyDeleteक्रेश में समाजवाद की ट्रेनिंग भी होती है शायद, जान कर अच्छा लगा।
समीर जी की दूसरी बात में दम है। दुबारा जो आए - बिना वादा किए!
आप की रचना ममतामयी 'माँ' की अभिव्यक्ति है। यह माँ आधुनिक है लेकिन संतान पालन के दायित्वों के प्रति पूरी तरह से सजग भी!
सम्वेदनाएँ जीवित हैं।
सुखद।
समीर जी आपकी बात सही है .
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी इस सन्दर्भ में थी -
"यह जानते हुए भी
कि
उसे मारपीट कर
जबरन सुला दिया जाता है वहाँ"
माँ का जो रूप अपने यहाँ देखने मिलता है वह और कहीं नहीं देखने मिलता लेकिन आज की स्तिथि ने बच्चे को माँ से अलग करना शुरू कर दिया और उसीकी उत्पत्ति है क्रेश
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ...संवेदनाओं का मानवीकरण ...
ReplyDeleteजयशंकर प्रसाद का स्मरण हो आया ...!!
कितना सच लिखा है आपने बहुत ही करीब है हमारे ये पंक्तिया .........धन्यवाद ...........
ReplyDeleteYeh is yug ki den hai. Mei अफ़लातून ji se sahmat hu, creche me bacche jaldi he jeevan ke utar chadav se avgat ho jaate hai aur atmnirbhar ho jaate hai.
ReplyDeleteहर माँ की मजबूरी है। आज के युग में क्रेश बहुत जरूरी है।
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ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
Bahut sundar kavita---
ReplyDeletePoonam
बच्चों पर लिखी गयी एक अच्छी कविता---
ReplyDeleteहेमन्त कुमार
कम शब्दों में काफी कुछ समेटे हुए एक मार्मिक गहरी और बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबदलते सामजिक परिवेश को बिम्ब बनाकर अपनी संवेदनाओं और मनोभावों की लाचारी को सहज ही लिख दिया आपने.
ReplyDeleteइस बात को महसूस तो सभी करते हैं पर कितने लोग इसे कविता की सूरत देते हैं. आपने इतनी बड़ी समस्या को जितनी आसानी से, हल्के-फुल्के शब्दों में बाँध कर कविता रची है, वह आपकी सामर्थ्य का परिचायक है. आपकी लेखनी(की पैड)ऐसे ही चलती रहे, नये किले गढ़ती रहे---- बधाई.
ReplyDeleteमितकथन का शिल्प लिए आपकी ये कविता बेजोड़ है ,हार्दिक बधाई
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