(कार्तिक-पूर्णिमा पर )
वो जो नदी है
उसमे रहती हैं ढेर सारी मछलियां
जिन्हें बचपन में
आटे की गोलियाँ खिलाई थी मैंने
अपने बाबा के साथ
घाट की सबसे निचली सीढ़ी पर खड़े होकर .
वो जो नदी है
बसती हैं उसमे ढेर सारी डुबकियाँ
नाक बंद करके लगाई थी जो मैंने
गहरे पानी में
अपनी दादी का हाथ पकड़कर.
उसी नदी में बसती है
तैरने से पहले
छपाक से कूदने की न जाने कितनी आवाजें
नावों की हलचलें
कमर तक डूब कर सूर्य को दिए गए अर्घ्य
पियरी चढ़ाने की मन्नतें
तुलसी पूजा के बिम्ब
हर हर महादेव की गूँज
हरे पत्ते के दोनों में
पानी पर तिरते दीपक
और ढेर सारा पॉलिथीन.

"....हरे पत्ते के दोनों में
ReplyDeleteपानी पर तिरते दीपक
और ढेर सारा पॉलिथीन."
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर नदियों को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त करने का आह्वान करती कविता.
गंगा हो या यमुना या गोमती आज कोई भी नदी प्रदूषण मुक्त नहीं है. हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा और आस्था के नाम पर नदियों में प्रदूषण फैलाने से खुद को रोकना होगा.
शायद कभी वो दिन फिर से आ जाए जब ये सारी यादें एक बार फिर ताज़ा हो जाएँ.
बहुत ही सुन्दर शब्द ...कई गहरे भावों के साथ ।
ReplyDeleteसुंदर मनोभावों की अन्यतम परिणति है आपकी कविता.
ReplyDeleteuf !!!!!!! ye politheen ! kyaa hoga nadi ka ? kahan tak ja payegi ???
ReplyDeleteडुबकियाँ
ReplyDeleteनाक बंद करके लगाई थी
बहुत संवेदनशील और सार्थक पोस्ट जो पर्यावरण के प्रति हमारी चिंता को आगे लाती है।
और ढेर सारा पॉलिथीन." We are the ones choking our rivers. It is time we woke up and start cleaning them by not throwing any thing. Then and then our memories of river will be clean and seet.
ReplyDeleteहर हर महादेव की गूँज
ReplyDeleteहरे पत्ते के दोनों में
पानी पर तिरते दीपक
और ढेर सारा पॉलिथीन....
बहुत संवेदनशील ... हकीकत है हमारे समाज की ... जागरूक करती बहुत प्रभावी रचना ..
संवेदनशील रचना!
ReplyDeleteसारे पावन विम्बों के बीच पोलीथीन हो रही विकृतियों को बखूबी दर्शाती है ....
बहुत सुंदर कविता-
ReplyDeleteएक तरफ अपनी संस्कृति अपने
गौरव की चर्चा -
तो दूसरी तरफ कितना दर्द......!
प्रदूषण के दुष्प्रभाव.....!!!!
बहुत सुंदर
सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteBilkul sateek kaha hai.... pani par deepak to ek hi do din tairte hain "polythene" to har din hai.... yahi haal raha to deepak tairaane layak nahi bachengi nadiyan.
ReplyDeleteपानी पर तिरते दीपक
ReplyDeleteऔर ढेर सारा पॉलिथीन....
खूबसूरती और बदसूरती एक साथ ! काश की पालीथीन को रोका जा पाता !
कार्तिक पूर्णिमा की उज्ज्वल बधाई !
मीनू जी, आपका ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई। कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई।
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