आ गैरियत के परदे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक्शे दुई मिटा दें.
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती आ इक नया शिवाला इस देश में बना दें
दुनिया के तीर्थों से ऊंचा हो अपना तीरथ
दामन-ए-आसमान से इसका कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गाएं मंतर वो मीठे मीठे
सारे पुजारिओं को मय प्रीत की पिला दें
शक्ति भी शान्ति भी भक्तों के गीत में है
धरती के बासियों की मुक्ति भी प्रीत में है.
आ गैरियत के परदे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक्शे दुई मिटा दें.
---अल्लामा इकबाल