Tuesday, October 25, 2011

परियों को सम्बोधित कविता

(दीपावली पर)







गीतू एक प्यारी बच्ची थी.

उसे दीवाली का त्योहार बहुत पसंद था.

फुलझड़ियाँ,रौशनी,दीपक,अच्छे कपड़े,मिठाई

गीतू को सब कुछ लेने का मन करता था

पर उसके पास पैसे नही थे.

उसने अपनी दादी से कहा,

मै भी अपना घर रंगीन झालर से सजाना चाहती हूँ

दादी ने कहा की हमारे पास पैसे नही हैं.

गीतू रोने लगी

उनकी बात एक परी सुन रही थी,

परी ने सपने में आकर

गीतू को ढेर सारे उपहार दिए

और उसका घर सुंदर झालरों से सजा दिया

गीतू खुश होकर ताली बजाने लगी.


यह कविता दुनिया की सभी परियों को सम्बोधित है!
सपनों और कहानी की दुनिया से निकल कर
कभी वास्तविक दुनिया में भी आइये
गीतू को उपहार दीजिए
उसका घर सचमुच में सजाइए.

13 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता....दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...

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  2. प्यार हर दिल में पला करता है,
    स्नेह गीतों में ढ़ला करता है,
    रोशनी दुनिया को देने के लिए,
    दीप हर रंग में जला करता है।
    प्रकाशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!

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  3. यानि हम सबको...दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं

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  4. सुंदर भाव...दीवाली की शुभकामनाएँ...

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  5. सपनों और कहानी की दुनिया से निकल कर
    कभी वास्तविक दुनिया में भी आइये
    गीतू को उपहार दीजिए
    उसका घर सचमुच में सजाइए.
    behad achche bhaw.......

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  6. आपके यहाँ आकर अच्छा लगा।

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  7. अच्छा विचार ! लेकिन तब तक क्यूँ ना गीतु को यह सिखाया जाय की सपने देखो और उन्हें पूरा होने के लिए पारियों का इंतज़ार ना करो, खुद प्रयास करो। यही यथार्थ है।

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  8. आपसे मिलकर अच्छा लगा |

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  9. कहाँ हैं मीनू जी ! साल होने को आये !

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