Monday, February 22, 2010

सूरज और माचिस






सूरज की लपटों से

मैं निकाल लाई

अपना घरौंदा सुरक्षित,


अब माचिस की इक तीली

मेरा आशियाना जलाने को है.

18 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति ...

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  2. आग जब नजदीक हो, तो ज्यादा जलाती है...पर तीलियों की उम्र हीं कितनी होती है... जरा सब्र किया जाए

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  3. दी.... बहुत ही गहरी बात लिए हुए...यह रचना .... बहुत सुंदर लगी...

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  4. थोड़े महँ जानिहहिं सयाने ।
    बुद्धिमान लोग थोड़े ही में समझ लेंगे ।

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  5. बहुत खूब !!! सुन्दर रचना !!! थोड़े से शब्दों में बड़ी बात .

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  6. बहुत खूब , रचना छोटी परन्तु बहुत कहती ।

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  7. इरादे ही घर जलाते है वर्ना तो माचिस की तीली ही चूल्हा भी जलाते हैं

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  8. बहुत सुंदर ..थोड़े में बड़ी बात कही आपने! अति सुंदर

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  9. क्या बात है, बेहतरीन!

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  10. बहुत कुछ कह डाला इतने में ही बधाई

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  11. वाह ! मीनू जी !बहुत गहरा तार छेड़ दिया आपने !अत्यंत सार्थक पंक्तियाँ ! बधाई !

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  12. थोड़े से शब्दों में बड़ी बात.

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  13. कमाल की पंक्तियाँ है ... बरबस ये गीत याद आ गया ..."हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकल के ... इस देश को ...."
    कई कई बार ऐसा होता है इंसान बड़ी से बड़ी बात, बड़े से बड़ा घाव सह जाता है, पर कोई छोटी सी बात गहरी चुभ जाती है ... बहुत अच्छा लिखा है मीनू जी ...

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  14. bahut hi khubsurat poem....

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  15. वाह यह हुई न बात...
    पांच लाइनों में सागर

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  16. आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...

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  17. Meenu ji aapko va aapke pareevaar ko holi ki hardik shubhkamna.

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  18. machis se aashiyane nahi diye jalaye jate hai . ashiyano ko to nafrat bhari ek nazar hi kafi hai.

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